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22 January 2008

छत्तीसगढ़ का खजुराहो- भोरमदेव

छत्तीसगढ़ का खजुराहो- भोरमदेव
खजुराहो का परिचय देश-विदेश में किसी को देने की जरुरत नही पर छत्तीसगढ़ में भी एक ऐसा मंदिर है जिसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाता है। तो आईए जानें कि छत्तीसगढ़ पर्यटन विभाग छत्तीसगढ़ के खजुराहो अर्थात भोरमदेव का क्या परिचय देता है हमें।

भोरमदेव

छत्तीसगढ़ के कला तीर्थ के रूप में विख्यात भोरमदेव मंदिर रायपुर-जबलपुर मार्ग पर कवर्धा से लगभग 17 किमी पूर्व की ओर मैकल पर्वत श्रृंखला पर स्थित ग्राम छपरी के निकट चौरागांव नामक गांव में स्थित है। भोरमदेव मंदिर न केवल छत्तीसगढ़ अपितु समकालीन अन्य राजवंशों की कला शैली के इतिहास में भी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। 11वीं शताब्दी के अंत में (लगभग 1089ई) निर्मित इस मंदिर में शैव, वैष्णव, एवं जैन प्रतिमाएं भारतीय संस्कृति एवं कला की उत्कृष्टता की परिचायक हैं। इन प्रतिमाओं से ऐसा प्रतीत होता है कि धार्मिक व सहिष्णु राजाओं ने सभी धर्मों के मतावलम्बियों को उदार प्रश्रय दिया था।

किवदन्ती है कि गोंड जाति के उपास्य देव भोरमदेव(जो कि महादेव शिव का ही एक नाम है) के नाम पर निर्मित कराए जाने पर इसका नाम भोरमदेव पड़ गया और आज भी इसी नाम से प्रसिद्ध है।

मंदिर की स्थात्य शैली,मालवा की परमार शैली की प्रतिछाया है। छत्तीसगढ़के पूर्व-मध्यकाल (राजपूत काल) में निर्मित सभी मंदिरों में भोरमदेव मंदिर सर्वश्रेष्ठ है।निर्माण योजना एवं विषय वस्तु में सूर्य मंदिर कोणार्क और खजुराहो के मंदिरों के समान होने से इसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण श्री लक्ष्मण देव राय द्वारा करवाया गया था। इसकी जानकारी वर्तमान में मण्डप में रखी हुई एक दाढ़ी-मूंछ वाले योगी की बैठी हुई मूर्ति(जो कि 0.89 सेमी ऊंची व 0.67 सेमी चौड़ी है) पर उत्कीर्ण लेख से ज्ञात होती है। इसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण दूसरे लेख कलचुरि संवत 840 तिथि दी हुई है। इससे यह जानकारी प्राप्त होती है कि यह मंदिर छठे फणि नागवंशी शासक श्री गोपालदेव के शासन में निर्मित हुआ था।

पूर्वाभिमुख प्रस्तर निर्मित यह मंदिर नागर शैली का सुंदर उदाहरण है। मंदिर में तीन प्रवेश द्वार हैं प्रमुख द्वार पूर्व दिशा की ओर, दूसरे का मुख दक्षिण की ओर एवं तीसरा उत्तराभिमुखी है। निर्माण योजना की दृष्टि से इसमे तीन अर्द्ध मण्डप,उससे लगे हुए अंतराल और अंत में गर्भगृह है। अर्द्ध मण्डप का द्वार शाखाओं व लता-बेलों से अलंकृत है। द्वार शाखाओं पर शैव द्वारपाल,परिचारक,परिचारिका प्रदर्शित है। मण्डप के तीनो दिशाओं के द्वारों के दोनो ओर पार्श्व में एक-एक स्तंभ है,जिनकी यष्टि अष्ट कोणीय हो गई है, इनकी चौकी उल्टे विकसित कमल के समान है,जिस पर कीचक बने हुए हैं जो छत का भार थामे हुए हैं। मण्डप में कुल 16 स्तंभ है,जो अलंकरण युक्त हैं। मण्डप में गरूड़ासीन लक्ष्मीनारायण प्रतिमा एवं ध्यानमग्न राजपुरूष की पद्मासन में बैठी हुई प्रतिमा विद्यमान है।

गर्भगृह का मुंह पूर्व की ओर है तथा धरातल से 1 .50 मीटर गहरा है। इसमें बीचों-बीच विशाल जलाधारी पर कृष्णप्रस्तर निर्मित शिवलिंग प्रतिष्ठित है,जिसकी सीध में ऊपर की छत पर अलंकृत शतदल कमल बना है। गर्भगृह में पूजित स्थिति में पंचमुखी नाग प्रतिमा, नृत्य गणपति की अष्ट भुजी प्रतिमा,ध्यान मग्न राजपुरुष की पद्मासन में बैठी हुई प्रतिमा,उपासक दंपत्ति प्रतिमा विद्यमान है।

वर्तमान में मंदिर के क्रमश: संकरे होते हुए ऊंचे गोलाकार अलंकृत शिखर में कलश नही है। शेष पूरा मंदिर अपनी मूल स्थिति में है। शिखर भाग अपंक्तिबद्ध अलंकृत अंग शिखरों से युक्त हैं।

मंदिर के कटि भाग की बाह्य भित्तियां अलंकरण युक्त हैं। कटिभाग में देवी-देवताओं की प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं। जिसमें विष्णु,शिव चामुण्डा,गणेश आदि की सुंदर प्रतिमाएं उल्लेखनीय है। चतुर्भुजी विष्णु की स्थानक प्रतिमा, लक्ष्मीनारायण की बैठी हुई प्रतिमा एवं क्षत्र धारण किए हुए द्विभुजी वामन प्रतिमा,वैष्णव प्रतिमाओं का प्रतिनिधित्व करती है। अष्टभुजी चामुण्डा एवं चतुर्भुजी सरस्वती की खड़ी हुई प्रतिमाएं देवी प्रतिमाओं का सुंदर उदाहरण है। अष्टभुजी गणेश की नृत्यरत प्रतिमा,शिव की चतुर्भुजी प्रतिमाएं,शिव की अर्द्धनारीश्वर रूप वाली प्रतिमा,शिव परिवार की प्रतिमाओं के सुंदर मनोहारी उदाहरण हैं। मंदिर के जंघा पर कोणार्क के सूर्य मंदिर एवं खजुराहो के मंदिरों की भांति सामाजिक एवं गृहस्थ जीवन से संबंधित अनेक मिथुन दृश्य तीन पंक्तियों में कलात्मक अभिप्रायों समेत उकेरे गए हैं। जिनके माध्यम से समाज के गृहस्थ जीवन को अभिव्यक्त करने का प्रयास किया गया है। इनमें मिथुन मूर्तियों का बाहुल्य है। इन प्रतिमाओं में नायक-नायिकाओं, अप्सराओं, नर्तक-नर्तकियों की प्रतिमाएं अलंकरण के रूप में निर्मित की गई हैं। प्रदर्शित मिथुन मूर्तियों में कुछ सहज मथुन विधियों का चित्रण तो हुआ है। कुछ काल्पनिक विधियों को भी दिखलाने का प्रयास किया गया है। पुरुष नर्तक एवं नारी नर्तकियों से यह आभास होता है कि दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दी में इस क्षेत्र के स्त्री पुरुष नृत्य कला में रूचि रखते थे। नर्तकी प्रतिमाएं कला-साधना में मग्न दिखलाई पड़ती हैं। मंजीरा,मृदंग,ढोल,शहनाई,बांसुरी,एवं वीणा आदि वाद्य उपकरण, मूर्तियों में बजाए जाते हुए प्रदर्शित हुए हैं। मंदिर परिसर में संग्रहित प्रतिमाओं में विभिन्न योद्धा प्रतिमाएं एवं सती स्तंभ प्रमुख है।

भोरमदेव मंदिर की परिसीमा में ही मुख्य मंदिर के पार्श्व में उत्तर की ओर चार मीटर की दूरी पर एक ईंट निर्मित शिव मंदिर विद्यमान है। इसका मुख पूर्व की ओर है । तल-विन्यास की दृष्टि से इसके मण्डप एवं गर्भगृह दो अंग है। मण्डप मूलत: 6 स्तंभों पर आधारित है। वर्तमान में बाएं पार्श्व के दो स्तंभ टूट चुके हैं,जिनकी अब केवल कुंभी मात्र शेष हैं। मण्डप में गर्भगृह की ओर मुख किए हुए नंदी अवशिष्ट हैं। गर्भगृह में मूल शिवलिंग अपने स्थान पर नही है।,जो संभवत: विनष्ट हो चुका है। यह मंदिर दक्षिण कोसल में ईंटों के मंदिर निर्माण की परंपर के उत्कृष्ट कला का उदाहरण है।

भोरमदेव मंदिर के दक्षिण में लगभग आधा किमी की दूरी पर चौराग्राम के समीप खेतों के मध्य एक प्रस्तर निर्मित शिव मंदिर विद्यमान हैं,जिसका नाम मण्डवा महल है। इस मंदिर का निर्मान 1349 ईस्वी में फणि नागवंशी शासक रामचंद्र का हैह्यवंशी राजकुमारी अंबिका देवी के साथ विवाह के उपलक्ष्य में हुआ था। प्रस्तर निर्मित यह मंदिर पश्चिमाभिमुख है। यह आयताकार है। निर्माण योजना की दृष्टि से इस मंदिर में गर्भगृह,अंतराल और मण्डप है। मंदिर का बाहरी भाग विभिन्न मूर्तियों से अलंकृत है।

भोरमदेव मंदिर के दक्षिणी पश्चिमी दिशा में एक किमी की दूरी पर छेरकी महल नामक शिव मंदिर है। इसका मुख पूर्व दिशा की ओर है। फणि नागवंशी के शासनकाल में छेरी (बकरियां) चराने वाले चरवाहों को समर्पित है,छेरकी महल नामक शिव मंदिर। गर्भगृह के मध्य में जलाधारी पर कृष्ण प्रस्तर निर्मित शिवलिंग स्थापित है। ईंट निर्मित दीवारें अलंकरण विहीन है। स्थापत्य विद्या एवं तोरण द्वार में निर्मित मूर्तियों की समानता को देखते हुए इसका निर्माण मण्डवा महल से बहुत अधिक परवर्ती नहीं मालूम पड़ता। ईंट व प्रस्तर निर्मित होने के कारण क्षेत्रीय मंदिर वास्तु की दृष्टि से इसका महत्व है।

कैसे पहुंचे भोरमदेव

वायु मार्ग- निकटतम हवाई अड्डा रायपुर (134 किमी) है जो कि मुंबई,दिल्ली,नागपुर,भुवनेश्वर,कोलकाता,रांची,विशाखापट्नम एवं चेन्नई से जुड़ा हुआ है।

रेल मार्ग- हावड़ा-मुंबई मुख्य रेल मार्ग पर रायपुर(134किमी) समीपस्थ रेल्वे जंक्शन है।

सड़क मार्ग- रायपुर (116किमी) एवं कवर्धा(18किमी) से दैनिक बस सेवा एवं टैक्सियां उपलब्ध है।

और अधिक जानकारी के लिए संपर्क-
छत्तीसगढ़ पर्यटन मण्डल
पर्यटन भवन, जी ई रोड
रायपुर, छत्तीसगढ़
492006
फोन- +91-771-4066415


मूल आलेख:संजय सिंह। तस्वीर सौजन्य रुपेश यादव फोटोग्राफर। सभी तस्वीरों पर कॉपीराईट रुपेश यादव का है जो कि वर्तमान में रायपुर के अंग्रेजी दैनिक हितवाद से जुड़े हुए हैं।


16 टिप्पणी:

Pankaj Oudhia said...

रोचक वर्णन है। अगली ब्लाग मीट वही रखेंगे। एक बात बताओ कि यहाँ पर बिना अनुमति फोटो न लेने का जो बोर्ड पुरातत्व विभाग ने लगा रखा है उसके क्या मायने है। जबकि इसके सैकडो चित्र इंटरनेट मे है। मैने तो तस्वीरे नही खीची पर अगर अनुमति होती तो इससे राज्य ही का नाम होता। यदि आपकी कोई बात उनसे हो तो मेरी बात रखना।

काकेश said...

पुराने दिन याद आगये. तस्वीरें अच्छी हैं.

anuradha srivastav said...

छतीसगढ से पाठकों का परिचय कराने के लिये बधाई........ स्थापत्यकला दर्शनीय है।

रंजू भाटिया said...

सुंदर वर्णन सुंदर जगह ..लगता है कि हिन्दुस्तान का कोई कोना भी कला से अछुता नही हैं सब तरफ़ कला की सुन्दरता बिखरी हुई है ..आपने इसको बहुत ही रोचक तरीके से लिखा है संजीत जी !!

Gyan Dutt Pandey said...

वाह, यह तो बहुत मेहनत कर लिखा है आपने और निश्चय ही यह बहुत महत्वपूर्ण पोस्ट है। मैं पूरी मेहनत से पोस्ट लिखने की आपकी स्पिरिट को सराहता हूं। ब्लॉगिंग में यह स्पिरिट व्यापक हो जाये तो मजा आ जाये।
बहुत बधाई भोरमदेव से परिचय कराने के लिये।

रवि रतलामी said...

एक अच्छे आलेख के लिए शुक्रिया.

पिछली दफ़ा नवंबर 07 में मेरा वहां जाना हुआ था तो देखा था कि पुरातत्व विभाग ने मंदिर के रखरखाव में बिलकुल ही चलताऊ मन बना रखा है.

वहाँ पर मंदिर के फर्श को सेरेमिक टाइल्स (जो भवनों में बाथरूमों में लगाए जाते हैं कुछ वैसे ही किस्म के) लगाकर उसकी पुरातात्विक महत्ता को ही खत्म सा कर दिया है. ये सेरेमिक टाइल्स इतने प्राचीन व भव्य मंदिर में पैबंद की तरह नजर आते हैं. सामने झील में भी गंदगी भरी हुई थी. यह सब देखकर बहुत ही दुख हुआ था.

पारुल "पुखराज" said...

बहुत खूब्…सुंदर वर्णन ……मन भाया

mamta said...

वाह भाई वाह आज तो घूमने का दिन है।

आपके भोरमदेव उर्फ़ छतीस गढ़ के खजुराहो को देखने के लिए तो आना ही पड़ेगा।

शुक्रिया इतनी बढिया जानकारी और फोटो के लिए।

Lokesh Kumar Sharma said...

kaafi aacha vivaran aur photographi hai

Prabhakar Pandey said...

बहुत ही रोचक वर्णन। कमाल का। चित्र भी बहुत ही अच्छे हैं।
क्षमा करें- एक सुझाव-
फांट अगर थोड़ा और बड़ा होता तो पढ़ने में और आनन्द आता।

Shastri JC Philip said...

भारतीय मिथुन मुर्तियों पर लिखने की सोच रहा था कि आपका यह लेख दिख गया. नई जानकारी मिली. आभार !!

36solutions said...

भोरमदेव के संबंध में विस्‍तृत विवरण देने के लिए धन्‍यवाद ।

Lokesh Kumar Sharma said...

Esi shaili awam samyakalya ka mandir Raipur se 38 KM ki doori me Raipur-Saraipali marg par Arang naam ke sthan me bhi sthit hai.

Pratyaksha said...

बढ़िया लेख बढ़िया चित्र !

Anita kumar said...

मंदिर बहुत ही खूबसूरत दीख रहा है, दिवारों पर शिल्पकारी बहुत बड़िया है। आप तो जी छ्त्तीसगढ़ पर्यटन विभाग ही जोइन कर लो। अब इत्ती मेहनत से बताते हो कि वहां कैसे पहुंचा जाए तो ये तो बता दो कि दाम कित्ता लगता है और वक्त कितना लगता है, वहां ब्लोगर्स मीट करने का इरादा बुरा नहीं बहुत धांसू आइडिया है, अपुन तो वैसे भी सब जगह पहुंच जाते हैं, बोलो कब बुलाते हो

Ashwini Kesharwani said...

bhoramdev par achchhi posting, photo ke sath attractive ban gaya hai, dhanyawad.

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आपकी राय बहुत ही महत्वपूर्ण है।
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शुक्रिया ।