ऑर्कुट पर बंधु ठाकुर समीर सिंह चौहान ने हमे एक कविता स्क्रेप की। हमें पसंद आई तो इंटरनेट सर्फ़ करने से मालूम चला कि यह कविता असम के कवि श्री दिनकर कुमार की है जो कि बी बी सी हिन्दी की ऑनलाईन पत्रिका में 27 जुलाई 2007 को प्रकाशित हुई थी, आप भी पढ़िए वह कविता
"मायावी चैनल"
मायावी चैनलों से चौबीस घंटे
टपकता रहे लहू फिर भी दर्शकों में प्रतिक्रिया नहीं होती
लहू और चीख के दृश्यों ने दर्शकों की
संवेदनाओं को नष्ट कर दिया है
इसीलिए जब कोई वृद्ध अपने शरीर में लगाता है आग
चैनल के सीधे प्रसारण को देखते हुए दर्शक
सिहरते नहीं हैं न ही बंद करते हैं अपनी आँखें
मुठभेड़ का सीधा प्रसारण देखते हुए बच्चे
मुस्कराते हुए खाते हैं पापकार्न
मायावी चैनलों से चौबीस घंटे
झाँकते रहते हैं लोकतंत्र के ज़ख़्म
बलात्कार की शिकार युवती का नए सिरे से
कैमरा करता है बलात्कार
परिजनों को गँवा देने वाले अभागे लोगों को
नए सिरे से तड़पाता है कैमरा
और भावहीन उद्धोषिकाएँ सारा ध्यान देती हैं
शब्दों की जगह कामुक अदाओं पर
मायावी चैनलों से चौबीस घंटे
बरसती रहती है प्रायोजित क़िस्म की समृद्धि
समृद्धि की दीवार के पीछे
आत्महत्या कर रहे किसानों का वर्णन नहीं होता
कुपोषण के शिकार बच्चों की कोई ख़बर नहीं होती
भूख से तंग आकर जान देने वाले पूरे परिवार का
विवरण नहीं होता
भोजन में मिलाए जा रहे ज़हर की साज़िश का
पर्दाफ़ाश नहीं होता
मायावी चैनलों से चौबीस घंटे
प्रसारित होते रहते हैं झूठ महज गढ़े हुए झूठ।
दिनकर कुमार
रोहिणी भवन, श्रीनगर बाईलेन नं.-2
दिसपुर, गुवाहाटी, असम. 781005
dinkarkumar67@yahoo.co.in
दिनकर कुमार जी की बाकी कविताएं यहां /a> पढ़ी जा सकती हैंमायावी चैनलों से चौबीस घंटे
टपकता रहे लहू फिर भी दर्शकों में प्रतिक्रिया नहीं होती
लहू और चीख के दृश्यों ने दर्शकों की
संवेदनाओं को नष्ट कर दिया है
इसीलिए जब कोई वृद्ध अपने शरीर में लगाता है आग
चैनल के सीधे प्रसारण को देखते हुए दर्शक
सिहरते नहीं हैं न ही बंद करते हैं अपनी आँखें
मुठभेड़ का सीधा प्रसारण देखते हुए बच्चे
मुस्कराते हुए खाते हैं पापकार्न
मायावी चैनलों से चौबीस घंटे
झाँकते रहते हैं लोकतंत्र के ज़ख़्म
बलात्कार की शिकार युवती का नए सिरे से
कैमरा करता है बलात्कार
परिजनों को गँवा देने वाले अभागे लोगों को
नए सिरे से तड़पाता है कैमरा
और भावहीन उद्धोषिकाएँ सारा ध्यान देती हैं
शब्दों की जगह कामुक अदाओं पर
मायावी चैनलों से चौबीस घंटे
बरसती रहती है प्रायोजित क़िस्म की समृद्धि
समृद्धि की दीवार के पीछे
आत्महत्या कर रहे किसानों का वर्णन नहीं होता
कुपोषण के शिकार बच्चों की कोई ख़बर नहीं होती
भूख से तंग आकर जान देने वाले पूरे परिवार का
विवरण नहीं होता
भोजन में मिलाए जा रहे ज़हर की साज़िश का
पर्दाफ़ाश नहीं होता
मायावी चैनलों से चौबीस घंटे
प्रसारित होते रहते हैं झूठ महज गढ़े हुए झूठ।
दिनकर कुमार
रोहिणी भवन, श्रीनगर बाईलेन नं.-2
दिसपुर, गुवाहाटी, असम. 781005
dinkarkumar67@yahoo.co.in
12 टिप्पणी:
बढ़िया है जी।
सही चित्रण
कवि लोग जरा इस कविता को भी थीम बनाईये.
कविता न सही तो टिप्पणी ही करते जाईये.
बहुत बढ़िया कविता. धन्यवाद दिनकर जी को लिखने के लिए और आपको प्रस्तुत कराने के लिए......
मायावी चैनल
'माया वी' को भी दिखाते हैं
अलग-अलग तरीके से
अपनी उपस्थिति का
एहसास दिलाते हैं
दर्शको का जमीर
कैसे जागे
यही दर्शक
ख़ुद की तस्वीर
मायावी चैनलों पर
देखने के लिए
पीछे पीछे घूमते हैं
जब कैमरा चलता है
आगे-आगे
बहुत सही कविता.. ब्रॉडकास्ट मीडिया के कुकर्मों का पर्दाफ़ाश करती...
हमरे ऑरकुट पर भी ठाकुर साहब यही टीपियाके गए थे। ऐसा लगा मानो हम पर चाकू से हमला कर दिए। सही किया आपने इसके कवि महोदय का नाम ढूंढ निकाला. बधाई
यथार्थ चित्रण. बहुत आभार इतनी भेदक रचना को प्रस्तुत करने का.
बहुत सही और सुंदर है ....बधाई
मायावी चैनलों से चौबीस घंटे
प्रसारित होते रहते हैं झूठ महज गढ़े हुए झूठ।
संजीत ,दिनकर जी की कविता पढकर कही किसी प्रसिद्ध अंग्रेजी पत्रिका मे पढे वाक्य याद आ गयें-
"who says vultures are axtinct,they have reborn as tv news reporters"
परेशानी यही है कि बाज़ार में दुकानदार वही बेचता है जो ग्राहक पसंद करते है।
इस कविता का चित्रण, आज के मीडिया को दिखाता है, आज कल मीडिया का नेगेटिव रूप हि देखने ज़्यादा मिल रहा है। हमने अभी कुछ दिन पहले, एक निजी चैनल के रिपोर्टर को फर्जी स्टिंग आपरेशन मैं लिप्त होने कि खबर सुनि थी, हमे तब और बुरा लगा जब हमें यह पता चला कि, जिस औरत को इसमें लिप्त करने कि कोशिश कि गयी थी, उसे नौकरी से निकाल दिया गया है। यह पहला मौका नही है कि खबरिया चैनल अपना चैनल चलाने के लिये किसी और कि बलि दे कि कोशिश कि हो। हम संजीत भाई से निवेदन करते हैं कि अपने चिट्ठे पे इस खबर पर अपने विचार प्रस्तुत करें।
प्रिय संजीत,
इस कविता को ढूढ निकाल कर यहां पुनर्प्रकाशित करने के लिये आभार. बहुत ही अर्थपूर्ण है
-- शास्त्री जे सी फिलिप
प्रोत्साहन की जरूरत हरेक् को होती है. ऐसा कोई आभूषण
नहीं है जिसे चमकाने पर शोभा न बढे. चिट्ठाकार भी
ऐसे ही है. आपका एक वाक्य, एक टिप्पणी, एक छोटा
सा प्रोत्साहन, उसके चिट्ठाजीवन की एक बहुत बडी कडी
बन सकती है.
आप ने आज कम से कम दस हिन्दी चिट्ठाकरों को
प्रोत्साहित किया क्या ? यदि नहीं तो क्यो नहीं ??
बहुत ही सुन्दर कविता यथार्थ को बयान करती हुयी...
HTML टैग शायद कुछ गलत लग गया है..
इतनी अच्छी कविता पढवाने के लिए धन्यवाद भाई..
Post a Comment