आवारा बंजारा कभी-कभी कुंडली बनाता है ऑर्डर आने पर। चौंकिए मत, दर-असल अपन खुद नई बनाते कुंडली
बस एक पराशर लाईट नामक सॉफ्टवेयर खरीद रखा है सो उसी से बनाते हैं। पहले भी इस बात का उल्लेख कर ही चुका हूं।
फिलहाल इस बात का जिक्र इसलिए क्योंकि एक डेंटिस्ट है अपने शहर में। अपने घरवाले समेत कई लोगों की कुंडलियां बनवा चुके है वे आवारा बंजारा से।
पिछले दिनों उन्होनें पांच-छह कुंडलियां बनवाई और फिर एक सुबह अचानक फोन किया,कहा कि बंधु एक बात बताओ। अपन ने कहा पूछो तो बोले मेरी वाईफ को डिलिवरी होने वाली है और दो-तीन पंडितों ने गुणा-भाग लगाकर प्रसुति के लिए दिन और समय निर्धारित किया है। अपन का भेजा चकराया कि यह कैसी बात। सो अपन ने पूछा, समय भी निर्धारित किया है?
उनका जवाब आया कि हां फलानी तारीख को सुबह 9:20 से 10 बजे के बीच में।
मैनें कहा धन्य हो प्रभु, आगे क्या समस्या है। तो उन्होनें कहा कि आप जरा अपने सॉफ्टवेयर से पता करो न कि यह मुहूर्त सही है या नहीं और सही है तो कितना अच्छा मुहूर्त है यह्। मैनें फोन पर ही यह कहते हुए हाथ जोड़े कि भैया अपन हैं तो पंडित लेकिन अंगूठा छाप है पंडिताई में, और ऐसी पंडिताई में तो अपने लिए काला अक्षर भैंस बराबर है।
अब अपन इस बात को भूल गए।
16 मार्च की दोपहर अपन भटक रहे थे शहर में। अचानक इन डेंटिस्ट साहब का फोन आया, जल्दी नोट करो समय जल्दी नोट करो। अपन ने किया। और जन्मतारीख व स्थान पूछा तो वे कहने लगे, अरे यार आज ही तो पैदा हुआ है सुबह 9:40 मिनट पर।
तो यह हाल है। बच्चा पैदा मुहूर्त देखकर करवाना है और फिर बच्चा अभी चार घंटे का हुआ नई कि उसकी कुंडली बनवानी है।
लेकिन एक सवाल मथे जा रहा है मन को कि इस तरह बकायदा मुहूर्त के चक्कर में ऑपरेशन से बच्चे पैदा कराना कितना सही है? इतना भी क्यों मानना ज्योतिष को?
इस बात की क्या गारंटी है कि शुभ मुहुर्त-लग्न में पैदा हुआ बच्चा सर्वगुण संपन्न ही होगा? एक भी अवगुण नहीं होंगे?
इस बारे मे ज्योतिष के जानकार ही कुछ कहें तो अच्छा होगा
27 March 2009
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11 टिप्पणी:
सुनील भाई, ज्योतिष का मुझसे बड़ा जानकार और कौन होगा… सिर्फ़ पता करके यह बतायें कि डेंटिस्ट जी 9.40 को बच्चे का जन्म किस बात से मान रहे हैं - 1) नर्स ने कहा इसलिये, 2) डॉक्टर ने बता दिया इसलिये, 3) अस्पताल की घड़ी में उतने बजे थे इसलिये? साथ ही उन्हें यह भी पूछियेगा कि बच्चे की गर्भनाल कटने के समय को वे जन्म मानते हैं, या गर्भ में आने के समय को या फ़िर गर्भ से बाहर आने के समय को? इतना पता कीजिये फ़िर देखिये कैसी शानदार कुंडली बनवाता हूँ उनकी…। एक बात और, महिला ब्लॉगरों को भी भेज रहा हूँ उन डॉक्टर साहब के द्वारे, उनसे पूछने के लिये कि जब नॉर्मल डिलीवरी होने के चांस हों तब सीजेरियन करवाकर उस महिला पर अत्याचार के सम्बन्ध में उन पर क्या कार्रवाई की जाये… :) :)
ज्योतिष का तो नही जानते पर मुहूर्त देख कर बच्चे पैदा करना , ये सरासर बेवकूफी की बात ।
जमाना एक्टिव होने का है पैसिव होकर अपने भाग्य स्वीकारने का नहीं। सो अब बच्चे सबसे अच्छे ग्रह नक्षत्र देखकर सौभाग्यवान पैदा होंगे, गलत समय में पैदा होकर दुर्भाग्यवान नहीं। यह सम्भव हुआ है विज्ञान व ज्योतिष के बढ़िया मेल से।
घुघूती बासूती
भारतीय संस्कार पद्धति को ज़रा ग़ौर से देखिए बन्धु. बच्चे का जन्म ही नहीं, गर्भाधान भी यहां एक संस्कार है और यह भी मुहूर्त देख कर ही किया जाना चाहिए. अब यह अलग बात है कि उस समय मुहूर्त देखने का ख़याल किसी को नहीं रहता.
पंडित संजीतानन्द जी क्या-क्या करने में लगे हुये हैं। भईया किनारा करिये ऐसे लोगों से और ऐसी बातों से ।
अफसोस होता है कई बार की कुदरती बातों में इतनी दखलन्दाजी । नारी-मुक्ति मोर्चा या महिलासुधारवादियों को ज़रा भी भनक लग गई ना तो नाहक चपेटे में आ जाऔगे।
विज्ञान और ज्योतिष का मेल अगर हमारे लिए कुछ अच्छा ला रहा है तो इसमें बुराई नहीं, मगर भारतीय संस्कार का जिक्र सिर्फ हम तब करते हैं जब पश्चिमी सभ्यता विकास में हमसे आगे होता है.
प्रेम की अनुभूति से बढ़कर कुछ नहीं और प्रेम किसी भी ज्योतिष समय काल का मोहताज नहीं होता,
आने वाला अगर प्रेम का परिणाम है तो ज्योतिष का चक्र दूर ही रहे.
एक अंध विश्वास जो आने वाली पीढी को भ्रमित होने से बचाए.
अजब गजब खबर सुनाई आपने तो :) वैसे घघुती जी ने सही कहा ..
इसे कहते हैं मूर्ख विज्ञानी!
विज्ञान को मानते हैं उपयोग करते हैं। लेकिन साथ में ज्योतिष घुसेड़ देते हैं। कुंडली सिर्फ यह बताती है कि जन्म समय कौन कौन सा ग्रह किस आकाशीय स्थिति में था और उस समय कौन सी राशि कितनी उदित हो चुकी थी।
मेरे दादा ज्योतिषी थे, पिताजी भी। मैं ने भी तेरह बरस की उम्र मे जन्मपत्रिका बनाना सीखा। पढ़ना भी सिखाया गया। पढ़ी भी पर आज तक भी विश्वास नहीं कि कोई ज्योतिषी कुंडली देख कर कुछ सही बता सकता है। हाँ विज्ञान में भी संभावना (Probability)की गणित होती है। ज्योतिष या भविष्यवाणी बताने वाले उसी का उपयोग करते हैं। जिस से कुछ सीमा तक वे भविष्य का अनुमान कर सकते हैं। लेकिन सितारों की स्थिति से अधिक ज्योतिषी का सामाजिक अनुभव ही अधिक काम आता है।
मेरे दादा जी के पास लोग बच्चे के जन्म का समय लिखा जाते थे जिसे वे पंचांग पर ही लिख देते थे। एक सप्ताह बाद केवल कुंडली बनाते थे, लेकिन फल नहीं लिखते थे। कहते थे कि पाँच बरस का होने तक बच्चे की जन्मपत्री नहीं बनानी चाहिए। बनाते भी नहीं थे।
मेरा तो मूल्यांकन यह है कि ज्योतिषी हताशा के समय लोगों में आत्मविश्वास जगाने का काम करता था। इस भूमिका को पिताजी ने बहुत सफलता के साथ पूरे जीवन अदा किया। तब ज्योतिष मनुष्य और समाज की सहायता करती थी। अब तो केवल वह पैसा कमाने का गुर मात्र रह गई है।
मत घबराइये, मुहूर्त बच्चों के हिसाब से ख़ुद-ब-ख़ुद बदल जाया करेगा। हा हा ।
ज्योतिष और मुहूर्त के बारे मे तो नही जानते लेकिन इतना जानते है कि प्राकृतिक प्रसव की पीड़ा से बचने के लिए आजकल की आधुनिक महिलाएँ ऑपरेशन को सुविधाजनक मानती हैं.
@suresh Chiplunkar ji...
Choonki do judwas bachoon ka bhavishya ek sa nahi hota to bacche ki naal katane ke kshan ko hi zayaz mana jaaiye...
hehehehe....
Post bhi badhiya or comments bhi...
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