अपने पीडीएस सिस्टम के लिए देश ही नहीं विदेशों में भी सराही जा रही छत्तीसगढ़ सरकार के जनसंपर्क विभाग में भर्राशाही है यह तो नई बात नहीं। लेकिन अगर जनसंपर्क संचालनालय अपने ही दफ्तर में बैठकर अपनी ही सरकार के एक आईएएस के खिलाफ लिखी गई किसी पत्रकार की रपट को अपने ही ईमेल से सब अखबारों को भेज दे। भर्राशाही का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है।
बुधवार देर शाम को यही हुआ। अपने दफ्तर में बैठा मै अखबार का ईमेल देख रहा था कि जनसंपर्क विभाग का रोजाना वाला ईमेल आया जिसमें सरकारी खबरें और फोटो आती हैं। ईमेल में कई खबरें और फोटो थी। साथ ही एक पत्रकार बंधु के नाम से एक फाइल और भी थी। उसे डाउनलोड कर पढ़ा, जो कि यह था।
ढाई अरब के आइएएस
(पत्रकार का नाम हटा दिया गया है)
छत्तीसगढ़ के आला नौकरशाह एवं सहकारिता सचिव बाबूलाल अग्रवाल के खिलाफ आयकर विभाग के अकूत धन-दौलत के खुलासे से सूबे के लोगों का चौंकना स्वाभाविक है। असल में, इंकम टैक्स विभाग ने एप्रेजल रिपोर्र्ट में दावा किया है, आईएएस में आने के बाद बाबूलाल ने बेहिसाब संपत्ति बनाई और फिलहाल, 253 करोड़ के आसामी हैं। उनका परिवार 473 बैंक खातों का संचालन कर रहा था, जिसमें पिछले दो साल में ही 60 करोड़ रुपए जमा किए गए। वे 300 करोड़ के टर्न ओवर वाले प्राइम इस्पात फैक्ट्र्री के मालिक हैं। 11 साल में उन्होंने 30 कंपनियां बनाई। परिवार के पास रायपुर और उसके आसपास 108 एकड़ जमीन है और नोएडा में भी एक मकान है। रायपुर से लेकर दिल्ली के बैंकों तक में उनके लाकर निकले।(पत्रकार का नाम हटा दिया गया है)
हालांकि, बाबूलाल इसे उनकी छबि खराब करने की षडयंत्र करार देते हुए कहते हैं, आयकर विभाग ने उनके रिश्तेदारों की संपत्ति को उनके साथ जोडक़र राज्य शासन को रिपोर्ट भेजी है, वो गलत है। आखिर रिश्तेदारों को बिजनेस करने से कैसे रोका जा सकता है। उधर, छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश के डायरेक्टर जनरल इंवेस्टिगेशन विजय शर्मा का कहना है कि विभाग ने एप्रेजल रिपोर्ट भेज दी है। अब बाबूलाल क्या आरोप लगा रहे हैं, हमें कुछ नहीं कहना।
बाबूलाल 88 बैच के डायरेक्ट आइएएस अफसर हैं। वे मध्यप्रदेश में सिहोरा एवं छत्तीसगढ़ बनने के बाद दुर्ग में कलेक्टर रहे। बाद में वे हेल्थ सिकरेट्री रहे। गौरतलब है, हेल्थ सिकरेट्री रहने के दौरान स्वास्थ्य विभाग में कई बहुचर्चित घोटाले हुए। इसमें हेल्थ डायरेक्टर, ज्वाइंट डायरेक्टर, डिप्टी डायरेक्टर से लेकर कई कर्मचारियों को जेल की हवा खानी पड़ी। बाबूलाल बाद में इंकम टैक्स के शिकंजे में फंस गए। पिछले साल 4 फरवरी को आयकर विभाग की भोपाल और रायपुर की टीम ने बाबूलाल के घर, फैक्ट्री, सीए सुनील अग्रवाल समते विभिन्न ठिकानों पर दबिश दी थी। तब आयकर अधिकारियों ने बेहिसाब संपत्ति मिलने का दावा किया था।
बाबूलाल के सीए सुनील अग्रवाल के निवास पर मारे गए छापे में 473 बैंक खातों का पता चला था। सभी खाते बाबूलाल के नौकर-चाकर, फार्म हाउस मे काम करने वाले लेबर तथा रायपुर के नजदीकी गांव खरोरा के ग्रामीणों के नाम से खुलवाए गए थे। इनमें से अधिकांश को पता ही नहीं था कि उनके नाम पर बैंक में खाता है। उन खातों पर करोड़ों के लेन-देन हुए थे। आयकर रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख है कि बाबूलाल परिवार ने उड़ीसा में रहने वाले एक गरीब रिश्तेदार के नाम से खाता खुलवाया था। रिश्तेदार किराना की दुकान चला कर जीवन यापन करता है। उसके खाते से करोड़ों रुपए के लेनदेन हुए। उस गरीब परिवार के खाते में जमा राशि से 2004-2005 में प्राइम इस्पात फैक्ट्री खरीदी गई।
बाबूलाल पर गंभीर आरोप है कि छापे के दौरान उन्होंने बैंक आफ बड़ौदा के लाकर को अपने भाई के नाम पर ट्रांसफर करा दिया था। आयकर महकमे ने इसकी जांच करने के लिए सीबीआई से आग्रह किया था। सीबीआई ने इस मामले में बाबूलाल, उनके भाई और बैंक आफ बड़ौदा के मैनेजर के खिलाफ कुटरचना का आरोप दर्ज किया है। पता चला है, प्रवर्तन दिनदेशालय ईडी ने भी उनके खिलाफ प्रीवेशन आफ मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत अपराध कायम किया है। इस मामले में बाबूलाल की सभी संपत्तियां कुर्क हो सकती है। सूत्रों की मानें तो ईडी उन्हें गिरफ्तार भी कर सकती है। बाबूलाल के खिलाफ छत्तीसगढ़ आर्थिक अपराध अनवेषण ब्यूरो भी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत जांच कर रहा है।
जाहिर है, अग्रवाल चौतरफा घिरते जा रहे हैं। हालांकि, उन पर शिकंजा कसने का एक प्रमुख वजह पूरे मामले में उनका आक्रमक रुख भी रहा है। पिछले साल फरवरी में भी अग्रवाल ने प्रेस कांफ्रेंस लेकर आयकर अधिकारियों के खिलाफ शब्दवाण चलाए थे। और एप्राईजल रिपोर्ट के बाद भी प्रेस कांफें्रस लेकर आयकर विभाग के दावों की धज्जियां उड़ा डाली। एक सीनियर आइएएस कहते हैं, बाबूलाल दूसरों की सलाह पर आयकर विभाग पर प्रहार कर पैर पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक प्राइम इस्पात में बाबूलाल के भाई पवन और अशोक डायरेक्टर तथा पत्नी संगीता मैनेजर वित्त का काम देखती थी। आयकर अधिकारियों की पूछताछ में संगीता सिर्फ इतना बता पाई कि वह कर्मचारियों को वेतन देने का काम करती हैं। फैक्ट्री के बारे में वे और कुछ भी नहीं बता पाईं। बाबूलाल के यहां छापे में कोरे कागज पर पत्नी और भाइयों के हस्ताक्षर मिले। माना जा रहा है कि बाबूलाल ही प्राइम इस्पात का काम देखते थे।
मगर बाबूलाल आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहते हैं, रिश्तेदारों की संपत्ति को मेरे साथ जोडक़र अनर्गल प्रचार किया जा रहा है। उन्होंने आयकर विभाग पर तीर छोड़ते हुए कहा कि उन्हें अश्वस्त किया गया था कि उनका भी पक्ष सुना जाएगा। मगर मेरा पक्ष नहीं सुना गया। सो, रिपोर्ट एकपक्षीय है। बाबूलाल ने यह भी कहा कि आयकर विभाग ने मेरे घर से सिर्फ 7,73,400 रुपए जब्त किए थे। यह राशि आयकर विवरणिका में दर्शाई गई थी। स्वास्थ्यगत कारणों से घर में इस राशि की आवश्यकता बताने के बाद भी आयकर अधिकारियों ने उसकी जब्ती बनाई। उन्होंने एक प्रेस कांफें्रस बुलाकर इस बात से इंकार किया कि इस्पात कारखाना में न तो वे डायरेक्टर हैं और न उनकी पत्नी।
एप्रेजल रिपोर्ट के बारे में राज्य के चीफ सिकरेट्री जाय पी उम्मेन कहते हैं, आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो को जांच के लिए रिपोर्ट भेज दी गई है। जाहिर है, ब्यूरो में दस-दस साल से जांच चल रही हैं। प्रदेश कांग्रेस के सचिव और प्रवक्ता राजेश बिस्सा इस परिपाटी को ठीक नहीं मानते। बिस्सा कहते हैं, बड़े अधिकारियों की जांच के मामले में हमेशा टरकाऊ रवैया अपनाया जाता है। कायदे से डे-टू-डे जांच कर ऐसे हाईप्रोफाइल केस को निराकरण करना चाहिए। ताकि, शासन और प्रशान पर आम जनता का विश्वास बना रहे। गौरतलब है, पिछले साल आयकर छापे के बाद बवाल मचने के बाद राज्य सरकार ने बाबूलाल को निलंबित कर दिया था। बाद में उन्हें बहाल कर दिया गया।
पालिसी के लिए नाबालिग बेटे को बालिग बना दिया
और-तो-और बाबूलाल ने बीमा पालिसी लेने के लिए अपने नाबालिग बेटे समर्थ अग्रवाल को बालिग (20 साल) बनवा दिया। जबकि, समर्थ का जन्म 30 मई 1994 में हुआ था। उन्होंने बेटे के नाम पर 35 लाख रुपए की पालिसी ली थी। आयकर अधिकारियों की छानबीन में भोपाल के एक नामी पब्लिक स्कूल ने जन्म प्रमाण पत्र के गलत होने की पुष्टि कर दी। इस बारे में बाबूलाल का कहना है, बीमा कंपनी की गलती से ऐसा हुआ था। बाद में कंपनी ने इसे सुधार लिया गया।
अब सोचने वाली बात यह है कि उन पत्रकार बंधु ने यह स्टोरी अपने अखबार के लिए लिखी होगी और जनसंपर्क संचालनालय के दफ्तर में बैठकर ही अपने अखबार के दिल्ली स्थित दफ्तर में खबर भेजी होगी। यहां तक तो बात समझ में आई लेकिन आगे यह बात समझ में नहीं आई कि जनसंपर्क संचालनालय के कर्मचारी/यों ने इसे सभी अखबार-टीवी चैनलों को भेजे जाने वाले समाचार के ईमेल में क्यों संलग्न कर भेज दिया। समझ में आई तो बस यह बात कि छत्तीसगढ़ सरकार के जनसंपर्क विभाग और खासतौर से जनसंपर्क संचालनालय में कितनी भर्राशाही और राजनीति है। यह उसी बात का एक अच्छा उदाहरण है।
याद रहे छत्तीसगढ़ सरकार का प्रतीक वाक्य है विश्वसनीय छत्तीसगढ़!!!
14 टिप्पणी:
बड़ी सजगता और सूझबूझ का परिचय दिया है आपने संजीत भाई । पत्रकार से समाज ऐसी ही सजगता की उम्मीद रखता है । रही बात छतीसगढ़ की तो इस बात से इंकार नहीं की यहाँ रक्षक ही भक्षक बन बैठे हैं । शायद समय ही इसे ठीक करेगा ।
गजब
ये हो गया किसी की गल्ती से
पर इसे पकडने वाली आपकी पैनी नजर काबिलेतारीफ है
बहरहाल अच्छी रपट
अपने जनसंपर्क विभाग में चल रहे लापरवाही और वह किस तरह गैरजिम्मेदाराना काम किया जा रहा है। इस पर प्रकाश डालकर इन्हें यह भी बता दिया की अखबारो में हमारे खिलाफ खबर नहीं छप सकता यहीं सोचकर इस तरह की लापरवारी की बरती जा रही है। यह चिंता का विषय है। खैर बधाई देता हूं आप नेट डिटेक्टीव हो इसमें कोई दो मत नहीं है। इससे पहले भी अपने अपनी पैनी निगाहो से एसे समाचार प्रकाशित किया है और आगे भी करते रहोगे।
खतरनाक गलती।
आश्चर्यजनक, अविश्वसनीय.
अरबपति जाकर अरब में रहें, भारत जैसे गरीब देश में उनका क्या काम?
कृपया मुझे उस पत्रकार का नाम भी बता दीजिये
कम से कम कोई तो है जिसने इस बात पर आवाज़ उठाई है .
THE REBEL OF PRO
IT SEEMS THAT THE OFFICERS OF PRO ARE NOW DOING THEIR JOB HONESTLY, THEY DO NOT WANT TO MAKE-UP THE DIRTY FACE OF THE GOVERNMENT. YES, YOU DO KNOW THE MR. SAWRAJ.HIS NATURE IS VERY REBELLION.
SANJAY
@भाई नवीन, यदि आपको लगता है कि छत्तीसगढ़ में अभी तक इस मुद्दे पर किसी पत्रकार ने मुंह नहीं खोला या लिखा नहीं तो मुझे लगता है कि आपको पिछले साल फरवरी से लेकर अभी तक के सभी अखबार फिर से पढ़ने चाहिए।
vishwasneey chhattisgadh..jahan aap apne alaawa aur kisee par yakeen kar hi nahin sakte
मेरा ख्याल है इस ईमेलिया 'खबर' से मिलती जुलती रिपोर्ट पढ़ी है कहीं
लेकिन जनसम्पर्क संचालनालय के इस कारनामे पर हैरानगी है
हा हा.. ये वाक़यी भर्राशाही है। मूढ़ता का भी परिचायक है। सरकारी काम इसी तरीक़े से होता है।
गजब है भई,
बहुत बड़ी चूक है हैरत में डालने वाली।
आपकी पोस्ट के माध्यम से जानने मिला।
Point is there are people who believe in honesty. There is no doubt how well the article is written without revealing the name. Laparwahi hone par bhi agar kuch achcha ho jaye to laparwahi hi sahi; ya laparwahi intentionally thi???
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