एक नागरिक का खुला खत, रमन के नाम
जोहार डाक्टर साहब,
सानंद तो आप होंगे ही। इस वक्त जब मैं यह खत लिख रहा हूं, आप बतौर मुख्यमंत्री दूसरी बार शपथ ले रहे होंगे। मैं सोचता हूं कि इस तरह शपथ लेना और उसे पूरा करना एक बहुत ही महती जिम्मेदारी होती होगी, जिसे सही मायनों में बिरले ही पूरा कर पाते होंगे।
अब अपने पिछले कार्यकाल को ही देखिए न, तब भी आप और आपके साथ इतने धाकड़-धाकड़ लोगों ने शपथ ली थी। भला कितने खरे उतरे थे उस शपथ पर?
एक बात बताइए डॉक्टर साहब क्या दुहराव का अर्थ पहली पारी में सब कुछ अच्छा ही अच्छा होना होता है?
पिछली पारी के आखिर-आखिर में कुछ चैतन्यता आई तब जाकर गरीब के पेट की सुध ली आपने और सस्ता चावल बांटा पर साहब जीवन में पेट के अलावा अन्य बहुत सी और पूरक बातेंचीजें होती है न जिनसे मिलकर जीवन बनता है।
आपको ख्याल होगा पिछली सरकार में हमने दो गृहमंत्री देखे। इसके बाद भी न तो नक्सल घटनाओं में कमी हुई न ही अन्य इलाकों में दूसरी तरह की वारदातों में। चोरी, डकैती, हत्या, बलात्कार... क्या-क्या गिनाएं साहब। इसी तरह आपको यह भी याद होगा कि जब हमारी राज्य पुलिस के मुखिया ने करीब दो साल पहले पद संभालते ही बयान दिया था कि 'नक्सलियों को उनके घर में घुसकर मारेंगे'। अब यह तो वे ही बता सकते हैं या आप ही जान सकते हैं कि इन दो सालों में बस्तर के दुर्गम इलाकों में नक्सलियों के कितने ठिकाने चिन्हित हुए और उन ठिकानों पर जाकर कितने नक्सलियों को मारा गया।
डाक्टर साहब ऐसा क्यूं है कि एक आम आदमी रपट लिखाने के लिए भी थाना जाने से पहले दस बार सोचता है?
मुआफी चाहूंगा कि सरकार बनने के खुशी के मौके पर ऐसी कड़वी बातें कर रहा हूं पर तब क्या किया जाए जब सिर्फ वादे-ही-वादे हमारी झोली में आते रहें और पूरे होते बहुत कम दिखे।
अब धूल मुक्त-स्वच्छ शहर के नारे को याद करते हुए राजधानी का ही हाल ले लीजिए न। मेरे बचपन के कुछ मित्र आजकल बाहर रहते हैं। अक्सर जब भी वे मुझसे रायपुर का हाल पूछते हैं तो मैं यही कहता हूं कि 'रायपुर वैसा ही है, कहीं से टूटा, कहीं से फूटा, मच्छरों से अटा धूल से पटा, ट्रैफिक जाम से घिरा और बजबजाती नालियों के बीच होता सौंदर्यीकरण'।
मैं कुछ गलत कहता हूं क्या डाक्टर साहब? माना कि पिछले कार्यकाल में और उससे भी पिछली सरकार के कार्यकाल में अर्थात इन 8 सालों में राजधानी के सौंदर्यीकरण में करोड़ों खर्च हुए पर क्या उपरोक्त समस्याओं से निजात मिली? मुख्यमंत्री जी जब मैं अपने बचपन में घर की सजावट के लिए स्वतंत्रता सेनानी पिता से कुछ कहता था तो उनका जवाब होता था कि 'पहले घर की गंदगी दूर करो फिर सजावट पर ध्यान दो'। डाक्टर साहब हमारी सरकारें या नगरीय निकाय गंदगी दूर किए बिना ही सौंदर्यीकरण की क्यों सोचती हैं? क्या इसलिए कि इससे बजट में 'गुंजाइश' बनती है? सुन रहे हो न 'चांऊर वाले बाबा', बतौर पत्रकार मैं तो शाम के समय रायपुर के प्रथम नागरिक का उपरोक्त मुद्दों पर वर्जन लेने से डरने लगा हूं कि कहीं किसी दिन वे झल्लाकर यह न कह दें कि 'धूल और मच्छर ढीठ है तो क्या करें'।
क्या है न डाक्टर साहब फाइलों में तो सब कुछ होता है पर हकीकत में क्या? अभी कल ही आपके शपथ लेने की पूर्व संध्या पर मैंने देखा कि शपथ ग्रहण स्थल पर फागिंग मशीन से मच्छरों का सफाया किया जा रहा है ताकि दूसरे दिन 11 बजे दस मिनट के समारोह में आप समेत तमाम वीआईपी वहां चैन से बैठ सकें। आमजन के लिए ऐसा होता तो बहुत कम ही दिखाई देता है न। अब तमाम वीआईपी रायपुर की धूल व मच्छर का 'सुख' क्या जानें। उन्हें तो ऐसी गाड़ियों में चलना है एसी दफ्तर-घर में रहना है जहां खिड़की दरवाजे पर जालियां लगी होती है। भुगतता तो आम जन है जिसे दिन भर शहर की धूल फांकनी पड़ती है और मच्छरों को खून पिलाना पड़ता है। बेचारे मच्छर! उनकी किस्मत में सिर्फ आम जनता का ही खून लिखा है वीआईपी का नहीं।
क्यों नहीं स्वास्थ्य विभाग एक सर्वे करता कि राज्य के अन्य शहरों के मुकाबले रायपुर में पिछले पांच साल में अस्थमा या श्वांस की दिक्कत वाले कितने मरीज बढ़े?
वीआईपी की बात से एक और बात याद आई। बात है ट्रैफिक पुलिस की। क्या कभी हमारी सरकार ने इस बात का हिसाब किया है कि रोजाना वसूली होती कितनी है और खजाने में जमा कितनी होती है? एक बात बताएंगे डाक्टर साहब, सारे शहर में दनदनाते हुए घुमने वाली ट्रैफिक पुलिस और तोड़-फोड़ दस्ता सदर बाजार व सिविल लाईन इलाके में घुसते ही भीगी बिल्ली क्यों बन जाते है? क्यों इन इलाकों में सारे नियम-कायदे दरकिनार हो जाते हैं?
पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान आपके गांव ठाठापुर जाना हुआ था तब आप मुख्यमंत्री नहीं थे। इस बार के चुनाव में फिर वहां जाना हुआ तब आप मुख्यमंत्री थे और आज फिर से बन गए हैं। इन पांच सालों में आपने ठाठापुर के 'ठाठ' बदल दिए, बधाई इसके लिए। पर राजधानी तो करीबन वैसी ही है जैसी पहले थी।
पता नहीं डाक्टर साहब आपकी जानकारी में यह बात है या नहीं कि आपके मित्र और वरिष्ठ पत्रकार आलोक तोमर अक्सर अपनी बातचीत में आपके बारे में कहते हैं कि एक ऐसा सरल इंसान जिसे पांच साल पूरे कर लेने के बाद भी यकीन नहीं होता कि वह मुख्यमंत्री है। तो डाक्टर साहब उपरवाला आपकी यह सरलता दूसरी पारी में भी और हमेशा बनाए रखे। क्योंकि आम जनता अक्सर अपने स्वभाववश पूर्ववर्ती से आपकी तुलना करती ही है और नि:संदेह उनके मुकाबले आपको ज्यादा सरल, सौम्य और विनम्र पाती है लेकिन यह भी पाती है कि आपसे पूर्ववर्ती सरकार में कम से कम अपराधियों या असामाजिक तत्वों में एक भय तो होता था वह भय पिछले पांच साल में दिखा ही नहीं।
डाक्टर साहब जनता सरकार से, जनप्रतिनिधियों से उम्मीदें करती ही है और करेगी। पिछले कार्यकाल में आपने बहुतों की अनेक उम्मीदें पूरी की पर अंतिम साल में। क्या इस बार भी ऐसा ही होगा? अक्सर ऐसा क्यों होता है कि उपलब्धियों के आईने में कमियां नजर नहीं आती?
फिलहाल इतना ही...बाकी फिर कभी
शेष शुभ
शुभकामनाएं...
संजीत त्रिपाठी
http://sanjeettripathi.blogspot.com
ved.sanju@gmail.com
11 टिप्पणी:
hao kya letter to mast likha hai mama.cm tak pahuchega?
मुख्यमंत्री चिट्ठे नहीं पढते! इसे कागज पर लिखकर चिट्ठे से चिट्ठी बनाइये, ओर टिकट लगाकर चलता करिये! शायद थोडी शर्म बाकी हो मंत्रीजी में.
मुझे भी लगता हे सौन्दर्यीकरण से पहले हमारे शहरों कस्बों का सफाईकरण होना चाहिए और उसके बाद गंदगी फैलाने वालों पर जुर्माना लगना चाहिए । वैसे कई सर्वेक्षण बताते हैं कि साफ सुथरी जगहों पर लोग कचरा कम फैंकते हैं, गन्दी जगहों पर अधिक ।
घुघूती बासूती
"जब मैं अपने बचपन में घर की सजावट के लिए स्वतंत्रता सेनानी पिता से कुछ कहता था तो उनका जवाब होता था कि 'पहले घर की गंदगी दूर करो फिर सजावट पर ध्यान दो'।
**ATTACK & *VERY GOOD
http://ombhiksu-ctup.blogspot.com/
राजस्थान में वसुन्धरा हार गई, लेकिन यह पत्र उन्हें भी भेजा जा सकता है।
मुख्यमंत्री जी चिटठे को क्या ,चिटिठयों को भी नहीं पढते हैं। अपनी मेहनत बेकार ही समझिए , वैसे हमलोगों ने पढ लिया है। जानकारी मिल गयी वहां की।
संजीत बहुत सही प्रश्न उठाये । सौंदर्यकरण पर खर्चें करने से पहले आमजन की मूल-भूत जरुरतों को अहमियत देनी चाहिये। पर सौंदर्यकरण के बिल में कितना कमीशन मिलेगा ये जोड-तोड शायद उन्हें प्रेरित करती है ताकि जेब का वज़न बढ सके।
संजीत भाई,
बढ़िया लिखा है,
आपको बधाई
यही हाल मध्य प्रदेश का है. मामूली सन्दर्भ बदल कर यह चिठ्ठी यहाँ के सी.एम. को भी दी जा सकती है. जैसे नक्सली वारदातों की जगह भोपाल में चेन और पर्स झपटने की वादातें लिखा जा सकता है.
घर घर की यही कहानी की तर्ज पर हर राज्य की यही कहानी, नेताओं के कान बंद होते हैं और आखों पर बेशर्मी की पट्टी , फ़िर काहे उसे हिला रहे हो, वो नहीं जागने का।
रायपुर के गायत्री नगर जब हम रहते थे तो बारिश आते ही घर बाढ़ में घिर जाता और चारो तरफ़ साँप नज़र आते .तब राजधानी बन रही थी.जोगी जी मुख्यमंत्री थे और कई बार जब घर पर दावत देते तो उन्हें बताया भी जाता था.तब हिंदू की आरती और प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया के होता जी घर भी वाही था, पर आज भी हालत ज्यादा बदले नज़र नही आ रहे है.
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