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28 September 2008

दिखता है तो छपता क्यों नहीं?

हर शहर में कुछेक बड़े अखबारों के अलावा इतने दैनिक, साप्ताहिक और पाक्षिक अखबार होते हैं कि गिन पाना या जान पाना मुश्किल होता है। पर कई बार ये ऐसी खबरें छाप देते हैं जिनसे चर्चा में आ जाते हैं।

ऐसे ही रायपुर में न जानें कितने अखबार है। नीचे वाली तस्वीर भी एक ऐसे ही अखबार की है जिसके बारे में आवारा बंजारा खुद भी पहले नही जानता था। इसने चुनाव नज़दीक देखकर या अपनी खुन्नस में कुछ ऐसा छाप दिया है जिसके चलते कम से कम कुछ लोगों के बीच चर्चा में आ गया है साथ ही कुछ लोगों को तकलीफ भी हो गई है।



दर-असल इस खबर में बकायदा राज्य के पर्यटन,संस्कृति,वन,युवा कल्याण,विधि-विधायी कार्य, धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व व खेल मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की पूरी संपत्ति-परिसंपत्ति की जानकारी छाप दी गई है। यहां तक कि किसके नाम से कितने किसान विकास पत्र है या कितना सोना है यह भी।


इसी तरह भोपाल मुख्यालय वाली एक पत्रिका तो मानों छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार के पीछे हाथ धो कर नही बल्कि नहा धो कर पड़ी हुई लगती है। स्कूल शिक्षा मंत्री, पी डब्ल्यू डी मंत्री और लोकायुक्त पर केंद्रित अंक निकाल चुकी है। सब में बस यही जानकारी कि कब-कब कितना कमाया गया।

सूचना का अधिकार ज़िंदाबाद???

क्या वाकई छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार के मंत्रीगण इतने लिप्त है भ्रष्टाचार में?
यदि हां तो फिर बड़े-स्थापित अखबारों को क्यों नही दिख रहा यह सब?

दिखता है तो छपता क्यों नहीं?

16 टिप्पणी:

सतीश पंचम said...

बहुत अच्छा मुद्दा उठाया है.....सचमुच बडे अखबारों को यह सब नहीं दिखता.....शायद देखना भी न चाहें।

Ghost Buster said...

सही बात है. चुनाव नजदीक हैं. ये सब देखने को मिलता रहेगा. बड़े अखबार अपना हिस्सा वैसे ही पाते रहते हैं. छोटों को अपने दांत दिखाने होते हैं कि भाई हम भी काट सकते हैं. समूचा तंत्र ही ऐसा है.

P.N. Subramanian said...

छोटे अख़बारों को भी जीने का अधिकार है. वे इसी तरह जीते हैं.

Anil Pusadkar said...

बडे अख़बारों की आंखों पर विग्यापन के मोटे-मोटे शिशों वाला चश्मा चढा है उन्हे ऐसी छोटी-छोटी चीज़ नज़र कहां से आयेगी,समझे संजीत बाबू।

Anonymous said...

"दिखता है तो छपता क्यों नहीं?"

Bahot sahi baat kahi hai aapne bandhu...par kisko doshi thahraya jaye...media ya system ya aam janta...har jageh...sabhi doshi hain iske liye...aaj ki date mai...sab kuch ek dhandha ban gaya hai...

Yunus Khan said...

समझ लीजिये कि अखबार में लपेटकर पत्‍थर चलाया जा रहा है । जबलपुर में रहते थे तो ऐसे अखबारों के खूब मजे लेते थे ।

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

आपकी इस पोस्ट से भी एक कड़वी सच्चाई झांक रही है। बधाई।

दीपक said...

बाप भला ना भैय्या सबसे बडा रुपैय्या !! यही है असल गणित बाकी सब डिरामा है !!लिखते रहो सबकी खबर ले सबको खबर दे !! सबसे तेज !इत्यादि

Unknown said...

बड़े अखबार ज़मीनें हथिया रहे हैं, नये-नये संस्करण निकाल रहे हैं, अब तो शेयर बाज़ार से पूंजी भी उगाह रहे हैं उन्हें यह सब "छोटी-मोटी" बातें दिखाई देना बन्द हो गया है भाई, टेंशन लेने का नहीं… कोई देखे या न देखे, जनता देख रही है, मप्र-छत्तीसगढ़ दोनों में भाजपा साफ़ हो सकती है (जी हाँ ये मैं ही कह रहा हूँ…)

Unknown said...

mujhe hairat is baat ko lekar nahi hai ki ek chhota akhbar belag shaily main apni khabre de raha aur wah diggaj mantri se bhi nahi dar raha hai. dukh ki baat iski bhasha hai. prabhash joshi aur raghuvir sahay ke desh main journalism kya is star tak gir chuki hai ki netaon dwara kahi gai behad ghatiya baat bhi akhbar main likh di jaye. bhashai patrakarita ke girte star ko lekar aankhe khol dene wali is story ke liye badhai

Anita kumar said...

छोटे अखबार दांत दिखा रहे हैं लेकिन उनकी पहुंच ही कितनी प्रतिशत जनता तक है जी। इस लिए सुर्खियों में आने वालों को कोई फ़रक नहीं पड़ता। हां , अब मध्य प्रदेश और छ्त्तीसगढ़ के चुनावों के नतीजों पर जरूर नजर रहेगी, देखें सुरेश जी की भविष्यवाणी सच होती है कि नहीं

seema gupta said...

"bhut shee kiay hai, but jinke barye mey publish hua hai or saree pol khul gyee hai vo to kos rhe honge aise news papers ko.... , but good job"

Regards

डॉ .अनुराग said...

सही कहा भाई....

हिन्दुस्तानी एकेडेमी said...

आप हिन्दी की सेवा कर रहे हैं, इसके लिए साधुवाद। हिन्दुस्तानी एकेडेमी से जुड़कर हिन्दी के उन्नयन में अपना सक्रिय सहयोग करें।

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सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते॥


शारदीय नवरात्र में माँ दुर्गा की कृपा से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों। हार्दिक शुभकामना!
(हिन्दुस्तानी एकेडेमी)
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photo said...

सजीत जी इसके लिए हम जिमेदार है हमे चाहिए रंगीन चिकना सुंदर सस्ता अखबार वो आपनी बाप के कमाई से थोडे मशीन लगायगा जी

shama said...

Shashtreeji, aapke blogpe aatee hun to duvidhame pad jaatee hun...kya padhun,kya chhodun, kahan aur kaisee tippanee likhun???Aapke uthaye mudde itne gambheer hain ki bohot gehrayeeme jaake talashna padta hai...
Kya mai aapke team ki sadasya ban sakti hun??

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