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14 January 2009

हार नहीं मानता ‘यंगिस्तान‘

कुछ दिनों पहले तक आईटी के क्षेत्र में देश की चौथी सबसे बड़ी कहलाने वाली कंपनी सत्यम कम्प्यूटर्स ने देश भर के हजारों ऐसे इंजीनियरिंग छात्रों के माथे पर परेशानी की लकीरें बढ़ा दी है जिन्हें उसने कैम्पस इंटरव्यू के जरिए अपने यहां नौकरी के लिए सलेक्ट किया था। छत्तीसगढ़ से कंपनी ने 2008 में ही करीब 90 छात्र कैम्पस के मार्फत चुने थे।



आमतौर पर कैम्पस इंटरव्यू के जरिए चुने गए छात्र उन आम छात्रों से अलहदा होते हैं जिन्हें ऑफ कैम्पस नौकरियां तलाशनी पड़ती है। लेकिन सत्यम के लिए चुने गए ये छात्र भी अब उन्हीं आम छात्रों में शुमार होकर ऑफ कैम्पस नौकरियां ढूंढने के लिए अपने को तैयार कर रहे हैं। और अच्छी बात यह है कि इसके लिए उन्हें अपने पालकों-परिवार वालों का मोरल सपोर्ट मिल रहा है जिससे वे निराश नहीं हुए है। अलबत्ता छात्र बातचीत के दौरान यह जरूर स्वीकारते हैं कि इस समूचे घटनाक्रम से वे कहीं न कहीं हर्ट जरूर हुए हैं। दूसरी तरफ सत्यम कंप्यूटर्स में सरकारी हस्तक्षेप के बाद इन छात्रों के दिल में एक उम्मीद सी जगी है कि देर से ही सही लेकिन सत्यम से ही बुलावा आ भी सकता है।



अंकित त्रिपाठी, अभिनव बिसेन, जावेद अख्तर, दुष्यंत खत्री, इशिका गर्ग, पूर्वी शुक्ला, संजय नायक, विक्रमादिय सिंह के साथ संदीप अग्रवाल, सोनिया देहरी, प्रियंका शाण्डिल्य व देवेंद्र ठाकुर ये नाम कंप्यूटर साइंस, आईटी व इलेक्ट्रिकल आदि ब्रांच के उन छात्रों में शामिल है जो एनआईटी के सन् 2008 के कैम्पस इंटरव्यू में सत्यम ने चुने थे।




अंतिम सेमेस्टर कंप्यूटर साइंस के छात्र अंकित त्रिपाठी निराश नहीं लगते। वे कहते हैं कि ऑफ कैम्पस जॉब देख रहे हैं लेकिन चूंकि सरकार ने सत्यम मामले में हस्तक्षेप किया है, सहारा दिया है तो संभव है कि कंपनी अपनी साख वापस लौटा ले। हालांकि अंकित यह भी स्वीकारते हैं कि इन सबमें थोड़ा समय लग सकता है। घर-परिवार वालों द्वारा मोरल सपोर्ट के सवाल पर अंकित कहते हैं कि मनोबल बनाए रखने के लिए काफी सपोर्ट मिल रहा है।



करीबन ऐसे ही ख्यालात कंप्यूटर साइंस के ही छात्र जावेद अख्तर के ही है। जावेद अख्तर हास्टलर हैं और यह संवाददाता जब उनसे मिला तो शाम के सवा सात बजे वे एनआईटी की लाइब्रेरी में पढ़ाई में तत्लीन थे। वे बताते हैं कि अब चूंकि उन्होंने अपना ध्यान गेट एक्जाम के लिए केंद्रित कर लिया है और उसकी तैयारी में लगे हुए हैं। हालांकि जावेद यह भी कहते हैं कि अभी कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि सरकारी हस्तक्षेप के बाद संभावनाएं अभी बाकी है संभव है साल भर बाद बुलावा आ जाए।



इसी तरह कुछ छात्रों का कहना है कि उन्होंने पहले से ही सोचा हुआ था कि ग्रेजुएशन के बाद थोड़ा वर्क एक्सपीरियंस लेकर एमबीए करना है, पर इन हालात में सीधे एमबीए करना ही बेहतर होगा। इशिका मानती है कि इस सारे मुद्दे का असर कंपनी के डायरेक्टर्स या आला अफसरों पर ही पड़ेगा निचले स्तर के कर्मचारियों पर नहीं। इन छात्रों का यह भी मानना है कि अभी सत्यम को कर्मचारियों की जरूरत है इसलिए काल लेटर आ सकता है।



एनआईटी के ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट सेल के प्रभारी व्याख्याता समीर बाजपेयी के शहर से बाहर होने के कारण इस मुद्दे पर उनकी राय तो नहीं जानी जा सकी पर इस संघ में छात्र प्रतिनिधि के रूप में कोआर्र्डिनेट कर रहे प्रशांत पिल्ले से इस्पात टाइम्स ने बात की। पिल्ले खुद कैंपस इंटरव्यू के जरिए कैपजंमिनाय नामक कंपनी में चयनित हो चुके हैं। उनके मुताबिक 2007 में भिलाई के कुछ छात्रों को सत्यम कंप्यूटर्स ने कैंपस में सलेक्ट किया था पर उन्हें अब तक बुलावा नहीं आया है। पिल्ले कहते है कि और सालों की तुलना में सत्यम ने 2008 में अधिक रिक्रटमेंट किया था।



चयनित छात्रों को कैंपस इंटरव्यू की तारीख भी याद है। वे बताते हैं 13 अगस्त 2008 को इंटरव्यू हुआ था। इंटरव्यू लेने वालों में आर्मी के एक रिटायर्ड आफिसर मिस्टर जेराण्डे जो अब सत्यम कंप्यूटर्स के कर्मचारी हैं भी शामिल थे।



बहरहाल! एक तरह से देखें तो इन चयनित छात्रों की आंखों ने जो ख्वाब देखे थे वे अब उन्हें दरकते महसूस हो रहें हैं क्योंकि कॉलेज में यह उनका सेमेस्टर है। अगला कैंपस इंटरव्यू होते समय वे कालेज से पास आऊट हो चुके होंगे और तब उस इंटरव्यू में उन्हें मौका मिलने का सवाल ही नहीं उठता। दूसरी तरफ मंदी का यह दौर ऑफ कैम्पस नौकरियों की गुंजाईश वैसे ही कम करता जा रहा है। इन सबके बावजूद अच्छी बात यह है कि यंग इंडिया की इस पीढ़ी ने हार नहीं मानी है।

9 टिप्पणी:

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप नयी पीढ़ी की तकलीफ को सामने लेकर आए हैं। इस साल एक नयी बात सामने आई है कि जिन कंपनियों ने केंपस साक्षात्कार के जरिए भरती की है उन्हों ने अच्छी योग्यता वालों को छोड़ कर मध्यम श्रेणी के विद्यार्थियों को अधिक प्रस्ताव दिए हैं।

Gyan Dutt Pandey said...

नौजवानों की स्पिरिट अच्छी लगी। उनके पास आगे लुक-फार्वर्ड को बहुत कुछ है। और वे कहीं बेहतर कम्पनियां बनायें-चलायेंगे भविष्य में!

seema gupta said...

बहरहाल! एक तरह से देखें तो इन चयनित छात्रों की आंखों ने जो ख्वाब देखे थे वे अब उन्हें दरकते महसूस हो रहें हैं क्योंकि कॉलेज में यह उनका सेमेस्टर है। अगला कैंपस इंटरव्यू होते समय वे कालेज से पास आऊट हो चुके होंगे और तब उस इंटरव्यू में उन्हें मौका मिलने का सवाल ही नहीं उठता। दूसरी तरफ मंदी का यह दौर ऑफ कैम्पस नौकरियों की गुंजाईश वैसे ही कम करता जा रहा है। इन सबके बावजूद अच्छी बात यह है कि यंग इंडिया की इस पीढ़ी ने हार नहीं मानी है।
"यंगिस्तान जिंदाबाद .... दिल से इन्हे कामयाबी की शुभकामनाये ही दे सकतें हैं ...."

regards

Anonymous said...

Vakai,aapane ek samyik samasya par dhyan-aakrisht kiya hai hamara,us dard ko jo bhavishy ki nishchitata mein satyam mein chayanit ho kar khush tha aaj use ab yakshya prashn najar aa-raha hai.

Maker sankranti ki badhai........

Shubhkamanaon sahit..
kim.

Abhishek Ojha said...

ऐसी चीजें कई ऐसे कई काम करने का मौका देती हैं जो सत्यम में जाकर कभी नहीं हो पाते.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

नौजवानों को हार मानने की कोई जरूरत नहीं है। उनके अन्दर प्रतिभा, लगन और परिश्रम की पूँजी है जिसके दम पर वे सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते जाएंगे।

हमारी शुभकामनाएं।

Anita kumar said...

आप ने पोस्ट लिखने के लिए बहुत ही सामयिक विषय चुना है। दाद के हकदार हैं
ये जान कर अच्छा लगा कि इन बच्चों के हौसले बुलंद है। परिवार हो साथ में तो आदमी बड़ी से बड़ी मुश्किल भी झेल लेता है। नाउम्मीदी का कोई कारण भी नहीं है। आई टी सेक्टर अभी और फ़लेगा और फ़ूलेगा और इनको बुलावा आयेगा ही आयेगा।
हमारी तरफ़ से इन बच्चों को शुभकामनाएं।
भगवान से प्रार्थना है कि इनका इंतजार जल्दी ख्त्म हो।

दीपक said...

परीक्षा पास करने के बाद नौकरी एक महती आवश्यकता हो जाती है !और साफ़्टवेयर के बुम के चलते अक्सर छात्र यही विषय चुन रहे है मगर यह क्षेत्र ज्यादा अस्थीर और मुलतः अमेरीक जैसे देशो पर निर्भर है और यह मंदी अही तो दो साल रंग दिखायेगी ही तब तक नौकरी मुश्कील मामला हो गया है !!

कडुवासच said...

... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति है।

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आपकी राय बहुत ही महत्वपूर्ण है।
अत: टिप्पणी कर अपनी राय से अवगत कराते रहें।
शुक्रिया ।