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02 February 2010

ब्लॉग के बहाने प्रतिक्रियावादियों की जमात खड़ी की जा रही है!

तीन दिन पहले  शहर के एक वरिष्ठ पत्रकार का फोन आया, उनके साथ एक अलग ही आत्मीयता है। वे ब्लॉग जगत में अवतरित हो चुके हैं। उन्होंने फोन किया था,ब्लॉग पर विजिट काउंटर आदि की जानकारी लेने के लिए।
चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि " यार देख, ये ब्लॉग-व्लॉग के बारे में न,  मेरी अवधारणा बहुत अच्छी नहीं है"।

अपन ने कहा जो भी अवधारणा है बताईए तो सही।

इस पर उनका कहना था  " देखो, ये जो ब्लॉग-व्लॉग है न ये बस लोगों को प्रतिक्रियावादी बनाने की एक साजिश है, लोग ऐसे ही ब्लॉग पर लिख लिख कर प्रतिक्रिया देंगे और प्रतिक्रियावादी बनते जाएंगे। फिर ऐसे ही यह सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ प्रतिक्रियावादियों का संगठन खड़ा करने की साजिश है"।


अपन ने उनसे कहा  " भई अगर ऐसा है तो, आप क्यों ब्लॉग पर आए हैं"?

अब उन्होंने कहा " देख यार, मैं तो ब्लॉग जगत पर महज इसलिए आया हूं कि मेरा जो लिखा हुआ है वह सुरक्षित रहे, बस! यही चाहता हूं"।

अब अपनी बारी थी, अपन ने उन्हें समझाया  "भैया साल 2006 में ऐसा हो चुका है कि भारत में किन्ही कारणवश या भ्रमवश ब्लॉगस्पॉट के ब्लॉग्स को बैन किया जा चुका है। मान लो ऐसा फिर से कभी होता है या समूचे ब्लॉग्स को ही बैन कर दिया जाएगा तब आपका यह अपना  लिखा हुआ सुरक्षित करना किस काम आएगा? न तो आप खुद अपना ब्लॉग खोल पाओगे, न हीं देश में कहीं भी आपके पाठक उसे खोलकर पढ़ पाएंगे"

अब वे थोड़े चौकन्ने हुए, " ऐसा क्या"?

अपन: " हां ऐसा हो चुका है, जुलाई 2006 में, आप कहो तो मै इससे संबंधित लिंक्स आपको ईमेल में भेज देता हूं पढ़ लेना"।

इसके बाद वे थोड़े चिंतित हुए " यार मै तो सोच रहा था कि यह सुरक्षित रहेगा बस इसीलिए ब्लॉग पर अपना लिखा डाल रहा हूं, लेकिन जैसा तुम बता रहे हो उससे तो लोचा है"। फिर क्या किया जाए"?


(वैसे जो नहीं जानते कि 2006 में ऐसा हुआ है, वे इसके बारे में ज्यादा जानकारी यहां, यहां, यहां, यहां बीबीसी अंग्रेजी में और बीबीसी हिंदी में  से ले सकते हैं।

यह हाल तब का है जब मुश्किल से सौ से सवा सौ हिंदी ब्लॉग हुआ करते थे। तब अपन खुद ब्लॉगजगत में कूदे नहीं थे, बस पाठक थे। ब्लॉगस्पॉट पर इस बैन के होते ही, तब के कई ब्लॉगर ब्लॉगस्पॉट [ blogspot ] छोड़कर वर्डप्रेस { wordpress} की ओर दौड़े और कुछ ने वहां मुफ्त ब्लॉग [ free blog ] बनाया था तो कुछ ने डोमेन {domain} लेकर।)

तो साहिबान यह हाल है, ब्लॉग लिखना है तो इसलिए लिखना है कि अपना लिखा सुरक्षित हो सके लेकिन वहीं ब्लॉग के बारे में  अवधारणा ऐसी कि  "इसके बहाने प्रतिक्रियावादियों की जमात खड़ी की जा रही है",

क्या ख्याल है आप लोगों का?

14 टिप्पणी:

Sanjay Karere said...

गलत सोच है आपके दोस्‍त का। फिर भी उन्‍हें ब्‍लॉग जगत में आने दें ताकि उनका मुगालता दूर हो जाए। हां य‍ह सलाह जरूर दें कि अपने डोमेन पर रहेंगे तो शायद ज्‍यादा अच्‍छा है।

Udan Tashtari said...

सबके अपने अपने रहस्य हैं कि क्यूँ लिख रहे हैं. प्रतिक्रिया वाद तो बहुत बाद में जन्मता है, रहस्यवाद तो खुलने के पहले ही.

Randhir Singh Suman said...

nice

डॉ. मनोज मिश्र said...

यह कहना कठिन है...

अजित गुप्ता का कोना said...

लेखन तो पूर्णतया प्रतिक्रिया ही होता है। कोई विचार अच्‍छी लगी या बुरी हम उसी से प्रेरित होकर लिखते हैं तब प्रतिक्रिया ही करते हैं। कभी मन उदास होता है तब प्रतिक्रिया करते हैं कभी खुशी को अभिव्‍यक्‍त करने के लिए प्रतिक्रिया करते हैं। यह प्रतिक्रिया करने का भाव ही न हो तो लेखन होगा ही नहीं। आज जो समाज में चुप्‍पी सी लगी है वह इसी कारण है कि लोग प्रतिक्रिया ही नहीं करते, बस सब कुछ सहन करते हैं। अपना लिखा सुरक्षित रहने की बात भी बेमानी सी ही है। जब हम ही नहीं रहेंगे तब अपना लिखा कितना सुरक्षित है और कितना नहीं कौन जाने? अच्‍छा लिखा होगा तो लोग अवश्‍य सुरक्षित रखेंगे लेकिन यदि अच्‍छा नहीं है तो फिर रद्दी में ही जाएगा।

Aashu said...

सब के लिए ब्लॉग लिखने का कारण अलग अलग होता है। मेरा क्या है ये ठीक से मैं भी नहीं जानता मगर फिर भी लिखता हूँ और चाहता हूँ कि लोग मुझे जानने कि कोशिश करें ब्लॉग के माध्यम से।
खैर, प्रतिक्रियावाद को बढ़ावा दे रहा है या नही ब्लॉग लिखना इस पर कुछ नहीं कहना चाहूँगा मगर इतना जरूर कहना चाहूँगा कि ब्लॉग लेखन से नकारात्मकता का विकास जरूर हो रहा है। राजनितिक घटनाक्रमों पर या सामाजिक गतिविधियों पर मैंने जितने भी ब्लॉग पढ़े हैं वो सब ज्यादातर नकारात्मक ही हैं। कही भी किसी के लिए एक भी बराई के शब्द नहीं मिले, मिली तो सिर्फ आलोचनाएँ। क्या हर चीज में इस तरह से गलतियां ढूंढना सही है। और क्या हमारा फ़र्ज़ है नहीं कि हम जो सही हैं उनकी प्रशंसा भी यहाँ ब्लागस्पाट पर करें?

डॉ महेश सिन्हा said...

" फिर ऐसे ही यह सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ प्रतिक्रियावादियों का संगठन खड़ा करने की साजिश है"

ये कौनसा प्रतिष्ठान है?

लोगों के मिल रहे इस व्यापक मंच के लिए ऐसी सोच नकारात्मक ही कहलाएगी

निर्मला कपिला said...

ये तो नकारात्मक सोच है अजित गुप्ता जी ने सही कहा है । आभार्

Anil Pusadkar said...

ham pratrikriyavadi hi sahi,magar ,
ham to blogging karega,duniya se nahi darega,chahe ye ................

Nitish Raj said...

प्रतिक्रियावादी ही कोई बन जाए वो ही काफी, हर बात पर तो कोई भी प्रतिक्रिया नहीं करता। यदि
आपके मित्र कर सकें हर बात पर प्रतिक्रिया तो और भी अच्छा।

कडुवासच said...

.... शायद कभी ऎसा हो, पर इसकी संभावना कम ही जान पडती है!!!

anuradha srivastav said...

लेखन में फिर से सक्रियता व रोचक लेख के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद । हम प्रतिक्रियावादी है या कुछ और अभी तय नहीं कर पा रहें हैं खुद की भूमिका के बारें में। अब तो गम्भीरता पूर्वक मनन करना ही होगा।

Urmi said...

ब्लॉग लिखने का उद्देश्य सबका एक जैसा नहीं होता! मैं ब्लॉग लिखती हूँ क्यूंकि मुझे बहुत ख़ुशी मिलती है और नए ब्लोगेर मित्रों से परिचय होने का सौभाग्य प्राप्त होता है!

Gyan Dutt Pandey said...

वाह! ब्लॉग एक हाथी है, जिसे आंखों पर पट्टी डाले भिन्न भिन्न प्रकार के लोग देख रहे हैं। कोई कान देखता है, कोई सूंड और कोई पांव! :)

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