'उपलब्धि' के लिए बने स्टेडियम में लगेंगे आज चौके-छक्के
छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार व उसके मंत्री चुनाव आचार संहिता लागू हो जाने की आशंका से कितने खौफ में है यह नई राजधानी परिक्षेत्र के परसदा गांव में अंतरराष्ट्रीय मानकों के तहत 'बन रहे' स्टेडियम के लोकार्पण कार्यक्रम से ही समझा जा सकता है।
गौरतलब है कि मंगलवार को स्टेडियम में हुई प्रेस कान्फ़्रेंस में राज्य के खेलमंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने यह कहते हुए पत्रकारों के सवालों को खारिज कर दिया कि 'पत्रकार सिर्फ़ सवाल पूछता है, बहस नही करता'। वहीं उन्होंने यह कहते हुए कई सवालों को भी दरकिनार कर दिया था कि 'खेलने के लिए सबसे जरुरी मैदान होता है और वह तैयार है'। पर वे सवाल अपनी जगह पर अब भी कायम हैं और जवाब देने वाला कोई नही है। एक सवाल यह भी था कि आने वाले क्रिकेटर्स का भुगतान कौन और किस मद से कर रहा है।
दर-असल गुरुवार को यहां उद्घाटन मैच होने तो जा रहा है जिसमें भारतीय क्रिकेट टीम के कुछ वर्तमान और कुछ पूर्व क्रिकेटर खेलेंगे। पर स्टेडियम में इंटीरियर और फिनिशिंग का इतना काम बाकी है कि उसे पूरा होते-होते ही साल भर लग जाएगा। पेवेलियन, वी आई पी और मीडिया गैलरी में दीवारों और सीलिंग पर तो सफेद कपड़ों के पर्दे लगाए जा रहे हैं ताकि उद्घघाटन के दौरान सच्चाई छिप सके।
अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्टेडियम की समूची लागत 98.45 करोड़ रुपए है जिसमें से खेलमंत्री के मुताबिक अभी तक 60 करोड़ खर्च हुए हैं अर्थात 38.45 करोड़ रुपए का काम अभी बचा है।
ध्यान देने लायक बात यह भी है कि चुनाव आचार संहिता लागू होने के पहले ही लोकार्पण करने और इसे अपनी उपलब्धि बताने की सरकार व उसके मंत्री की ज़िद के चलते अभी तक स्टेडियम में जो भी काम हुए हैं वह एक तरह से आनन-फानन में हुए हैं। इस 'आनन-फानन' में गुणवत्ता का कितना ध्यान रखा गया होगा यह भी विचारणीय है।
बहरहाल!
बधाई छत्तीसगढ़, तुम्हारे खाते में क्रिकेट बोर्ड हो न हो पर एक अदद स्टेडियम जरुर दर्ज हो गया।
14 टिप्पणी:
उदघाटन करने को चुनाव लड़ा था,
पुराने एक भी बाकी ना छोड़ गए
ये कैसे छोड़ जाएँ?
बेटे तेरहीं करें ना करें
इस लिए खुद ही कर जाएँ।
चलिये स्टेडीयम तो अपने हाथ लगा इतना ही सुकुन देता है रहा इन नेताओ का तो इनसे ऐसी ही उम्मीद थी इसिलिये आश्चर्य नही हुआ !!कभी यहा शायद हम भी मैच देखा करेंगे ये सोच एक उत्साह पैदा करती है!!
sanjeet babu sahi likha aapne.sirf stadium hi hai manyata ka ata-pata nahi hai. hum log divisonal cricket asso. ke padadhikari the aur hai bhi, aur aapko batate hue dukh ho raha hai ki aaj bhi hum mp se sambadh hai.khair sahi likha,likhna jaruri hai,kal maine bhi likha tha,ek se bhale do aur teen bhi honge chaar bhi ............
अरे कुछ तो हुआ। वैसे अगर क्रिकेट के साथ ये लोग ऐसा कर सकते हैं तो सोचिये बाकी खेल किस खाते में जाते होंगे?
गैलरी में दीवारों और सीलिंग पर तो सफेद कपड़ों के पर्दे लगाए जा रहे हैं ताकि उद्घघाटन के दौरान सच्चाई छिप सके।>>> उद्घाटन जरूरी है; पर्दे तो मजबूरी है!
" aapke blog se chattisgarh ke barey mey janney ka mauka milta rehta hai, ab ye to rajneete hai, hr jgeh apnee hee chaleyge, fir bhee ek nya stadium ek new shuruat, ye to achee pehl hai hee, wish kee is jgeh ka naam games mey roshan hoga"
Regards
बिना किसी योजना के अंधाधुंध कुछ भी करते जाना इस देश का दुर्भाग्य ही है.
अच्छी जानकारी दी है. आभार
संजीत आज बड़े दिनों बाद आपको देख कर अच्छा लगा। नेता को तो सिर्फ़ उद्घाटन से मतलब होता है माने नाम का पत्थर लग जाए बस।
पर चलिए कम से कम इसी बहाने एक स्टेडियम तो बन गया।
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अमें पंडित जी,
ये देश है.. थोथे चाटुकारों का..
अब आगे की लाइनें ख़ुद ही गढ़ लो..
मुझसे क्यों कहलवाना चाहते हो कि एक तबका अपनी सुहागरात का उद्घाटन फ़ीता मंत्री नामधारी ज़िना-वर से गुपचुप कटवा लेता है, ताकि शेष जीवन अपनी ब्याहता के भौतिक महत्वाकांक्षाओं को आराम से पूरा करता रह सके । ’ ज़मीर ’ के शेयरधारक टुकुर टुकुर ताकते रह जाते हैं !
राजनीति तो नहीं जानते लेकिन यहाँ आकर छत्तीसगढ़ के बारे मे पढ़कर अच्छा लगता है.
khabar adhuri hai. pura likha kar
jo prasn utaya hai khilariyo ke bhugtan ka uska jabab bhi do.
vivek mishra
गुणवत्ता से नेता जी को क्या लेना-देना । उन्हें तो बस वाहवाही से मतलब है। चुनावी बुखार चढ चुका है देखिये आगे क्या-क्या होता है।
kisi bhi bahane se stadium ki shuruat to hui .vaise aapka kehna bhi sahi hai.
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