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26 July 2010

राजनीति और एनएसयूआई, दो तस्वीरें

फिल्म राजनीति का पोस्टर    

एनएसयूआई ज्वाईन करने की अपील

ये दो तस्वीरें हैं। एक तो जाहिर है हाल की चर्चित फिल्म राजनीति का पोस्टर  और दूसरा यहां रायपुर के एक इलाके में लगी एनएसयूआई की होर्डिंग की।

दूर से एक नजर में इस होर्डिंग को देखने से राजनीति फिल्म का ही पोस्टर सा लगता है लेकिन  जब स्पष्ट दिखता है तो समझ में आता है कि यह एनएसयूआई ज्वाईन करने की अपील करते हुए लगाया गया है।

फिर विचार आता है कि क्या संदेश छिपा है इसमें।

"राजनीति फिल्म के स्टाइल वाली राजनीति ज्वाईन करें"?

अर्थात वैसा ही खून-खराबा?

एनएसयूआई की इस होर्डिंग में दिख रहे चेहरों  में से कितने के उपर कितने मामले दर्ज हैं……
पता नहीं कि कितनों पर हैं और कितनों पर एक भी नहीं।

क्या अब राजनीति का बस यही पर्याय रह गया है या फिर छात्रों को एनएसयूआई/राजनीति के प्रति लुभाने का और कोई रास्ता बचा नहीं रह गया है……

9 टिप्पणी:

sonal said...

filmein aur unkaa prabhaav

राज भाटिय़ा said...

कोई पूछने वाला भी नही इन्हे?

मनोज कुमार said...

यह रचना विषय को कलात्‍मक ढंग से प्रस्तुत करती है।

mausi said...

बहुत रोचक है। मुझे अच्छा लगा। लेकिन अगर जापान में ऐसी तस्वीर बनाएँगे तो 'कपटी'
कहा जाएगा...

प्रवीण पाण्डेय said...

रोचक है दिशा व दशा।

36solutions said...

बढि़या तार जुड़ा है।

Sanjeet Tripathi said...

इस पोस्ट पर गूगल बज़्ज़ के माध्यम से सरिता ठाकोर का कथन:-

Sarita Thakore - Thanks Sanjeet for posting the photographs.

Film entertainment ke alawa education ka bhi daaitva puraa karti hain. Par hamare is samay mein Rajneeti, ya Sarkar Raj jaisi filme politics ke power game ko kaise khaila jaaye woh sikhati hai, to Rang de Basanti jaisi film aam aadmi ko awaaz uthane ke liye prerit karti hai, Ab yeh to aaj ke navyuvak hi jaane ki jo azaadi unhe virasat mein mili hai ab yeh kaise sambhale taaki vapas yeh usi desh mein hi apne vichaaron se hi khud gulaam na ho jaaye aur aapas mein lad marein. Yeh is samay aur umar mein itna to jaan-samajh gayein honge ki in power ko khelne ki soch aur sadhan kahan se aata hai

aradhana said...

बहुत दिनों से आपके ब्लॉग पर आने की सोच रही थी. अच्छा मुद्दा उठाया है आपने रोचक ढंग से. मैंने अभी तक राजनीति फिल्म नहीं देखी है. पर जहाँ तक छात्र राजनीति का सवाल है... दिल्ली में मामला थोड़ा अलग है. यहाँ बिना खून-खराबे के राजनीति की जा सकती है.

वीरेंद्र सिंह said...

Tripathi ji...sawaal to bahut achha hai. Apke blog par aaker achaa lagaa.

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