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03 January 2009

वे दो साल और आने वाले दो साल.....

नए साल के दूसरे दिन छत्तीसगढ़ पुलिस के मुखिया श्री विश्वरंजन ने पत्रकारों को चर्चा के लिए आमंत्रित किया।
चर्चा की खबर तो कल सुबह अखबारों में आएगी ही पर कुछ बातें जो अखबार में नही आ सकती वे मन में तो उठती ही है।


इस मौके पर एक पुस्तिका वितरित की गई। इसमें आंकड़ों के आधार पर यह बताने की कोशिश की गई है कि नक्सल घटनाओं पर राज्य की पुलिस ने काबू पाने में कुछ हद तक सफलता पाई है और पिछले सालों के मुकाबले राज्य में नक्सल घटनाएं कम हुई है। जहां तक मुझे याद है श्री विश्वरंजन ने पद संभालते ही यह बयान दिया था कि नक्सलियों को उनके घर में घुसकर मारा जाएगा। आज करीबन दो साल बाद वे यह कह रहे हैं कि कमी जरुर हुई है नक्सल घटनाओं में पहले के मुकाबले।


खैर!
अब करीब दो साल बाद वे यह भी बयान दे रहे हैं कि अगले दो-तीन सालों में छत्तीसगढ़ से नक्सलियों को खदेड़ दिया जाएगा। चलिए देखते हैं जैसे पिछले दो साल बीते वैसे ही अगले दो-तीन साल भी बीत ही जाएंगे।



खैर, नक्सल मुद्दे के इतर भी क्राईम है और उनकी बात करें तो भले ही आंकड़ो से यह बता दिया जाए कि क्राईम कम हुआ है
पर हकीकतन क्राईम तो बढ़ा ही है। ग्रामीण थाने हो या शहरी सभी के इलाके में।

अवैध शराब बिक्री करने वालों के हौसले बुलंद है पर यह सब पुलिस को नहीं दिखता, क्यों?

सट्टा खिलाने वाले पुलिस को नज़र नहीं आते? अगर आते भी हैं तो छोटे खिलाड़ी जिनसे अक्सर छोटी मोटी रकम की जब्ती दिखा दी जाती है, क्यों?

अब तो सक्ती जैसे छोटे-छोटे सेंटर में भी दिन दहाड़े लाखों लूटे जा रहे हैं
पर निश्चितत रहें क्योंकि आंकड़े बताते हैं कि क्राईम कम हो रहा है।

हत्या-बलात्कार बढ़ रहे होंगे पर आंकड़े बताते हैं कम हो रहे हैं..........

एक बात और ट्रैफिक पुलिस का अमला सिर्फ़ वसूली करता दिखाई देता है या फिर आम इलाकों में कार्रवाई करता दिखता है, क्यों नही कभी यह अमला सदर या अन्य वीआईपी इलाकों में कार्रवाई करता दिखता?


सवाल अनगिनत है पर जवाब नदारद या जवाब मिलते भी हैं तो बस गोल-मोल…

पर फिर भी उम्मीद कायम है।
पुलिस विभाग को शुभकामनाएं।


'अमन-चैन' अगर कुछ-कहीं होता हो तो काश वह यहां आ सके।


सभी को नव-वर्ष की शुभकामनाएं

9 टिप्पणी:

दीपक said...

सही कह रहे है संजीत जी मगर ध्यान से नही तो कही आपके संवेदन्शील सवालो के एवज मे एक सजा-धजा पोस्ट ठेल देगा कि क्यो सिपाही .....?

एक भले मानुष के संवेदनशील सवालो को यह प्रतिसाद मिल चुका है !!

दिनेशराय द्विवेदी said...

अपाराध और नक्सलवाद सब की जड़ें असमान विकास और जनता में समृद्धि के असमान वितरण में है। इन के कारण मिटेंगे तो ही ये मिट सकते हैं।
नव वर्ष की शुभ कामनाएँ।

Samrendra Sharma said...

तारीख पर तारीख.......

अजित वडनेरकर said...

अपराधों में की के आंकड़े तो पुलिस की पुरानी चतुराई है। सभी थानों को बता दिया जाता है कि मामले कम दर्ज करो।
बाकी दिनेशजी की बात एकदम सही है।

Samrendra Sharma said...

तारीख पर तारीख.......

डॉ .अनुराग said...

aadarniy dinesh ji se sahmat hun....

Anita kumar said...

आप को सपरिवार नव वर्ष की शुभ कामनाएं।
जो हाल छ्त्तीसगढ़ का है वही हाल महाराष्ट्रा का भी है। सब जगह पुलिस एक जैसी है और राजनीती करने वाले नेता भी।
फ़िर भी अब पुलिस वालों को पूरी तरह से नकारने का मन नहीं कर रहा, जब से बम्बई में आतंकवादी काण्ड हुआ। कैसे भूलें कि यही साधारण पुलिस वाले सिर्फ़ एक लाठी के सहारे पिल पड़े थे आतंकवादियों के ऊपर और अपनी जान पर खेल गये, वर्ना कसब जिन्दा कैसे पकड़ा जाता। क्या पता ये घटना इतिहास को नया मोड़ दे रही हो जिसका हमें अभी अंदाजा नहीं

anuradha srivastav said...

सवाल वाकई अनगिनत है ........दिनेश जी की बात से शत-प्रतिशत सहमत हूं । पर जब तक सत्ता लोलूप नेता लोगों का वरद हस्त असमाजिक तत्वों पर रहेगा और पुलिस वालों को ये नेता लोग इसी तरह कठपुतली बनायें रखेंगें तब तक कुछ भी बदल पाये यह असम्भव ही लगता है।

Gyan Dutt Pandey said...

यह बीमारू प्रदेश की मानसिकता से रिलेटेड है। केरल में यह कम मिलेगा - जब कि वहां भी गरीबी है।
लोग जहां अराजकता टॉलरेट करते हैं वहां वह पाई जाती है और पुलीस भी वहीं निरंकुश होती है।
बाकी, समान सम्पदा वितरण की चिरकुटई में मेरा विश्वास नहीं है। आदमी की प्रगति की चाह को यह मारती है और विकास में सबसे बाधक यही है।

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