अक्सर हम कहा करते हैं कि 26 की उम्र दुनियादारी के लिहाज से कम नहीं होती। लेकिन इस दुनिया से चले जाने के लिए यह उम्र बहुत ही कम है। ऐसा ही हुआ मेरे भतीजे अचिन त्रिपाठी के साथ। उसे हम प्यार से मीनू कहा करते थे। 'हैं' से 'थे' में बदलते कितना कम वक्त लगता है न। 13 अक्टूबर क्या, 14 अक्टूबर की दोपहर तक वह 'है' भाव में था, और शाम 4 बजे पु्णे से उसके देहावसान की सूचना मिलने के बाद वह 'था' भाव में पहुंच गया। 14 अक्टूबर को अचिन ने यह दुनिया छोड़ी और आज 28 अक्टूबर को उसका जन्मदिन, अब यह जयंती है। आज अगर वह होता तो अपनी उम्र के 26 बरस पूरे करता लेकिन वह इससे पहले ही उस दुनिया में पहुंच गया जहां से कोई लौट कर नहीं आता।
अचिन था तो भतीजा लेकिन मेरा अपने सभी भतीजों के साथ दोस्ताना रिश्ता ही रहा। अचिन के साथ भी खासतौर से क्योंकि एक लंबे समय तक उसे ही चौथे नंबर का सबसे छोटे भतीजे होने का खिताब हासिल रहा। करीब 11 साल तक वह सबसे छोटा भतीजा बना रहा उसके बाद एक और भतीजा आया जो अब सबसे छोटा भतीजा है। प्राइमरी स्कूल में अचिन का स्कूल सुबह साढ़े सात बजे लगता था, तब अक्सर उससे पूछा जाता कि अचिन स्कूल कितने बजे जाते हो, बच्चे की जुबान में उसका जवाब होता '"फाढ़े-फात"। बीस-बाईस साल बाद भी कई बार हम उसे अक्सर यह "फाढ़े-फात" बोलकर चिढ़ाया करते थे, और वह चिढ़ता नहीं था, बस मुस्कुरा देता था, कभी शिकायत भी करता था कि " क्या संजू चाचा…।
मीनू क्यूट होते हुए भी स्मार्ट था इसमें कोई दो राय नहीं। आज उसके जन्मदिन पर उसे याद नहीं कर रहा, बस बहा जा रहा हूं उसकी यादों में, कई बातें याद आ रही हैं उसके नन्हेपन से लेकर अब तक कि अभी रक्षाबंधन के मौके पर ही तो वह रायपुर आया था और यह कहते हुए लौटा था कि जल्द ही जॉब छोड़कर रायपुर आऊंगा। हां, रायपुर से ही इंजीनियरिंग करने के बाद वह करीब दो साल से वह पुणे में विप्रो कंपनी में जॉब कर रहा था। जब उसे जॉब मिली थी तो कितनी खुशी हुई थी कि बच्चा इतना बड़ा हो गया कि अब जॉब करने बाहर जा रहा है। बीच-बीच में आता रहता था। फोन-फेसबुक पर बात होते रहती थी। दोस्ताना रिश्ता होने के कारण गर्लफ्रेण्ड के नाम पर उसे उसके स्कूल के जमाने से चिढ़ाते चले आ रहे थे और वह अक्सर इस बात पर शर्मा जाया करता था……क्या संजू चाचा…।
जब से वह अपनी नौकरी पर गया था, हर बार वापस लौटने पर पहले से ज्यादा परिपक्व महसूस होता रहा। लेकिन इतना भी परिपक्व क्यों हुआ वह कि हमेशा के लिए ही चला गया।
अक्सर जब वह रायपुर में होता तो प्रेस से रात में मेरे देर से घर लौटने के बाद हम सुबह 4 बजे तक गप्पें लड़ाते रहते। वह अपना फ्यूचर प्लान शेयर करता कि 'मैं ऐसा सोच रहा हूं'। पर तब न उसे मालूम था न मुझे, कि उपरवाले ने ऐसा फ्यूचर लिख रखा होगा कि मैं आज उसके जन्मदिन पर उसका स्मृति शेष लिख रहा होउंगा।
अभी इसी साल फरवरी की ही तो बात है, उसने भतीजे अंशुल की शादी के मौके पर अपने भाई अश्विन, अंकित, आदेश और बाकी भाई-बहनों के साथ मिलकर जो धमाल मचाया था वह सभी रिश्तेदारों को भी न केवल अब तक याद है, बल्कि सब वही याद कर रहे थे।
28 अक्टूबर अचिन का जन्मदिन, पिछले साल तक रात 12 बजे ही उसके विश करने की आदत रही…और इस वर्ष ऐसा है कि उसके जन्मदिन से दो दिन पहले ही उसकी तेरहवीं थी। समय का फेर भी बड़ा अजीब होता है और कई बार बड़ा ही दुखदायी।
रक्षाबंधन के मौके पर आया अचिन लौट कर गया…पुणे से उसके देहावसान की खबर…बीते कुछ दिन सब परंपराएं…और अब सन्नाटा सा…
फिर भी मन को मानो यकीन नहीं होता कि अचिन अब नहीं है। ऐसा लगता है कि मीनू शायद पुणे में ही अपनी नौकरी में व्यस्त होगा…आएगा जल्द ही छुट्टी मिलने पर……
काश ऐसा ही हुआ होता...
28 October 2013
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19 टिप्पणी:
हार्दिक श्रद्धांजलि. अब वो आपके दिल और यादों में है हमेशा के लिए.
May his soul rest in peace n peace b thr with all d members f d family...
He'll always b rememberd as a sweetheart...
हमारी भावभिनी श्रध्दांजली
हमारी भावभिनी श्रध्दांजली
हमारी भावभिनी श्रध्दांजली
इतने दिनों का ही साथ था, विनम्र श्रद्धांजलि
बेहद दुखद
साथ था इतने दिनों का ही
इस दुःख में आप के साथ हूँ। पर अचिन को हुआ क्या था? पता नहीं लग रहा।
सुनकर बेहद अफ़सोस हुआ ! ईश्वर उसे मुक्ति दे और उसके शोक संतप्त परिजनों को दुःख भार सहने का सामर्थ्य !
अकस्मात लगा, न जाने क्या खो गया...
RIP..............
RIP..............
सही कहा है तुमने संजू, अपनों का साथ यूं अचानक बिना किसी पूर्वाभास के असमय छूट जाना कई बार उस अदृश्य सत्ता को भी प्रश्नगत करता है. पर हम जानते हैं ना... कि आना और जाना सिर्फ उसके ही बस में है. इश्वर इस असीम दुखद घड़ी में पुरे परिवार का संबल बनाये रखे, यही प्रार्थना है...
क्या और कैसे हुआ?
विनम्र श्रद्धांजलि!
ओह! पढ़ कर लगा शरीर से किसी ने जान बाहर निकाल ली। ईश्वर की लीला वही जाने। हमसे पहले हमारे बच्चों को बुलाने के पीछे क्या मंशा होती है ये ईश्वर ही बता सकता है। शब्द ही नहीं है संजीत जी।काश कुछ ऐसा कर पाते कि आपके मीनू को वापस लाया जा सकता।
ओह! पढ़ कर लगा शरीर से किसी ने जान बाहर निकाल ली। ईश्वर की लीला वही जाने। हमसे पहले हमारे बच्चों को बुलाने के पीछे क्या मंशा होती है ये ईश्वर ही बता सकता है। शब्द ही नहीं है संजीत जी।काश कुछ ऐसा कर पाते कि आपके मीनू को वापस लाया जा सकता।
बहुत अफ़सोस हुआ पढकर। अचिन से जुड़े रहे लोगों को इस सदमें को सहने की ताकत मिले।
श्रद्धांजलि।
इस दुःख में आप के साथ हूँ। पर अचिन को हुआ क्या था?
इस दुःख में आप के साथ हूँ। पर अचिन को हुआ क्या था?
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