हमारे देश के राजनीतिक दल स्त्रियों को 33फीसदी आरक्षण देने के मुद्दे पर चाहे कितना भी पक्षधर होने का दावा करें पर जब बात इसे अपने दल में लागू किए जाने का दावा करने की हो तो साफ समझ में आ जाता है कि हमारे देश की राजनीति में अन्य "वाद" की तरह 'पुरूषवाद' भी कितना हावी है।
बतौर उदाहरण छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को ही लें,कांग्रेस आलाकमान भले ही विधानसभा चुनाव में टिकट के लिए युवाओं के साथ-साथ महिलाओं की भी भागीदारी बढ़ाने की बात करे या फिर महिलाओं को राजनीति के हरेक स्तर पर 33फीसदी आरक्षण दिए जाने का समर्थन करने का दम भरे। लेकिन राज्य के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता इस बात को लेकर एकदम उदासीन है।
खबरों के मुताबिक समिति के बैठक के दौरान वरिष्ठ नेताओं ने मिलकर राज्य की 90 में से 74 विधानसभा सीटों के लिए नामों का पैनल तैयार कर लिया है। इनमें से सिर्फ़ चार सीट पर महिलाओं के नाम है। पैनल के नामों का अध्ययन करने से पता चलता है कि चित्रकोट के पैनल में प्रतिभा शाह, बीजापुर के पैनल में नीता रावलिया, बिल्हा में वाणी राव का नाम शामिल है। इसके अलावा कोटा विधानसभा सीट से वहां की वर्तमान विधायक रेणु जोगी का नाम अकेले है। अब यह तो जगजाहिर सी बात है कि रेणु जोगी का नाम अकेले इसलिए नही शामिल किया गया है कि वे एक महिला है। बल्कि उनका नाम यहां से अकेले इसलिए रखा गया है क्योंकि वे पूर्व मुख्यमंत्री व सांसद अजीत जोगी की पत्नी हैं।
ऐसा नही है कि कांग्रेस को टिकट पाने के लिए महिलाओं से आवेदन मिले नही है या उनमें कोई जीतने वाली हैं ही नही ( वैसे इस जीत सकने वाले/वाली की परिभाषा तो कांग्रेस के नीति-निर्धारक और टिकट देने वाले ही बेहतर बता सकते हैं।) खबर है कि कांग्रेस को 90 सीटों पर टिकट के लिए करीब 3900 आवेदन मिले हैं जिसमें से डेढ़ सौ से ज्यादा आवेदन महिलाओं के ही हैं।
यह तो हुई कांग्रेस की बात जिसकी राष्ट्रीय अध्यक्ष एक महिला ही है, अब देखतें है कि राज्य में भाजपा कितनी महिलाओं को पैनल में शामिल कर टिकट देती है।
हमारे देश की सब नारीवादी संगठन चुनाव के समय ऐसे दलों के बहिष्कार के बारे में क्यों नही सोचतीं?
क्या इसलिए कि वे खुद भी नारीवाद के नाम पर सिर्फ़ राजनीति ही कर रही होती है?
18 September 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
15 टिप्पणी:
महिलाओं के आरक्षण के मुद्दे पर तो सब लोग गोलमाल बाते करते हैं।
घुघुती बासूती जी को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिये शुभकामनायें।
आप की बात विचारणीय है।
बेहतरीन...आलेख!!
हमारे देश की सब नारीवादी संगठन चुनाव के समय ऐसे दलों के बहिष्कार के बारे में क्यों नही सोचतीं?
"interetsing artical and the question raised in the end is really to be given a thought.... but i know this question will be remain unanswerd"
Regards
पुरूषवादी सोच ने नारी को हमेशा से दोयम दर्जे का समझा है, शायद यही प्रमुख कारण है। आपके आलेख ने सोचने को मजबूर किया ..........
शुक्रिया इस मुद्दे पर लिखने के लिये।
एक दशक से देख रहा हूं, महिला आरक्षण की नौटंकी। महिलाओं को शेयर देने की इच्छा शक्ति नहीं है। दिखावा भर है।
महिलाओं के आरक्षण का मुद्दा सिर्फ भ्रम पैदा करने के लिए है। कोई भी राजनीतिक दल महिलाओं के आरक्षण के पक्ष में नहीं, वह सिर्फ नारा उछालता है ताकि उसे नारीविरोधी न समझ लिया जाए।
का गोठियायव गा रोवासी आथे ,महिला विधेयक सुनसुन के झम्मासी आथे ,गा रोवासी आथे !!
हमारे देश की सब नारीवादी संगठन चुनाव के समय ऐसे दलों के बहिष्कार के बारे में क्यों नही सोचतीं?
क्या इसलिए कि वे खुद भी नारीवाद के नाम पर सिर्फ़ राजनीति ही कर रही होती है?
दोनो प्रश्नो के जवाब मिल जाये तो बहुत कुछ बदल जाये !!
बी जे पी क्या करेगी वो तो अभी से ही पता है, सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं लेकिन मुझे खुशी है कि आप ने इस मुद्दे को एक बार फ़िर बहस पटल पर लाया। चर्चा चलती रहेगी और मुद्दा गरमाया रहेगा तो कभी न कभी तो बदलाव आयेगा ही
लेख पसन्द आया। यदि राजनैतिक दल स्वयं महिलओं को चुनाव में खड़ा करें तो आरक्षण की आवश्यकता ही नहीं रह जायेगी। पर माँगे से कभी कुछ नहीं मिलता। हमें स्वयं को इतना शक्तिशाली बनाना होगा कि ये दल ही कहें कि हमारे दल की तरफ़ से चुनाव लड़ो।
घुघूती बासूती
Very true... and rightly pointed out...
राजनीति मे बातें बडी-बडी और काम शुभानअल्ला ! ................ अच्छा विषय है लेख में विस्तार की आवश्यकता है!
http://bhatiyajantatalji.blogspot.com/2008/08/please-see-who-have-fueled-riots.html
Please read my blog and be my friend at orkut.I have done investigative journalism helped by kartavya parayan police officers and journos.
mahilao ka rukh samajh to aagaya lekin delhi,up,rajashthan,me cm ka kya kahna hain ......
Post a Comment