आइए आवारगी के साथ बंजारापन सर्च करें

27 March 2010

अंकल कहोगे तो नहीं दूंगा…

विधानसभा सत्र चलने की वजह से पिछले कई दिनों से अवकाश नहीं मिला था, साप्ताहिक अवकाश भी नहीं। इस बीच तबियत भी खराब हुई, गर्मी ने पेट पर हमला कर दिया। सो शुक्रवार को विधानसभा सत्रावसान के बाद छुटी की अर्जी लगा दी।




अब आज शनिवार को घर के  कई काम निपटाने थे, जिनके लिए पिछले कई दिनों से माताजी से डांट खाता आ रहा था। सो निकल लिए अपन सबसे पहले बिजली ऑफिस। मार्च महीने के चकल्लस के चलते  बिजली विभाग वालों ने जमा किए हुए बिल की रकम भी नए बिल में जोड़कर भेज दिया था। उसे सुधरवाना था और बिल जमा करना था। वहां पहुंचे, करेक्शन तो फटाफट हो गया बिना किसी हुज्जत या हीलहवाला के।

अब बारी थी वहीं कतार में खड़ा हो कर बिल पटाने की। सो अपन लग लिए लाइन में।
पांच मिनट बाद मुझसे दो तीन व्यक्ति के आगे खड़ा एक बंदा, उम्र में मेरे ही आसपास अंतर यही कि उनके सर पर बाल अभी भी पूरे तौर पर साम्राज्य स्थापित किए हुए थे, मेरे पास आया और कहा " अंकल एक मिनट पेन देना"।  अपन ने छूटते ही मुस्कुराते हुए उससे कहा " अंकल कहोगे तो नहीं दूंगा, जवान जहान कुआंरे लड़के को अंकल कहते शर्म नहीं आती।" बंदा हंसने  लगा और फिर उसने कहा कि ठीक है, सर कहूंगा अब तो पेन दे दीजिए। अपन ने दे दिया। पेन लौटाते हुए वह सॉरी कहना नहीं भूला।

इब इसमें उसकी गलती भी क्या, हुलिया ही था अपना ऐसा, सिर से बाल अपने खंडहर होते साम्राज्य को बचाने की असफल कोशिश में लगे कुछ खिचड़ी से। उपर से कई दिनों की बढ़ी दाढ़ी।  बेचारे को हुलिया देखकर फटाक से अंकल कहना ही सूझा होगा। वैसे भी इन दिनों  बढ़िया चलन है, अंकल कहने का।

इसी अंकल सुनने से त्रस्त हमारे एक मित्र ने अपनी कंपनी से लैपटाप खरीदने मिले पैसे का उपयोग अपने सिर की खेती को पुनरुत्पादित करने में किया।  मित्र हैं एक दवा कंपनी में रीजनल मैनेजर।
आए दिन ट्रेन से सफर करते रहते हैं। हल्की सी तोंद भी है और सिर पर बाल कम होते जा रहे, सामने से चांद नजर आने लगा था। वे बताते हैं, एक बार ऐसे ही ट्रेन में सफर के दौरान एक चालीस साल के उम्र वाले सज्जन ने उन्हें अंकल कह दिया। मित्र की उम्र है 32 साल, चालीस
साल वाले ने उन्हें अंकल कहा तो उनका भेजा आउट। लड़े तो नहीं लेकिन वापस आते ही तय किया कि हेयर ट्रांस्प्लांटेशन करवाएंगे। तो बकायदा कंपनी को प्रपोजल भेजा लैपटाप खरीदने का। कंपनी मान भी गई। फिर क्या था। जैसे जैसे किश्तों में पैसा आया वैसे वैसे इधर किश्तों में हेयर ट्रांस्प्लांटेशन होता गया।  मैनें बाद में उनसे पूछा, यार एक बात बताओ, कंपनी वाले मीटिंग्स में पूछते नहीं कि लैपटाप किधर है?

मित्र हमारे कम चालू नहीं। बताया कि मीटिंग में भड़क गया था कि इतने कम पैसे दिए कि बेकार लैपटाप लेना पड़ा। लेते ही खराब हो गया है तो रिपेयर के लिए कंपनी को दिय हुआ है।

खैर, मित्र अब थोड़े खुश हैं कि सामने जो चांद साफ साफ नजर आता था अब ढंक गया है।
इसलिए और ज्यादा खुश हैं कि अंकल बोलने वालों की संख्या में कमी आई है। अभी फोन किया उन्हें तो पता चला कि पुरी में है, शाम को सी-बीच पर बीयर गटकने के पश्चात आनंद-आनंद की रट लगाने के मूड में है।

लेकिन अपना यही फंडा है कि कौन हेयर ट्रांस्प्लांटेशन या हेयर वीविंग के चकल्लस में पड़े, चांद नजर आता है आने दो, चांद होता ही नजर आने के लिए चाहे आसमान का हो या सिर का
;)

28 टिप्पणी:

Randhir Singh Suman said...

nice

sonal said...

मजेदार प्रस्तुति ..पर एक बात बताइए अगर यही "अंकल " किसी हमउम्र कन्या ने कहा होता तो ?

रवि सिंह said...

वाह संजीत अंकल, बहुत अच्छा लिखा है, पढकर मज़ा आगया

Urban Jungli said...

Aaj kal toh TV pe bhi aata hai Bhaiya.. Ki daag lagne se kuch accha ho.. Toh daag bhi acche hai.. :p.. Phir kyu ghabrana..

डॉ महेश सिन्हा said...

चाँद को क्या मालूम की उसको चाहता है कोई चकोर

anuradha srivastav said...

अभी भी मौका है बेवफा दोस्तों की तरह बची - खुची केशराशि भी साथ छोड दे उसके पहले शहनाई बजवा लीजिये वरना चांद सी सूरत पर ग्रहण लग जायेगा।

tamanaa said...

achhi prastuti,aur ha dukhati rag pakdi hai apne..........
aur bahut bahut dhanyawad kyunki.........
lekh padh kar yaad aaya hame bhi bijali ka bil bharna hai aaj aakhri tarikh hai,nahi to hamari mata ji bhi hame dant lagayengi...
preeti..

नरेश सोनी said...

अच्छा है।

Akhil said...

shadi kar lo bhai ab..

Unknown said...

अरे सुनील अंकल,
हम तो "अंकल" पुराण पर एक पोस्ट भी लिख चुके हैं,,,, टाइटल है - "क्या अंकल सुनना इतना बुरा लगता है…" :) :) वैसे आपको बधाई हो…

Amitabh Mishra said...

कुछ बात तो है इन "अंकल" और "आंटी" जैसे शब्दों में, कि हम भारतीयों को इनसे अजीब सा लगाव है. गौरतलब बात यह है कि अंकल-आंटी कहने वाले लोग कभी भी चाचा-बुआ या मामा-मौसी के नाम से सम्बोधित नहीं करते. पर जहाँ मौका मिला, सामने वाले की उम्र का कोई भी अंदाजा लिए बगैर, तड़ाक से अंकल या आंटी चिपका देते हैं. इसी मानसिकता का उपयोग गोदरेज कंपनी ने अपने "आंटी.... आंटी... आंटी..." वाले हेयर-डाई के विज्ञापन में भी किया था.

Anonymous said...

हा हा

बात तो मज़ेदार है लेकिन सोनल रस्तोगी की बात का ज़वाब क्या होगा संजीत अंकल?

लेकिन उनकी भी एक बात खटक रही -हमउम्र कन्या!?

दिनेशराय द्विवेदी said...

हमारे यहाँ कस्बे के हाट में कोई ग्रामीण महिला तेजी से चलते हुए किसी जवान बालों वाले छोकरे से खुद ही भिड़ जाए तो भी कहती है -दाज्जी ड्याँ फूट गी कें (दादा जी आखें फूट गई क्या)
कम से कम अंकल कहने के रिवाज का तो धन्यवाद करो कि अब कोई दाज्जी नहीं कहता।

अजित गुप्ता का कोना said...

अभी मैं अपनी बेटी के पास पूना गयी थी, उसके बिटिया हुई है। बेटी की सहेलियां आती और मेरी बेटी अपनी बेटी को कहती कि देख आण्‍टी आयी है। सहेलियां चिढकर बोलती नहीं बोल मौसी आयी है। यह युवापीढी बिना सोचे समझे अंकल आण्‍टी बनाने पर तुल जाते हैं लेकिन जब स्‍वयं पर आकर पडती है तब उन्‍हें अपने देसी रिश्‍ते मौसी, बुआ, भैया याद आते हैं। इसलिए हम स्‍वयं तो इन नकली रिश्‍तों को अपनी जुबान पर नहीं लाए।

Anita kumar said...

अंकल हेयर वीविंग करवा लो कहीं ऐसा न हो कि इस चांद को पाल लो तो चौदवीं का चांद न मिले

Anonymous said...

हा हा
कल एक चुट्कुला मिला, एस एम एस में

एक गंजे की टी-शर्ट पर लिखी पंक्तियाँ:
भगवान ने कईयों के सर में दिमाग बनाए,
जिनमें कुछ गड़बड़ी पायी गई, उन्हें छिपाने के लिए वहाँ बाल लगा दिए गए

विवेक रस्तोगी said...

अपने भी बाल उड़ने लगे थे और बाल सफ़ेद हो गये थे, तो देखभाल में समय ज्यादा खर्च हो रहा था और टकलाहट को छुपाने के लिये भी ज्यादा एनर्जी खर्च हो रही थी, तो हम पिछले महीने तिरुपति बालाजी गये थे और बाल दे आये, बस तब से अपनी हेयर स्टाईल वही कर ली है, मतलब बाल होते हुए भी टकला, आज ही टकला करवाकर आये हैं, पूरा टकला चमक रहा है और फ़िर बादाम की तेल मालिश टकले पर करने का अलग ही आनंद आता है।

Unknown said...

sanjit bhai aaisa hi kuch mere sath bhi hua tha bas fark itna he k bande ki jagah BANDI thi par taklif ye he ki pen loutate waqt fir "THANK YOU UNCLE" kah gayi :d

Sanjeet Tripathi said...

@ सोनल जी, इब क्या बताएं, हमउम्र कन्या?
देख लो, पाबला जी भी आपकी इस बात पे मंद-मंद मुस्कुराए जा रहे हैं
;)

36solutions said...

हा हा हा, अब तो बाजा बजवा दे दाउ, तोर बरात में लाडू खाये के साध हे.

شہروز said...

आप बेहतर लिख रहे/रहीं हैं .आपकी हर पोस्ट यह निशानदेही करती है कि आप एक जागरूक और प्रतिबद्ध रचनाकार हैं जिसे रोज़ रोज़ क्षरित होती इंसानियत उद्वेलित कर देती है.वरना ब्लॉग-जगत में आज हर कहीं फ़ासीवाद परवरिश पाता दिखाई देता है.
हम साथी दिनों से ऐसे अग्रीग्रटर की तलाश में थे.जहां सिर्फ हमख्याल और हमज़बाँ लोग शामिल हों.तो आज यह मंच बन गया.इसका पता है http://hamzabaan.feedcluster.com/

Gyan Dutt Pandey said...

वाह! अंकल इत्ता बुरा शब्द भी नहीं! जो अंक से लगाले वो अंकल! :)

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

chakroo baabaa kee jay ho......!!

Urmi said...

बहुत बढ़िया, मज़ेदार और उम्दा प्रस्तुती! बधाई!

Urmi said...

बहुत ही बढ़िया, मज़ेदार और शानदार लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! उम्दा प्रस्तुती!

sandhyagupta said...

चांद नजर आता है आने दो, चांद होता ही नजर आने के लिए चाहे आसमान का हो या सिर का

Kya khub kahi!

शरद कोकास said...

एक चांद आसमा पे है एक मेरे पास है ।

Unknown said...

apun ne late se experience share kiya sanju bhaiya ! aalam ye hai ki chotey bachhey ab apun ko bhaiya kahte hai to dil ko kaafu sukun milta hai aur apun se 10-12 saal choti ladki line maarne lagi hai...apun ki to lottery lag gai hai bhidu ,hair transplant ke baad..

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