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08 September 2010

महंगाई डायन का असर खेल वाली रसोई पर भी

जिस समय यह लिख रहा हूँ  उस समय यह कह सकता हूँ कि आज पोरा है। अब कईयों के मन में यह सवाल उठेगा कि यह पोरा क्या बला है। पोरा दरअसल  छत्तीसगढ़ की संस्कृति में रचा-बसा एक त्यौहार है।  छत्तीसगढ़ी में इसे पोरा  और हिंदी में पोला कहा जाता है।

इस बारे में आवारा बंजारा ने सितंबर 2007 में  एक पोस्ट  लिखी थी। जिसे यहां देखा जा सकता है।

पोला, कृषि कार्य समाप्त होने के बाद भाद्रपद ( भादो ) की अमावस्या को मनाया जाता है। जनश्रुति के मुताबिक इस दिन अन्नमाता गर्भधारण करती है मतलब कि इसी दिन धान के पौधों में दूध भरता है, इसी कारण इस दिन खेतों में जाने की अनुमति भी नही होती। पोला के दिन बैलों को उनके मालिक सजा कर पूजा करते हैं जबकि बच्चे आग में पकाए गए मिट्टी के बने या फ़िर लकड़ी के बने बैलों की पूजा कर  उनसे खेलते हैं और आपस में बैलों की दौड़ करते हैं। इसी तरह गांव और शहरों में भी बैल दौड़, बैल सजाओ प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं और विजयी बैल-मालिकों को पुरस्कृत भी किया जाता है। इस दिन ठेठरी, खुर्मी और चौसेला जैसे खालिस छत्तीसगढ़ी पकवान बनाए जाते हैं। इन पकवानों को मिट्टी के खिलौने रुपी बर्तनों में रखकर पूजा की जाती है जिस से कि बर्तन हमेशा अन्न से भरे रहें।





अब आते हैं इस शीर्षक की बात पर जो उपर अपन ने दिया है। दर-असल इस दिन घरों में भी मिट्टी के बने बैल की पूजा की जाती है। दिन ब दिन शहरीकरण के दौरान भी यह परंपरा अब तक तो बची हुई है। सो घर में माता जी ने तीन-चार दिन पहले ही जिम्मा थमा दिया कि मिट्टी के बैल लाने है साथ ही मिट्टी के वे बर्तन जो कि पूरी एक रसोई के प्रतीक होते हैं,  भी लाने है। बुधवार को पोरा और आखिर मंगलवार की शाम दफ्तर जाने के लिए निकलते वक्त पड़ी डांट कि आज मंगलवार हो गया,  कल त्यौहार है, तो कब लाने हैं मिट्टी के बैल व बर्तन। सो पहुंच गए बाजार।  देखा तो पहले मिट्टी के ही रंग में सजे रहने वाले ये मिट्टी के बैल भी अब इस्टमेन कलर के हो गए हैं।





उपर से महंगाई डायन का असर इस दिन पूजा के बाद बच्चियों के खेलने के काम आने वाले वह रसोई के प्रतीक सारे बर्तन (मिट्टी के) भी ऐसे महंगे हो गए हैं कि दाम सुन कर चौंकना पड़ा। समूचा सेट पड़ा 65 रुपए का। बैल तो बेचारे 25 रुपए जोड़ी में ही मिल गए।  कभी 2-3 रुपए में यह प्रतीकात्मक पूरा किचन सेट मिलता था  फिर पांच रुपए और आज देखिए महंगाई डायन से ग्रसित होने के बाद अब 65 रुपए।  इसमें चूल्हा, कढ़ाई, करछुल, डूआ, परांत, चकला-बेलन से लेकर वह जांता भी शामिल था जिससे घरों में अनाज पीसा जाता है। 
अर्थात महंगाई डायन का असर इतना कि खेल-खेल की रसोई भी इतनी महंगी। बचपन खेले भी तो कैसे?

पोरा की बधाई और शुभकामनाएं आपको।

16 टिप्पणी:

ASHOK BAJAJ said...

पोला की बधाई स्वीकार करें .

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

पोला तिहार हमर आशा के प्रतीक हवे के एसो फ़सल जोरदार होही अउ हमर कोठी हां चमचम ले भर जाही। बैइला हां खेती के परमुख साधन हे तेखरे सेती एक दिन ओखरो मान तान करे ला घलो लागथे। अब रोपा-निंदाई जम्मों हा झर गे हे। तीन महीना के काम बूता के पाछु बैईला मन के बिसराम करे के बेरा होगे हे।

बने जनकारी देय संजीत भाई
साधुवाद

Pankaj Jha. said...

बिल्कुल सही लिखा है आपने...एक कविता याद आ गया आपके लेख पर.
घर लौट के रोयेंगे,मां-बाप अकेले में.
मिट्टी के खिलौने भी,सस्ते ना थे मेले में.
आपको भी शुभकामना

Sanjeet Tripathi said...

ललित भैया, एकदम सही बात कहेव आप मन हा

Udan Tashtari said...

पोला की बधाई और शुभकामनाएं. आभार इस पर्व के बारे में बताने का.

प्रवीण पाण्डेय said...

पोला की बधाई।
मँहगाई डायन सच मा सब कुछ खाये जात है।

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

सार्थक लेखन के लिए बधाई
साधुवाद

लोहे की भैंस-नया अविष्कार
आपकी पोस्ट ब्लॉग4वार्ता पर

Arvind Mishra said...

पोरा को भी महंगाई डायन डस गयी -ओह !

खबरों की दुनियाँ said...

जम्मो संगी-साथी मन ला पोरा तिहार के गाढ़ा-गाढ़ा बधई । ललित भईया ह बने कहे हे बईला मन अब सुरताहीं ।अऊ मंहगई ले के तोरो गोठ ह ठउकेच हवय ,फ़ेर काय करबे ? मरना तव हम गरीब मनखे के हवय न । हमर सुनईया भईया कोनो नई हे गा…।

राज भाटिय़ा said...

पोला की बधाई स्वीकार करें, अजी कुम्हारो ने भी तो पेट भरना है ना, फ़िर साल मै एक बार ६६, या १०० रुपये नही चुभते, खुश हो कर दे दे, धन्यवाद

अरुण वोरा को उत्कृष्टता अलंकरण पर विशेष said...

वास्तव में ये महंगाई बचपन को भी लील रही है....

rashmi ravija said...

इस त्योहार का नाम पहली बार सुना...और इसे मनाने के तरीके की इतनी सारी जानकारी भी मिली शुक्रिया...इसी से मिलता जुलता त्योहार, उत्तर बिहार में भी मनाया जाता है...पर दीपावली के तीसरे दिन.
आपको पोला की बहुत बहुत बधाई.

honesty project democracy said...

सार्थक और सराहनीय प्रस्तुती ...

समयचक्र said...

पोला पर बढ़िया सटीक जानकारी है .... ससुरी मंहगाई डायन का असर सब तीज त्यौहारों पर पड़ रहा है ..
पोला त्यौहार पर हार्दिक बधाई...

shikha varshney said...

अरे ये तो बड़ा ही रोचक त्यौहार जान पड़ता है पहली बार जाना इसे.आभार इस जानकारी का ..
और आखिरी पंक्ति में तो सबकुछ कह गए आप.

रमेश शर्मा said...

तिहार के सुरता के साथ म ए जानकारी घलोक मिलीस कि ए दिन धान म दूध भराथे| एखर पाय के हमर छत्तीसगढ़ में गाय-गरु औ धान के भी पूजा करे जाथे| सुग्घर फोटो संग तुंहर फीड म जान आ गिस| शानदार बधाई

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