भारतीय युवा व किशोरों के पहनावे ओढ़ावे को लेकर हमारे बुजुर्ग और संस्कृति के पहरुए हरदम न केवल चिंतित रहते हैं बल्कि इसके लिए पश्चिम को कोसते भी रहते हैं।अमेरिका के दो शहरों मे दो दिन पहले जो कदम उठाया गया है वह सोचने को मजबूर करता है कि क्या पश्चिम भी पहनावे ओढ़ावे को लेकर चिंतित होता जा रहा है।
जागरण-याहू की इस खबर को देखें
कमर के नीचे के पैंट पहनने पर रोक
हम तो पश्चिम को कोस लेते हैं कि हमारे युवा-किशोर सब पश्चिमी सभ्यता का अंधानुकरण कर रहे हैं इसलिए ऐसे कपड़े पहन रहे हैं पर पश्चिम किसे कोसे!!
शायद जल्द ही भारत के शहरों में भी ऐसे प्रतिबंध लगने लगे लेकिन तब शायद मानवाधिकारों या जाने किन किन अधिकारों की दुहाई दी जाएगी कि पहनावा ओढ़ावा तो व्यक्तिगत पसंद-नापसंद वाली बात है।
01 September 2007
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16 टिप्पणी:
आपने बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दे को उठाया है । धन्यवाद
यह सब कायदे कानून तो ठीक है पर जीन्स पहनने वाले अकसर दो से अधिक जीन्स नहीं रखते । जीन्स
बेचने वालों की तो चान्दी हो गयी ।
घुघूती बासूती
शायद जल्द ही भारत के शहरों में भी ऐसे प्रतिबंध लगने लगे लेकिन तब शायद मानवाधिकारों या जाने किन किन अधिकारों की दुहाई दी जाएगी कि पहनावा ओढ़ावा तो व्यक्तिगत पसंद-नापसंद वाली बात है।
agar aisa hota bhi hai to isme galat kya hai?
aapne jo US me ho raha hai ,India me kya ho sakta hai wo to likh diya,lekin aapki raay kya hai,agar ye bhi likh dete to behtar hota.
अच्छा ही हुआ । अरे जीन्स कमर की हड्डी से इतनी नीची सरकती आ रही थी कि क्या कहिए ।
समझ में नहीं आता था कि ये जीन्स कमर पर अटकती कैसे थी ।
मुंबई के बांके छोरे भी लथड़ती हुई पजामे नुमा जीन्स पहन कर मटकते घूमते हैं ।
लगता है कि जरा किसी से टकराये और बस पताका फहर जायेगी ।
पहनावे को लेकर क्या झग़ड़ा? अपने बापू तक हाफ नेकेड फकीर थे.
पहनावे में नहीं भेजे में जो है, वह महत्वपूर्ण है. भेजे में हाफ नेकेड फकीर है या हाफ नेकेड हीरोइन - उसपर परेशान हों.
ज्ञानदत्त जी से काफी हद तक सहमत।
हम्म!! और भी गम है जमाने मं पतलूम के सिवा...इसका तो क्या कहें कि कहाँ जा रही है.
पहनावे को लेकर क्या झग़ड़ा? अपने बापू तक हाफ नेकेड फकीर थे.
क्या solid बात रखी है ज्ञानद्दत जी ने :), सच है बात भेजे की है । और RSS वालों की पैंट के बारे मे क्या ख्याल है ?
हमारे देश के लोग लकीर के फ़कीर है,जो विदेशो में होता है जल्दी ही फ़ैशन में ले आते है,मगर हो सकता है अंग-प्रदर्शन यहाँ एक जरूरी चाहत बन गई है युवा वर्ग की,उस चलन के रहते वह विरोध करेंगे की भारत में एसा न हो,मगर १०० मे से ८० प्रतिशत यह बखूबी जानते है ये सब बातें बालमन को दूषित करने में पूर्णतः सहायक है,फ़ैशन की मारी युवा पीड़ी दिशा हीन हो गई है एक ही बात याद रखती है कौनसा फ़ैशन आज चल रहा है किस ड्रेस में अधिक सैक्सी नजर आया जा सकता है,अगर यही चलन है तो मुझे नही लगता विचारधाराओ में बदलाव की कोई गुंजाईश भी रहेगी...रही बात पांडेय जी की बात की...पहनावे को लेकर क्या झग़ड़ा? अपने बापू तक हाफ नेकेड फकीर थे.
पहनावे में नहीं भेजे में जो है, वह महत्वपूर्ण है. भेजे में हाफ नेकेड फकीर है या हाफ नेकेड हीरोइन - उसपर परेशान हों...जब बापू थे उस वक्त मन भी साफ़ था लोगो का शिक्षा भी यही मिलती थी कि बडो को और माता बहनो को नजर उठा कर भी कोई ना देखे उस वक्त पाप-पुण्य की गंगा में हर इन्सान गोते लगाता था और डरता था कि यह सब देखना या सोचना पाप है मै नरक का भागी बन जाऊँगा मगर आज यह बात कोई मायने नही रखती आज छोटे से छोटा बच्चा भी स्त्री पुरूष सम्बंधो को जानता है और जिज्ञासा भी रखता है कहाँ उसका मन हम साफ़ कर पायेंगे...आज शिक्षा में ब्रह्म्चर्य बचा ही नही जो किसी का दिमाग दुरूस्त कर पायेंगे...बस यही काफ़ी रहेगा कि इन सब छोटे अभद्र कपडो पर कड़ा प्रतिबंध लगाया जाये ताकि खुले आम कोई भी प्रदर्शन ना करें
सुनीता(शानू)
सही है
सही हुआ !! नीचे सरकती जीन्स को देख-देख कर तौबा बोल चुके हें ।
सही हुआ !!नीचे सरकती जीन्स को देख-देख कर तौबा बोल चुके हें ।
sawal ye hai bandhu ki dusare ke kapade par chinta kitni jayaj hai. agar aadmi kapda ke vyasaya me hai ya designing mi hai tab to theek hai......
Sanjeet ji,
jab pehli baar maine is vishay par apni pratikriya di thi,us wakt tak sirf do pratikriyaen thi,un pratikriyaon par pratikriya dene ki koi wajah bhi nahi thi mere liye.
pehle to main ye baat spasht karna chahungi ki meri pratikriya manawadhikar aur vyaktigat pasand -napasand ke samarthan me thi,pratibandh ke samarthan me nahi.
lekin ab kai pratikriyaen aa chuki hain,to main in pratikriyaon,vishesh kar ek pratikriya par apni pratikriya dene se khud ko rok nahi pa rahi hoon.pata nahi mujhe iska adhikar bhi hai ya nahi.
pehle to main kshma mangna chahungi Sunita ji se aur phir Sanjeet ji aapse,apni is pratikriya ke liye.agar maaf karne ki koi bhi wajah nahi mile to choti umra ka khayal karke maaf kar dijiyega.
Sunita ji ki pratikriya mujhe rah rah kar SHIVSENA aur RSS ke dwara ki jane wali MORAL POLICING ki yaad dila rahi hai.
ye kahna ki aaj ki yuva peedhi fashion ki mari hai aur dishaheen hai,ye tark atishayoktipoorn hai.iska matlab kya ye hai ki yuvaon ko in cheezon ke alawa kisi aur baat se koi sarokar nahi hai?
ye kahna ki aaj ki shiksha me brahmacharya bacha nahi jo ki dimag ko durust kar payenge,iska matlab ye ki purani shiksha me bachhon ko kut kut kar bhartiya sanskar padhaye jate the.agar aisa tha,to phir to poorane zamane me chedkhani ya rape ya kisi bhi prakar ke zurm nahi hone chahiye the.par kya aisa nahi hota tha us zamane me?zarur hota tha,ye alag baat hai ki log jankar anjan bante the ya phir is tathakathit sabhya aur susanskrit samaj me is tarah ke vishay par baat karna nahi chahte the,phir media bhi utna prabhavi nahi tha.
aaj kuch bhi hota hai to 24 hours tak media me dikhate rahte hain to logon ko lagta hai ki samaj patan ke gart me ja raha hai,koi naitikta bachi nahi hai hamare yuvaon me,hamari sanskriti bhrasht ho rahi hai,blah,blah................
agar ek low waist jeans ke karan hamari sanskriti ko khatra hai ,iska matlab ye ki indus civilisation ke roop me pari hamari neev me kuch kami rah gayi jo hum ghabra rahe hain aisi choti si baat se.
jo bhi purana hai,wohi achha hai aur naya kharab hai,mujhe lgta hai ki hame is purvagrah se bahar aane ki zarurat hai.
parivartan hi sansar ka niyam hai ,aur ye hi hum sabke jeevan ka satya hai ,to is parivartan se aankhen na moonden.kisi bhi prakar ka parivartan STATUS QUO ko kayam rakhne me badhayen utpann karta hai,shayad isiliye hum parivartan ko aasani se sweekar nahi karte aur kah dete hain ki poorana wakt achha tha.
LPG(liberalisation,privatisation n globalisation ) ke is daur me bachhon ko kis kis cheez sebacha sakte hai hum?unhe samajhiye aur phir samajhane ka prayas kijiye unke hi star par aakar,yakeen maniye chinta jaisi koi baat nahi hogi.
ant me ek baar phir vinamrata se aap dono se hi kshma chahungi.
पुष्पा जी आप की बातों का हर्गीज हम बुरा नही मानेंगे...एसी बाते तो रोज सामने आती हैं...
आपने लिखा मेरी कुछ बातें आपको पसंद नही आई...मेरे ख्याल से आपने वो बातें ध्यान से नही पढ़ी या जज्बात में आकर गलत समझ गई हैं
ye kahna ki aaj ki yuva peedhi fashion ki mari hai aur dishaheen hai,ye tark atishayoktipoorn hai.iska matlab kya ye hai ki yuvaon ko in cheezon ke alawa kisi aur baat se koi sarokar nahi hai?
एसा मैने नही कहा कि उन्हे किसी और बात से सरोकार नही मगर आप यह नही जानती कि फ़ैशन कि आड़ में ही आज सभी परिधान बदल गये है मै नही कहती कि बच्चों को बंधन में रखा जाये मगर क्या ये अच्छा लगता है कि आजकल के बच्चे कमर से नीचे जिन्स पहन कर अपने अंतरंग वस्त्रों का ध्वजारोहण नही कर रहे... जिसकी वजह से आज कल उन्हे देखने के चक्कर में डी टी सी और ब्लू लाईन वाले टक्कर मार रहे है मुझे तो नही लगता कि इसमे उन्होने कोई प्रगती भी कि है यह अंग प्रदर्शन के सिवा कुछ नही है अगर परिवर्तन करना है तो और बहुत सी बातें है क्या जरूरत है सभी को मल्लिका शेरावत बनने की... एक लंगोंटी में गांधीजी ने सारे भारत का विचरण किया था बाबा राम देव भी एक लगोंटी मै ही रहते है मगर आपको यह नही लगता कि कुदरत ने नारी को कुछ हट कर बनाया है उसे खुद को थौड़ा सम्भल कर रहना चाहिये...क्या दोष देगी आप पुरूषो को कि उन्हे क्यों देखते है गलत नजरों से...बाल अपराध क्यों हो रहे है...एक बार कारण खोजिये...आप खुद-ब-खुद समझ जायेंगी, अगर आपके वस्त्र सभ्य है अश्लील नही तो मेरा मानना है आप ज्यादा नही तो 80% दंगो से अवश्य बच जायेंगी...क्या जरूरी है वस्त्रों में लड़को की बराबरी करना...उन लोगो को देखिये जिन्होने सचमुच नाम कमाया है क्या वो भारत की नारी नही क्या वो फ़ैशन परेड में शामिल हुई थी आज जिन्होने अपने जीवन में सचमुच परिवर्तन किया है ...क्या किरण बेदी ने पहनी थी कमर से नीचे कि जिन्स मगर आज मालूम नही युवा वर्ग क्यों नही समझता कपडे़ ही इन्सान के व्यतित्व को प्रदर्शित करते है...
पुराने समय भी होते थे रेप मगर यह भी सच है कि इतने नही थे,यह सच है पुराने जमाने में बच्चो को ब्रह्म्चर्य का ही पाठ पढ़ाया जाता था आप खुद ही देखिये आज ही बाल अपराध बढ़ते जा रहे है,
मै मानती हूँ मनुष्य एक परिवर्तन शील प्राणी है मगर उसे अपने व्यक्तित्व को और खूबसूरत बनाना चाहिये न कि अपने शरीर का प्रदर्शन किया जाये...
jo bhi purana hai,wohi achha hai aur naya kharab hai,mujhe lgta hai ki hame is purvagrah se bahar aane ki zarurat hai.
एसा हर्गिज नही कहा गया है कि नया खराब है पुराना अच्छा...कृपया ध्यान से पढिये नया कभी खराब नही हो सकता हाँ विचारधारायें बदल गई है...पुराने समय में औरत को पैर की जूती समझा जाता था मगर आज वह जूता बन कर सर पर पड़ रही है खुद अंग प्रदर्शन करती है और जब फ़स जाती है इल्जाम पुरूषो पर लग जाता है क्या एसा नही होता...आप कौनसी दुनिया में जी रही है?
agar ek low waist jeans ke karan hamari sanskriti ko khatra hai ,iska matlab ye ki indus civilisation ke roop me pari hamari neev me kuch kami rah gayi jo hum ghabra rahe hain aisi choti si baat se.
law waist जिन्स से खतरा ...आज हमारी संस्कृती को खतरा हो चुका है...बताईये जरा आज कितने बच्चे एसे है जो हमारी संस्कृती से परिचित है...क्या कपड़े कम पहन कर ही परिवर्तन होगा...मुझे तो समझ नही आता..मै नही कहती की साड़ी पहनो या बुरका पहनो मगर कपड़े जो भी पहनो एसे हो की सामने वाले की आँखो मे आपके प्रति इज्जत हो न की आपके शरीर को निहारता रहे...
LPG(liberalisation,privatisation n globalisation ) ke is daur me bachhon ko kis kis cheez sebacha sakte hai hum?unhe samajhiye aur phir samajhane ka prayas kijiye unke hi star par aakar,yakeen maniye chinta jaisi koi baat nahi hogi.
अगर आप समझेंगी तो शायद आपको समझा पाऊँगी अन्यथा आपसे क्षमा चाहूँगी मुझे इतना कहने का हक सिर्फ़ मेरे बच्चों को ही है जो मेरी बात समझते है...आपने मेरी टिप्पणी पर टिप्पणी की है इसीलिये आपके सवालो का जवाब देने की कोशिश की है...
सुनीता(शानू)
हम्म्म्म अच्छा लगा यह यह जीन्स मुद्दा और उस से अच्छा लगा इस पर आए कमेंट्स को पढना :)
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