सबसे तेज़ खबरिया चैनल के मुताबिक आज रात दस तक की ताज़ा खबर यह है कि जयपुर में विश्व हिंदू परिषद व बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने एक मिशनरी स्कूल के प्रिंसिपल के घर में घुसकर उनसे मारपीट की। यह सब कार्यकर्ता लाठी व लोहे की राड से लैस थे व चेहरे पर कपड़े बांधे हुए थे। बताया जाता है कि घटना स्थल मुख्यमंत्री निवास से सिर्फ़ एक किलोमीटर व इलाके के थाने से सिर्फ़ आधे किलोमीटर की दूरी पर है।
जब इस घटना का वीडियो चैनल पर दिखाया गया तो उसमें बाकायदा इन कार्यकर्ताओं को घटना स्थल से कुछ दूर पहले एकत्रित होते,चेहरे पर कपड़ा बांधते दिखाया गया, फ़िर कार्यकर्ता सड़क पर पैदल चलते हुए प्रिंसिपल के घर पहूंचते है और डोर-बेल बजाते है ( इस बीच कैमरा उनके साथ ही लगा हुआ है) फ़िर यह कार्यकर्ता दरवाज़ा खुलवा कर घर के अंदर घुसते हैं और हमला कर प्रिंसिपल को लहू-लूहान करते हैं कैमरा तब भी इनके साथ ही रहता है।
उपजे सवाल-:
1- क्या रिपोर्टर को पूर्व सूचना देकर बुलाया गया था कि फ़लां-फ़लां जगह जा रहे है, ऐसी हरकत करने, सो कृपया आप कवरेज करने आ जाओ। क्योंकि मारपीट करने वाले अपनी हरकतों की खुद विडियो रिकार्डिंग कर मीडिया को प्रसारण के लिए देने से तो रहे।
2- जब कार्यकर्ता प्रिंसिपल पर हमला कर रहे थे तो कैमरा मैन व रिपोर्टर ने अपने खबरी होने का धर्म तो निभाया ,लेकिन एक ज़िम्मेदार शहरी होने के नाते उन्हें रोका क्यों नही?
3- अगर रिपोर्टर को पूर्व सूचना थी तो उसने पुलिस को खबर क्यों नही की, क्या रिपोर्टर एक जिम्मेदार शहरी नहीं?
ऐसा नही है कि इससे पहले इस तरह की मारपीट की घटनाओं की कवरेज़ नही हुई है या कवरेज़ के दौरान मीडियाकर्मियों ने हस्तक्षेप ना किया हो।
मुझे याद है कुछ महीनों पहले केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री की प्रेसवार्ता के दौरान एक शहीद की विधवा ने अपने उपर मिट्टीतेल/पेट्रोल डालकर आग लगाने की कोशिश की ही थी कि वहां मौके पर उपस्थित एक मीडिया कर्मी ने ही उसे रोक कर पकड़ लिया था।
लेकिन राजनैतिक घटनाक्रमों के दौरान होने वाले इस तरह के मारपीट में जब मीडिया हस्तक्षेप नही करता तो जनमानस के मन में उपरोक्त सवाल उठना स्वाभाविक है।
29 April 2007
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13 टिप्पणी:
सही कह रहे हैं आप । ऐसे प्रश्न सबके मन में आते हैं ।
घुघूती बासूती
जाने दो संजीत....और भी गम हैं इस जमाने में.. क्यूँ जाना चाहते हो इस दिशा में?? हम पर विश्वास कम हुआ जाता हो तो कहो?? जाने दो इस तरह के उन्मादों को...चलो, कहीं समुन्दर के किनारे टहलें..रेनफारेस्ट की अहमियत को समझें...मन है तुम्हारे विचार जानूँ...तुम ही काहे जबदस्ती भटकने जा रहे हो..चलो. हम तुम चलें.. हाँ, कहो न भाई!!!
सही सवाल उठाया है आप्ने मित्र.. रिपोर्टर मनुष्य है कि नहीं.. ?
बडा दुख हुआ.. लेकिन लगता है कि रिपोर्टर और शहरी दो अलग कौम है..
संजीत जी, आप सही कह रहे हैं। मीडिया को इस तरह की टीआरपी वाली ख़बर आसानी से मिल रही हो तो वह ऐसी घटना को होने से क्यों रोकना चाहेगा! वह तो ऐसी ख़बरें खोज निकालने के लिए दिन-रात एक किए रहता है।
मीडिया की इस मानसिकता को बदलने का कोई सुझाव हो तो बताइए।
संजीत जी पहले आपने टीवी वालों को चोलाबदलने वाला कहा था न फिर भी आप, उनसे जिम्मेदार शहरी होने की अपेक्षा कर रहे हैं यह समाचार एक दो और चैनलों में दिखाया गया सभी चैनल वालों नें कहा कि यह उनकी एक्सक्लोजिव खबर है और उन्हे ही सबसे पहले यह फुटेज मिली है हम अपनी बेशर्मी प्रस्तुत कर रहे हैं. किसी नागरिक को सरेआम पिटते देखते हुए भी मसाला तैयार करने के लिये. रोकने के बजाय कैमरे में कैद कर रहे हैं और लोगों से पूछ रहे हैं पीटने की जिम्मेदारी ?आपकी क्या जिम्मेदारी है ???
सौ प्रतशित यह घटना निंदनीय है किन्तु ऐसे घटनाओं को सुनियोजित तौर पर कवर करना एवं मिर्च मसाले के साथ प्राईम टाईम पर प्रस्तुत करना टी आर पी बढाने की मांसाहारी भूख है और अब हमें भी यह समझ लेना चाहिए कि जो टी वी में दिखाया जा रहा है वह शाश्वत नही है किन्तु उसके करीब होने का छल है. मैं आपके चिटठे के विषय पर बहुत कुछ लिख सकता हूं किन्तु जो आपने महसूस किया वही सब नें महसूस किया है भारतीयता में धैर्य का भी स्थान है .
गुरुवर समीर जी, जमाने में गम बहुत से हैं मानता हूं पर किसी भी गम से आंखें नहीं मूंदी जा सकती ना।एक तरह से खीझ आती है जब इस तरह के प्लांटेड स्टोरी को देखता हूं अक्सर खबरिया चैनलों में। और रहा सवाल आप पर विश्वास कम होने का तो प्रभु इसका तो सवाल ही नहीं उठता,
आपने जो टिप्पणी में लिखा है, कहीं बहुत अंदर तक छू गया मुझे। आभार!!
संजीव भाई, धन्यवाद
स्वागत है आपका अगर आप इस चिट्ठे के बारे में लिखें जैसा कि आपने कहा।
यही तो हमारी सबसे बड़ी समस्या है कि भारतीयता में धैर्य का ही बड़ा स्थान है। जानें क्यों हम भारतीयों में सहनशीलता कुछ ज्यादा ही है। वैसे मैं आम भारतीय के संदर्भ में सहनशीलता की बजाय " निस्पृह होना" शब्द का प्रयोग किया जाना पसंद करूंगा।
यह प्रश्न हर जागरूक टी वी दर्शक के दिमाग मेँ आना चाहिये. टी वी चैनल की पूरी की पूरी टीम इस अपराध को रोकने मेँ सक्षम होती.
किंतु इस एक्सक्लुसिव खबर से खबरिया का प्रमोशन हो सकता है, अपराध को रोकने से उसे क्या मिलता? बेचारा मार खाता और पुलिस केस बनता सो अलग.
अरविन्द चतुर्वेदी
भारतीयम http:baarateeyam.blogspot.com
पुनश्च: अपने चिट्ठे पपर अन्य वेब्साइट् आदि का लिंक्स कैसे बनाये जा सकते है? कुछ प्रकाश डालेँ.
अग्रिम धन्यवाद.
मैंने रविवार के चिट्ठे ध्यान से नहीं देखे इसलिए यह पोस्ट चुक गया. आपने सजगता का परिचय देते हुए बहुत अच्छी तरह से लिखा है. साधूवाद.
sanjeet ji,
sabse pehle aapka dhanyawaad...aapki tipani mere chitthe pe dekhi....mein zaroor diye hue link par sampark karoongi...
aapka chittha padha....
aapke sawal mann-mashtiskh ko masaledar,chatpati,teekhi khabro ke sankeran drastikon se dyan khichkar is manviya pehlu se zaroor rubaroo karati hain....
pehle kabhi aisa socha nahin....kyunki jyadatar in khabariya channelon se wasta nahin padta yahan pardesh mein...
dhanywaad
Thanks for you work and have a good weekend
अरे छोङो यार....इसाई मिशंरियों के साथ तो यह बहुत पहले होना था.
कहने की कोई बात नहीं है की इसाई मिशनरी इस दुनिया में कैसर के सामान हैं. कुछ भी हथकंडे अपनाते हैं लोगों को इसाई बनाने के लिये.
पक्का कुछ किया होगा मिशनरी वालों ने. मैने खुद अपनी आंखों से इन मिशनरी वालों को लोगों को गाय का मांस खिलाते देखा है, ताकि वह भोले भाले गंवई लोग इसाई बन जायें.
एक भला मानस ईसा तो मर गये, पर छोङ गये ये मिशनरी. कहाँ वह संत, कहाँ ये शैतान ...
किसी शैतान पर विश्वास कर लो, पर इन मिशनरियों पर नहीं....
this is one of the facet of indian society and media
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