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26 August 2012

अहमदाबाद डायरी-3


मोदी पर 'उपरवाला' मेहरबान!


बात अगर कार्य की हो तो गुजरात निश्चित ही आगे नजर आता है। अकेले अहमदाबाद में ही तस्वीर दस साल में काफी बदली है। जो परियोजना दिल्ली और बैंगलुरु जैसे शहरों में फेल हो गई वह यहां न केवल सफलतापूर्वक संचालित है बल्कि लोग उसकी तारीफ भी करते हैं। यह है बस रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम (बीआरटीएस परियोजना)। अहमदाबाद बीआरटीएस के लिए गुजरात को अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है।

सरदार ब्रिज पर बारिश का दृश्य ( ऑटोरिक्शा से लिया हुआ)
अहमदाबाद की बीआरटीएस परियोजना में केंद्र सरकार की भी हिस्सेदारी है, इसके बाद भी गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी कई मौकों पर इसे यह कहते हुए अपनी उपलब्धि में शुमार करते हैं कि 'केंद्र सरकार ने जो पैसे गुजरात को दिए वो वही पैसा था जो गुजरात की जनता ने केंद्र सरकार को दिया था| इस बात का खेद है कि जिन लोगो ने 15 करोड़ में से सिर्फ 5 करोड़ रूपए दिए वे लोग सारा क्रेडिट खुद लेना चाहते  है|' जानकारों के मुताबिक बीआरटीएस के 90 किलोमीटर लम्बे प्रोजेक्ट को बनाने के लिए करीब  9,000 करोड़ रूपए खर्च किए गए| इस राजनीति से इतर देखा जाए तो वाकई यह परियोजना लोगों के लिए लाभकारी है, पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधाएं होने के बाद भी अहमदाबाद की सड़कों पर जाम लगे रहना आम बात है। बीआरटीएस की बसों का फायदा एक बड़ा तबका उठा रहा है। 2009 में शुरु हुई इस परियोजना के लिए अभी भी कई सड़कों पर काम चल ही रहा है।

साबरमती नदी पर रीवरफ्रंट परियोजना का एक नजारा
इसी तरह यदि कांकरिया लेक के कायाकल्प का उल्लेख किए बिना यह यात्रा अधूरी रहेगी। अहमदाबाद के उपनगर मणिनगर के दक्षिणी भाग में अवस्थित इस झील का निर्माण 15वीं सदी में सुल्ताब कुतुबुद्दीन ने करवाया था, बताते हैं कि तब इसमें वाटर फिल्ट्रेशन की भी सुविधा रखी गई थी जो समय के साथ अपने आप बंद हो गई। धीरे-धीरे समय के साथ यह झील मरने की हालत में पहुंच रही थी। कारण वही जो आज देश भर में तालाबों के साथ हुआ या हो रहा है, प्रदूषण,  निस्तारी आदि। अहमदाबाद के पुराने निवासी बताते हैं कि एक समय ऐसा भी था जब यह कांकरिया झील आत्महत्या करने की खास जगह के रुप में भी जानी जाने लगी थी। बहरहाल! इसका कायाकल्प हुआ और ऐसा हुआ कि आप वहां जाने के बाद तारीफ किए बिना न रहेंगे। कांकरिया लेक में प्रवेश करने के लिए 10 रुपए टिकिट लगती है। 2.3 किमी के दायरे में फैले इस झील के बीच में एक छोटी महलनुमा निर्माण है जिसे नगीनावाड़ी कहा जाता है। झील के आसपास की सड़कों को बंद करके वहां पाथवे बनाया गया, झील की सीढ़ियों पर रंगीन लाइटें लगी हैं, पाथवे से होते हुए नगीनावाड़ी तक पहुंचा जा सकता है जहां रोजाना रात्रि लाइट एंड फाउंटेन का लेजर शो होता है, जिसमें अहमदाबाद शहर की पहचान बताते हुए गीत भी है। झील में मोटरबोट व नाव की सवारी का भी आनंद लिया जा सकता है। झील के चारों ओर पाथवे पर टहलते हुए उगते/डूबते सूरज का नजारा देखा जा सकता है। पाथवे के चारों ओर एक टॉय ट्रेन भी है जिसे अटल एक्सप्रेस नाम दिया गया है। यहां चारों ओर बच्चों के लिए फन पार्क, फूड कोर्ट हैं। साथ ही एक कोने में आप गुब्बारे की सैर भी कर सकते हैं। अहमदाबाद आई के नाम से शुरू किये गया ये बलून सफारी कांकरिया लेक पर टूरिस्ट को आकर्षित करने के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित हो रहा है| करीब 3000 स्क्वेयर मीटर में पूरा प्रोजेक्ट बनाया गया ये प्रोजेक्ट करीबन 10 करोड़ रुपये के खर्च पर तैयार किया गया है। 16000 स्क्वेयर मीटर कपडे से बनाया गया ये बलून 1500 किलो वजन का है जो जमीन से 360 फीट उचाई तक जाता है और अहमदाबाद का शहर का हवाई नजारा दिखाता है| हीलियम गेस से संचालित इस बलून में एक साथ 30 लोग सफ़र कर सकते है, ऐसा बताया जाता है कि अहमदाबाद में शुरू किया गया ये बलून देश का पहेला हीलियम बलून है|

इन सबके बाद बात आती है रीवरफ्रंट की। दिलचस्प बात है कि कुछ कांग्रेसजनों के मुताबिक अहमदाबाद में साबरमती रीवरफ्रंट का सपना एक समय यहां के कांग्रेसी मेयर रहे जेठालाल परमार का था लेकिन अब सारा श्रेय मुख्यमंत्री नरेंद्रमोदी ले जा रहे हैं। दरअसल अहमदाबाद शहर गोलाई में बसा हुआ है, साबरमती नदी इसे घेरे हुए है, शहर के पूर्वी और पश्चिमी हिस्से को जोड़ने के लिए नदी पर 9 पुल/ब्रिज हैं। साबरमती हालांकि बारहों महीने पानी से भरी नहीं रहती लेकिन बारिश में अच्छा पानी रहता है। शहर के बीच में स्थित नदी के दोनों तरफ करीब दस किमी के हिस्से को सौंदर्यीकरण परियोजना को ही रीवरफ्रंट प्रोजेक्ट कहा जाता है। अब जब इसके पहले चरण का लोकार्पण हो चुका है। नतीजा दिखाई दे रहा है। नदी का किनारा एक ऐसी जगह के रुप में विकसित हुआ है जहां पर लोग परिवार के साथ जाकर कुछ समय बिता सकते हैं। इस प्रोजेक्ट में वाटरस्पोर्ट्स की भी सुविधा रखी गई है जिसका लोकार्पण हाल में ही हुआ है। रीवरफ्रंट प्रोजेक्ट का काम पिछले 14 साल से चल रहा है और आगे कुछ और साल भी जारी रहेगा ऐसा प्रतीत होता है। इतना सब देखते-सुनते वापसी का दिन आ गया और सवार हो लिए ऑटो में, पत्रकारीय मन आटोवाले के साथ बात करने में लग गया, पता चला ऑटो वाला कांग्रेस का मतदाता था। उससे होने वाले विधानसभा चुनाव के बारे में सवाल पूछने पर उसने एक लाइन कही तो आगे कुछ पूछने की जरुरत ही नहीं पड़ी। उसका कहना था कि 'मोदी पर उपरवाला मेहरबान है, सबका उपरवाला, भाजपा का उपरवाला और कांग्रेस का भी उपरवाला'।

6 टिप्पणी:

संजय @ मो सम कौन... said...

दिल्ली मेट्रो का श्रेय शीला दीक्षित सरकार ने ही लिया था, इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में ऐसा होता ही है|

Awasthi Sachin said...

बढ़िया आंकलन !!
आखरी वाक्य तो अद्भुत है…
'मोदी पर उपरवाला मेहरबान है,
सबका उपरवाला,
भाजपा का उपरवाला
और
कांग्रेस का भी उपरवाला'।
अद्भुत : जारी रखें

Anonymous said...

खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर
आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर
शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें
वर्जित है, पर हमने
इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें
राग बागेश्री भी झलकता है.
..

हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
.. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से
मिलती है...
my website: हिंदी

पंकज कुमार झा. said...

तीनों किस्त एक साथ एक ही सांस में पढ़ा..खूब सुन्दर, बेहतर और संतुलित लिखा है. संतुलन का मतलब कृतिम पत्रकारीय संतुलन नहीं कि इनके बारे में अच्छा लिखा तो थोड़ा उनके बारे में भी लिख दो ताकि 'स्टोरी बैलेंस्ड' हो जाय. संतुलन मतलब ये कि जो भी आपने देखा, जैसा महसूसा उसे बिलकुल उसी तरह से बिना किसी अतिशयोक्ति के वर्णित कर दिया. सुन्दर शिल्प, अच्छी रपट.

Gyan Dutt Pandey said...

आपके ब्लॉग पर भी ऊपरवाला मेहरबान हो! शुभकामनायें।
अच्छी शृंखला!

संजय भास्‍कर said...

बढ़िया पोस्ट सर

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आपकी राय बहुत ही महत्वपूर्ण है।
अत: टिप्पणी कर अपनी राय से अवगत कराते रहें।
शुक्रिया ।