आइए आवारगी के साथ बंजारापन सर्च करें

02 October 2008

अमित जोगी की रिहाई की कीमत 25 लाख?

कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में बस्तर के महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव की हत्या के बाद यह राजनीति से जुड़ी दूसरी हत्या है जो इतनी चर्चा में है। दर-असल बहुचर्चित राम अवतार जग्गी हत्याकांड के मामले में कल बुधवार को एक नया मोड़ आया है।

कभी पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी के खासमखास रहे ढेबर परिवार के अनवर ढेबर ने आज एक सी डी जारी कर यह साबित करने की कोशिश की है कि अजित जोगी के इकलौते पुत्र अमित जोगी को जेल से छुडाने और इस मामले से बाइज्जत बरी करने की कोशिश में जुगाड़ बिठाकर लम्बी चौडी रकम खर्च की गई।
अनवर ढेबर के भाई याहया ढेबर और अंशुल गोयल के भाई अभय गोयल इस समय आजीवन कारावास काट रहे हैं ।


कल दोनों के भाइयों ने अचानक एक प्रेस कान्फ़्रेंस बुलाई और एक सीडी/डीवीडी का प्रदर्शन किया ।
इस डीवीडी को जारी करते हुए अनवर ढेबर और अंगुल गोयल ने कहा कि सारे आरोपी एक ही मामले में गिरफ्तार हुए थे, तो फिर अकेले पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे को ही क्यों बाइज्जत बरी किया गया। ढेबर और गोयल ने कहा कि इस मामले में कई स्तर पर लेन देन हुआ।

जारी की गई डीवीडी में इस मामले का अन्तिम फैसला सुनाने वाले जज बीएल तिडके के पुत्र अजय तिड़के को इस मामले में खुली बात करते दिखाया गया है। साथ ही उनके ड्राईवर को भी। वहीं इस डीवीडी में कई ऑडियो क्लिपिंग्स भी है, जिसमे से एक को प्रेस क्लब में ही सुनाते हुए बताया गया कि इसमें एक अभियुक्त फिरोज सिद्दिकी और अमित जोगी की आवाज है।


बहरहाल जो भी हो हकीकत देर सबेर सामने आनी ही है।
पर आवारा बंजारा सोचता है कि आम आदमी क्या करे, किधर जाए।
राज(?)नेताओं पर भरोसा रहा नही, ले देकर न्यायपालिका पर विश्वास कायम है पर पिछले कई मामलों के चलते यह विश्वास भी दरकता जा रहा है।

8 टिप्पणी:

Shiv said...

भाई, आम आदमी कहाँ जायेगा? उसे यहीं रहकर सबकुछ झेलना पड़ेगा. न्यायपालिका भी धीरे-धीरे कम्पीटीशन में आगे निकलने की होड़ में जुट गया है.

हाँ इतना ज़रूर कहूँगा कि तुम्हारे छत्तीसगढ़ में सीडी की बिक्री बहुत पहले से जोरों पर है.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

अब इस देश का भगवान ही मालिक है। नहीं तो यहाँ के आकाओ ने इसका बेड़ा गर्क करने में कोई कसर छोड़ी नहीं है।

गुरतुर गोठ said...

संजीत भाई, आज के पोस्ट को पढ़कर मुझे कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं, जो हो सकता है, प्रासंगिक न हो तो भी पता नही क्यों लोकतंत्र के अब तक विश्वसनीय रहे एक अंग, स्तम्भ को देखकर प्रश्नवाचक मुद्रा में जेहन में उमड़ने लगे हैं. बिना इजाजत के भी लिख ही दिया जाये....!!!!!

क्या ये अजंता ,क्या एलोरा और ये कैसे राजमहल
हम तो रोज बनाते रहते है ख्वाबों में ताजमहल
अश्कों के दरवाजे इसके और दीवारें हसरत हैं
टूटे सपने फर्श बने हैं कुछ उम्मीदों की छत हैं
शाम सबेरे इसमें रहती दर्दे दिल की चहल पहल
हम तो रोज बनाते रहते है ख्वाबों में ताजमहल

आज मोहब्बत-ऐ- शाहजहाँ को देख हमें शरमाई
तीन तीन मुमताज हमारी भूख ,गरीबी ,महंगाई
तुमने भी तो बहुत संभाला पर आँचल गया फिसल
हम तो रोज बनाते रहते है ख्वाबों में ताजमहल

Anil Pusadkar said...

अच्छा लिखा।

दीपक said...

अचानक चुनाव के समय सीडी का दिखाया जाना थोडा संदेह पैदा करता है !पर यदि यह सत्य हुआ तो न्यायपालिका से भी लोगो का विश्वास उठ जायेगा

seema gupta said...

ले देकर न्यायपालिका पर विश्वास कायम है
' dekhte jao, juldee hee anjam or aapka vishwas samne aa jayega.... bhagvan kre aapka vishwas na tute.."

regards

Gyan Dutt Pandey said...

२५ लाख की कीमत रीज़नेबल है - नहीं?!

डॉ .अनुराग said...

वाकई ?इत्ती कीमत है भाई की ?बोले तो !

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