गुजरात में परिसीमन बढ़ाएगा कांग्रेस-भाजपा की परेशानी
गुजरात
विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन में ऐसा नहीं हुआ है कि सत्ताधारी भाजपा या
विपक्ष कांग्रेस को फायदा ही हुआ हो। दोनों ही दलों के कई वर्तमान
विधायकों के लिए मशक्कत की स्थिति आ गई है क्योंकि उनके श्योर शॉट वाले
इलाके हट गए हैं तो नए इलाके जुड़ गए हैं, कुछ सीटें ही गायब हो गई हैं और
नई सीटें बनीं है। परिसीमन का असर कांग्रेस विधायकों पर भी पड़ा है तो भाजपा
के मंत्री-विधायकों की सीट पर भी। कांग्रेस के करीब 16 विधायक ऐसे हैं
जिनकी या तो सीट ही नहीं रही या फिर सीट में से कुछ इलाके हटे और नए जुड़े
हैं। वहीं दो राज्यमंत्री पुरुषोत्तम सोलंकी और जसवंत सिंह भाभोर की घोघा
तथा रणधीकपुर सीटों का विलय हो गया है। परिसीमन के बाद बदले जातिगत समीकरण
के चलते कई मंत्रियों तक के निर्वाचन क्षेत्र बदलने की चर्चा यहां राजनीतिक
गलियारों में है। अहमदाबाद में ही जमालपुर और कालूपुर विधानसभा सीटें
विलोपित हो गई तो जमालपुर सीट का खडिया विस सीट में विलय हो गया है। खडिया
इलाके में हिंदू मतदाता प्रभावी थे तो जमालपुर में मुस्लिम वोटर। विलय के
बाद स्थिति यह है कि मुस्लिम मतदाता ही निर्णायक भूमिका में है, ऐसे में
मुस्लिम उम्मीदवारों से परहेज करने वाली गुजरात भाजपा को यहां से मुस्लिम
उम्मीदवार की तलाश है।
इन सब के बीच यह तय माना जा रहा है कि मिशन हैट्रिक की तैयारी में जुटे
नरेंद्र मोदी एक बार फिर से न केवल वर्तमान विधायकों की बल्कि कुछ
मंत्रियों की भी टिकट काट सकते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान 2007 के
नरेंद्र मोदी ने दुबारा चुनाव जीतने के लिए नए चेहरों को साथ लिया था।
लगभग 50 विधायकों के टिकट काटने के साथ ही बाकी सीटों पर भी नए चेहरे उतारे
गए। नतीजा कुल 182 सीटों में 117 विधायकों के साथ तीसरी बार मोदी सत्ता
में आए। देशगुजरात डॉट कॉम के नाम से न्यूजपोर्टल चलाने वाले स्थानीय
पत्रकार जपन पाठक का आंकलन है कि इस बार भाजपा 110 से 115 सीटों तक ही
रहेगी। वहीं एक भाजपाई का आंकलन है कि 102 के आसपास सीटें भाजपा लाएगी।
अब यह उस मुख्यमंत्री के लिए एक चुनौती है जिसका नाम प्रधानमंत्री की
दौड़ में शामिल माना जा रहा हो, कि वह विधानसभा चुनाव में पिछले परफार्मेंस
को और कितना बेहतर कर सकता है। इसी बात पर न केवल स्थानीय बल्कि राष्ट्रीय
स्तर पर मोदी विरोधियों जिनमें भाजपाई भी शामिल हैं, की नजर टिकी हुई है।
इधर संजय जोशी विवाद को स्थानीय भाजपाईयों की बड़ी संख्या कोई मुद्दा नहीं
मानती। भाजपा की तकनीकी टीम से जुड़े देसाई पिछले उदाहरणों के साथ कहते हैं
कि जोशी के नेतृत्व में तो भाजपा कई चुनाव हारी थी। इनमें पालिका-पंचायत से
लेकर विधानसभा उपचुनाव भी शामिल थीं। बात छवि की करें तो नि:संदेह मोदी की
छवि शहरी इलाकों में जबरदस्त है। यह छवि महज इस बात पर नहीं टिकी है कि
उन्होंने गुजरात स्वाभिमान को बढ़ावा दिया या गुजरात गौरव को और ऊंचा किया
हो, लोग किए गए कार्यों का ब्यौरा देने लगते हैं। सेना से जुड़े एक जवान
ट्रेन में मिले। वे बताते हैं कि उनके घर में अधिकांश लोग प्राइमरी स्तर के
शिक्षक हैं। वे बताते हैं कि प्राइमरी स्कूलों में कंप्यूटराज्ड सिस्टम है
कि अगर शिक्षक तय समय से देर से आता है तो थंब इंप्रेशन के माध्यम से उसकी
अटेंडेंस ही नहीं लगेगी, इसी तरह अगर स्कूल बंद होने के समय से कुछ पहले
भी कोशिश की जाए तो थंब इंप्रेशन नहीं लगेगा। सेना के जवान की इस बात का
प्रत्यक्ष अनुभव न ले पाने का अफसोस मुझे रहेगा। वहीं जब किए गए कार्यों को
गिनाने वालों को यह तर्क दिया गया कि इतने साल सत्ता में रहने वाला काम तो
करेगा ही तब उनका कहना था कि यह सही है लेकिन जो मोदी ने किया वो सालों से
कई लोग नहीं कर पाए थे।
25 August 2012
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