छत्तीसगढ़ में पर्यावरण संरक्षण की स्थिति बहुत अच्छी है, यह नहीं कहा/माना जा सकता। फिलहाल आलम यह है कि पिछले कुछ सालों से अकेले राजधानी रायपुर शहर की बात करें तो चौड़ीकरण या सौंदर्यीकरण के नाम पर ही सैकड़ों पेड़ काट दिए गए हैं। राज्य भर में यह हालात और गंभीर है। सरकारी अमला पर्यारवण संरक्षण या वृक्ष बचाने/ पौधरोपण की बातें करता बस सुनाई देता है, अमल में लाता कम है। पर्यावरण को लेकर राज्य के कई बुद्धिजीवी चिंतित हैं, होना भी जरुरी है।
आवारा बंजारा के पाठक छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार सनत चतुर्वेदी जी के नाम से परिचित हैं। पिछले साल अगस्त के महीने में श्री चतुर्वेदी ने मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह को पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे पर पत्र लिख चुके हैं। तब उन्होंने सुझाव देते हुए मुख्यमंत्री से कहा था कि पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे पर जागरुकता के लिए नदी महोत्सव मनाने और नदियों के किनारे हरियाली के वृक्षारोपण करने का कार्यक्रम प्रदेश के सभी नदी क्षेत्रों में शुरु किया जाना जनहितकारी होगा। तब मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने श्री चतुर्वेदी के सुझाव को गंभीरता से लेते हुए इस पर पहल भी की थी। लेकिन शायद जिसे लालफीताशाही कहा जाता है वह हावी हो गई।
अब, सनतजी ने मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह को फिर से पत्र लिखकर और सुझाव दिया है। अपने पत्र में श्री चतुर्वेदी ने लिखा है कि " पर्यावरण की सुरक्षा पर सचेत रहना विकास जितना ही जरूरी है। इस सिलसिले में एक सुझाव है कि एनसीसी की तर्ज पर राज्य में पर्यावरण दस्ता बने। एक ऐसा मजबूत और विश्वसनीय ढांचा तैयार हो जिससे राज्य में पर्यावरण को लेकर वातावरण बने और नई पीढ़ी पर्यावरण पर गंभीर हो सके"।
श्री चतुर्वेदी ने आगे आग्रह किया है कि
- स्कूल कालेज स्तर पर राज्य स्तरीय ढांचा बने। प्रस्तावित दस्ते का नामकरण हो।
- पढ़ाई, प्रशिक्षण और परीक्षा के लिए पाठ्यक्रम तैयार हो।
- सफल छात्र को सर्टिफिकेट और राज्य की सेवा में महत्ता मिले।
- राज्य शासन वित्तीय व प्रशासनिक भार उठाए।
- सामाजिक वानिकी विभाग को जिम्मेदारी दी जा सकती है।
इसके बाद उन्होंने मुख्यमंत्री को अपने पुराने सुझावों को याद भी दिलाया है कि "नदियों के किनारे हरित पट्टी (ग्रीन बेल्ट) के निर्माण को प्राथमिकता मिले और वन महोत्सव की तरह नदी महोत्सव भी मनाया जाए"।
पिछली बार हमने उम्मीद जताई थी कि उनके सुझावों को मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह अमल में लाएंगे।
एक बार फिर हम उम्मीद दुहराते हैं।
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9 टिप्पणी:
सनत भाई हां बने सलाह दे हे। सरकार ला मानना चाही। दसरहा तिहार के गाड़ा गड़ा बधाई। राम राम
चतुर्वेदी जी का सुझाव अच्छा है पर सरकार संरक्षित आयोजन / उपक्रम हो जाने मात्र से ही इसकी सफलता तय नहीं मानी जा सकती ! स्कूलों / कालेजों / विश्वविद्यालयों में आपने सरकार पोषित "राष्ट्रीय सेवा योजना" का हश्र देखा ही है और अगर नहीं देखा तो "इस" पर एक अदद स्टोरी ज़रूर कीजियेगा !
यदि सरकार / निगम / पालिकायें / पंचायतें हर एक घर पर एक वृक्ष अनिवार्य कर दें तो कैसा रहेगा ? इसके लिए स्थान की कमी हो तो उसे सरकार स्वयं पूरा करे और पानी की व्यवस्था भी ! पर पौधे की फ़िक्र नागरिकों की जिम्मेदारी हो !
शासकीय कोष और पर्यावरण मित्रता गठजोड़ के पुराने संस्थागत 'नमूने' यत्र तत्र सर्वत्र पहले ही बिखरे हुए हैं इसलिए एक और 'नमूना' पैदा करना कम से कम मुझे स्वीकार्य नहीं हो पा रहा है !
नागरिक अपने पैसों से पौधा खरीदें और लगायें , पानी की कीमत भी चुकायें,सार्वजनिक स्थलों पर पौधे लगाने की स्थिति में नागरिकगण संयुक्त रूप से एक केयरटेकर का खर्च भी बर्दाश्त करें ! पूजा पंडालों और जुलूसों में जी खोलकर चन्दा देने वाले नागरिकों से इतनी सी अपेक्षा तो की ही जा सकती है कि वे कम से कम देवताओं के वास वाले वृक्ष ही लगायें :)
इसकी एवज में सरकार उनके सम्पत्तिकर वगैरह में कोई प्रोत्साहन योजना लागू कर सकती है ! मेरा आशय यह है कि वृक्ष मित्र योजना नागरिकों का अनिवार्य दायित्व हो फिर सरकार भले ही इसके लिए कोई इंसेंटिव तय कर दे ! नौकरशाही और उस पर आश्रित छात्रों की कारगुजारियों पे ज़्यादा भरोसा ठीक नहीं है !
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच 659,चर्चाकार-दिलबाग विर्क
पर्यावरण संरक्षण सबके जीवन का अभिन्न अंग हो।
ONLY WRITING IS NOT ENOUGH.....C.M. HAS RECEIVED SO MANY LETTERS PER DAYS.IT SEEMS LETTER AND SUBJECT IS NOT IMPORTANT ,C.M. EXIST IN THE MIND
बहुत सुन्दर , सार्थक प्रस्तुति,आभार.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें .
अच्छा लगता है यह पढ़ कर कि लोग मानते हैं मुख्यमंत्री छाप लोग आम आदमी के ज्ञापन आदि को तवज्जो देते हैं।
वास्तव में देते हैं?
आपको व आपके समस्त परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !!!
समाज के लोगों को ही पहल करनी होगी सरकारी काम तो फिर सरकारी ही होते हैं । वृक्षारोपण और संवर्धन दोनो जरूरी हैं ।
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