अहमदाबाद शहर ( चित्र सौजन्य विकीपिडिया) |
मोदी के बरक्स नेता की तलाश में गुजरात कांग्रेस
करीब दस साल बाद अहमदाबाद जाना हुआ। इस बीच इसी साल मई में भी जाना हुआ था लेकिन वह अति अल्पकालिक प्रवास साबित हुआ था। इस बार के ताजा प्रवास में न केवल समय मिला शहर/राज्य की तासीर को समझने का बल्कि लोगों से मिलने, चर्चा करने का अवसर मिल गया। शुरुआत यहां से कि दोपहर का वक्त था जब अहमदाबाद( वहां के स्थानीय उच्चारण में अमदावाद) रेलवे स्टेशन पर उतरा। सामने ही एक होटल पर बोरिया बिस्तर टिकाया और खाने नीचे उतरा। बहुत कुछ बदला सा लगा, भोजन भी। मिठास न केवल भोजन से गायब मिली बल्कि बहुत से मामलों में गायब थी। सब्जियों और दाल में मिठास की जगह नमक था लेकिन बहुत से मुद्दों में मिठास की बजाय शायद नमक की अधिकता से उत्पन्न कड़वाहट घुली हुई थी। इसकी चर्चा आगे। फिलहाल कुछ गुजरात की राजनीति पर क्योंकि वहां इसी साल दिसंबर में चुनाव होने हैं।
देश के किसी राज्य में विधानसभा चुनाव होने हो तो इस बार पर चर्चा होती है कि सत्ताधारी पार्टी अगली सरकार बनाएगी या फिर विपक्षी पार्टी, लेकिन जब बात गुजरात की हो रही है तो स्थानीय मीडिया इस बात की चर्चा कर ही नहीं रहा। स्थानीय मीडिया तो इस बात के आंकलन में जुटा है कि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सत्ताधारी भाजपा कितनी सीटें बढ़ाएगी, यह एक आश्चर्य की बात हो भी सकती है और नहीं भी। आश्चर्य इसलिए कि आमतौर पर ऐसा होता नहीं। लेकिन आश्चर्य इसलिए भी नहीं होना चाहिए क्योंकि यह गुजरात है जहां कांग्रेस के पास मोदी का विकल्प नजर नहीं आता, यह बात दबी जुबान से गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के संस्कार केंद्र मार्ग स्थित कार्यालय राजीव गांधी भवन में बैठे नेता भी स्वीकारते हैं। लोगों के मुताबिक आमतौर पर शांत रहने वाले इस दफ्तर में आजकल लोगों की आमदरफ्त बढ़ गई है।
1985 में गुजरात की राजनीति में पटेल( करुआ/लेउवा) समाज का दबदबा तोड़ने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री माधवसिंह सोलंकी ने खाम ( क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम) फैक्टर तैयार किया, नतीजा यह रहा कि कांग्रेस को राज्य में ऐतिहासिक सफलता मिली। अब जब भाजपा के पुराने चेहरे रहे और कांग्रेस का चेहरा बन चुके शंकर सिंह बाघेला चुनावी रण में उतर रहे हैं तो वह इसी खाम फैक्टर से फिर से आजमाने की तैयारियों में लगे हैं। यह देखना दिलचस्प रहेगा कि 27 साल पुराना यह जाति फैक्टर वर्तमान परिस्थितियों में गुजरात कांग्रेस के लिए कितना असरकारक होगा। माना जा रहा है कि शंकर सिंह वाघेला प्रभाव उत्तर गुजरात में पड़ सकता है। इसी तरह मोदी के दूसरे कट्टर विरोधी केशूभाई पटेल जिन्होंने अब भाजपा से अलग होकर गुजरात परिवर्तन पार्टी बना ली है, का दावा है कि वे इस बार के चुनाव में निश्चित ही नरेंद्र मोदी को पटखनी दे देंगे। उनके इस दावे की सच्चाई तो नवंबर-दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे ही बताएंगे लेकिन कुछ जानकारों का मानना है कि वे कच्छ-सौराष्ट्र में असर दिखा सकते हैं। इसके पीछे वे कुछ गणित भी बताते हैं, इस गणित के अनुसार पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान करीब 40 सीटें ऐसी थी जिन पर भाजपा एक से पांच हजार मतों के अंतर से विजयी हुई थी। इन सीटों पर अगर केशुभाई दमदार उम्मीदवार खड़े करते हैं तो भाजपा को नुकसान पहुंच सकता है। हालांकि यह भी एक मुद्दा ही है कि केशुभाई को इतने दमदार उम्मीदवार कहां से मिलेंगे। देने वाले इस बात का भी जवाब यह कहकर देते हैं कि जब केशुभाई को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ नेता प्रवीण मनियार और पूर्व केंद्रीय मंत्री कांशीराम राणा का साथ मिल सकता है तो फिर दमदार उम्मीदवार मिलेंगे ही। इस बीच यह भी जानना भी दिलचस्प रहा कि केशुभाई के पीछे एक बड़े उद्योगपति नरेश पटेल जो कि उन्हीं के समुदाय के हैं, हाथ और दिल, दोनों ही खोलकर खड़े हैं। गौरतलब है कि मोदी ने स्वयं अभी तक केशुभाई की पार्टी बनाने के मुद्दे पर एक बार भी मुंह नहीं खोला है, उनके तकनीकी टीम के एक नजदीकी के मुताबिक मोदी आखिर-आखिर में सिर्फ यही कहेंगे कि 'जो अपने दोनों पैर पर खड़ा नहीं हो सकता वो पार्टी क्या खड़ा करेगा'।
गुजरात में विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन के बाद होने वाला यह पहला विस चुनाव होगा। नए परिसीमन के अनुसार कुल 182 विधानसभा क्षेत्रों में से अब नौ सीटें ऐसी हो गई हैं जो मुस्लिम मतदाता बाहुल्य हैं। अर्थात यहां मुस्लिम वोटर निर्णायक होंगे। माना जा रहा है कि अपने को निरपेक्ष साबित करने के लिए इस बार प्रदेश भाजपा मुस्लिम उम्मीदवार उतार सकती है जबकि पिछले दो विधानसभा चुनावों के दौरान एक भी मुस्लिम को टिकट नहीं दी गई थी। मुस्लिम फैक्टर भी यहां एक बड़ा मुद्दा है, खासतौर पर अहमदाबाद में। माना जा रहा है कि चुनाव से पूर्व हिंदु मतों का ध्रुवीकरण किसी न किसी बहाने किया जाएगा ताकि एकतरफा मत भाजपा को मिले। एक स्थानीय पत्रकार कहते हैं कि जिन हिंदु इलाकों में 'लाउडस्पीकर' लगे होंगे, ये मान लीजिए कि वहां से कांग्रेस का सफाया तय है। अहमदाबाद में चार दिन बिताने-रहने, देखने-सुनने के बाद यह कहने से कोई गुरेज नहीं कि हिंदु-मुस्लिम के बीच भले ही रोजमर्रा की जिंदगी हो लेकिन असल में वैचारिक स्तर पर महीन लाइन नहीं बल्कि एक गहरी खाई खिंची हुई है और यह आज की नहीं बरसों से कायम है। बहुसंख्यक आबादी रत्ती भर भी भरोसा दूसरे पर नहीं करती। ट्रेन में एक सूरत निवासी सज्जन ने आशंका जताई और जताते रहे कि देख लेना भाई साहब, जल्द ही 'कुछ होने वाला है-और होकर रहेगा'।
6 टिप्पणी:
इस बंजारे की यात्रा के अगले किश्त की प्रतिक्षा रहेगी
फेसबुक पर गुजरात के भाजापाई लोगों को देख कर परिस्थितियों का अनुमान लगाया जा सकता है.
२०१२ - २०१३ और २०१४ राजनैतिक रूप से इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण वर्ष रहेंगे ऐसा मेरा मानना है.
आपकी अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा.
फेसबुक पर गुजरात के भाजापाई लोगों को देख कर परिस्थितियों का अनुमान लगाया जा सकता है.
२०१२ - २०१३ और २०१४ राजनैतिक रूप से इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण वर्ष रहेंगे ऐसा मेरा मानना है.
आपकी अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा.
बहुत ही अच्छा लेख गुजरात के राजनीतिक परिदृश्य को दर्शाता हुआ। इस चुनाव में पिछले चुनाव के मुकाबले दो-तीन फैक्टर अलग हैं लेकिन वे इतने ताकतवर नहीं है कि मोदी की सत्ता को हिला पाएंगे। वैसे गुजरात का चुनाव सिर्फ एक प्रदेश का चुनाव नहीं रह गया है। मोदी जिस प्रकार पिछले कुछ सालों में राष्ट्रीय चेहरे के रूप में उभरे हैं, इसलिए इस चुनाव पर पूरे देश की नजर होगी। आगे और बातें जानने मिलेंगी अहमदाबाद के बारे में आपसे। इंतजार रहेगा इनकी अगली कड़ियों का भैया।
गहरा, सटिक, निष्पक्ष, विश्लेषण से भरा अनुभवी लेख. बधाई संदीप..
आपने भी धार के साथ लिखना सीख लिया. लेकिन गुजरात को लेकर मुझे लेख छोटा लगा खासतौर पर जब आप ब्लॉग पर पोस्ट कर रहे हैं तो बड़े लेख की उम्मीद थी.
खैर, समय मिले तो कुछ और लिखियेगा.
आपके डायरी का इंतजार सिर्फ आज ही नहीं, बल्कि कल और आने वाला कल भी। आपकी डासरी पढ़कर आपके बारे में तो जानकारी मिल ही जाती है, लेकिन वहां(अहमदाबाद)का हाल पता चल जाता है। अगर आप डायरी क्रमांक आगे लिखते हैं तो मुझे @shekharjha2 पर लिंक पोस्ट कर दें। यह मेरे ट्वीटर का लिंक है।
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