छत्तीसगढ़ी अस्मिता का प्रश्न
रविंद्र गिन्नौरे
छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी भाषा के उत्थान के लिए एक सार्थक पहल हुई है। प्रदेश के राज्यसभा सदस्य गोपाल व्यास ने राज्यसभा में एक निजी विधेयक पेश किया। 16 दिसंबर को प्रस्तुत इस निजी विधेयक में छत्तीसगढ़ी राजभाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु प्रस्ताव है। छत्तीसगढ़ी एक समृध्द भाषा है। छत्तीसगढ़ के दो करोड़ लोग इस भाषा का प्रयोग करते हैं। सौ साल पूर्व छत्तीसगढ़ी भाषा का व्याकरण भी लिखा जा चुका है। हीरालाल काव्योपाध्याय द्वारा लिखित व्याकरण का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद भी उसी दौरान किया गया था। बहुभाषा विद डा. ग्रियर्सन ने एशियाटिक सोसाइटी बंगाल के वाल्यूम दो में इसे प्रकाशित किया।
छत्तीसगढ़ी भाषा का समृध्द साहित्य है। छत्तीसगढ़ी लोकगीत के साथ कहानी, उपन्यास के अनेक लेखक हुए हैं छत्तीसगढ़ी भाषा की विविधता उसकी लोकप्रियता प्रदेश के जनमानस में मिलती है। पांच दशक पूर्व पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म 'कहि देबे संदेश' ने जाति प्रथा के खिलाफ बिगुल बजाया था। छत्तीसगढ़ी फिल्मकार मनु नायक की फिल्म 'घर द्वार' ने एक नया आयाम प्रस्तुत किया था। फिल्म के गीत प्रख्यात कवि हरि ठाकुर ने लिखे थे तो प्रसिध्द गायक मोहम्मद रफी ने अपना स्वर दिया था। छत्तीसगढ़ी भाषा, लोक संस्कृति, लोक नाटय से परिमार्जित होती रही। वहीं छत्तीसगढ़ी साहित्यकारों ने नया आयाम दिया।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पंडित सुन्दरलाल शर्मा ने छत्तीसगढ़ी के माध्यम से अपनी अलख जगाई थी। गिरिवर दास वैष्णव ने 'छत्तीसगढ़ी सुराज' लिखकर अंग्रेजों के खिलाफ जेहाद छेड़ा था। जिसे अंग्रेजों ने जब्त कर लिया था। स्वतंत्रता आंदोलन में छत्तीसगढ़ी भाषा के माध्यम से आजादी के दीवानों ने क्रान्ति की शुरुआत की। छत्तीसगढ़ी के लोकगीत आज पूरे देश में लोकप्रिय हो रहे हैं। लोक नाटय 'नाचा' की प्रसिध्दी समूचे भारत में आज भी है। छत्तीसगढ़ी संस्कृति के नाटय और नृत्य को हबीब तनवीर ने समूची दुनिया के सामने प्रस्तुत किया। 'चरणदास चोर' नाटक जिसका फिल्मांकन भी हुआ जो विश्व प्रसिध्द है। विश्व डांस कम्पीटिशन में 'पंथी नृत्य' को सर्वश्रेष्ठ नृत्य माना गया जिसे हबीब तनवीर ने ही पेश किया था। छत्तीसगढ़ी भाषा को समृध्द बनाने वालों की एक लंबी सूची है। भाषा विद डा. मन्नूलाल यदु, गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया, कवि रामेश्वर वैष्णव, पत्रकार श्यामलाल चतुर्वेदी जैसे आज हजारों लोग है। आज छत्तीसगढ़ी में पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही है।
छत्तीसगढ़ी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाना छत्तीसगढ़ की अस्मिता से जुड़ा है। राज्य शासन की ओर से मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने इस आशय का प्रस्ताव केन्द्र को भेजा है। विधेयक के संदर्भ में गोपाल व्यास ने काफी संदर्भ दिया है जिसे सम्मान दिया जाना जरूरी है।
श्री रविंद्र गिन्नौरे वरिष्ठ पत्रकार हैं। उनसे 0-9300233707 पर संपर्क किया जा सकता है।
9 टिप्पणी:
अफ़सोस की बात यह है कि शहरों में लोगों को छत्तीसगढी में बात चीत करते हुए नहीं पाया जाता जब की बुंदेलखंड में लोगों को हिन्दी में बात करते हुए नहीं पाया जाता. पहल जो किया गया है उस से कुछ तो लाभ होगा ही. आभार.
chattisgarh har bat me samridh hai ,bhasha ek aayam hai jiske liye nai pahal ki jarurat hai.
छत्तीसगढ़ी को अपना उचित स्थान मिले इसके लिए शुभकामनाएँ।
घुघूती बासूती
छत्तीसगढ़ी सदा से ही उपेक्षित रही है, अब समय आ गया है उसे उचित स्थान दिलाने का।
बढिया पहल,
स्थानीय भाषा को सार्थक स्थान मिलना ही चाहिए.
छतीसगढी को पूरा-पूरा न्याय मिले और वो लोकप्रिय भाषा के रुप में समृद्ध हो । शुभकामनायें.....
मेरी शुभकामनाएं भी छत्तीसगड़ के साथ है
First of All Wish U Very Happy New Year...
Achchha lakh...
Badjai..
नई उमंगों के साथ आए नया वर्ष....
आपको नववर्ष की शुभकामनायें....
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