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04 June 2007

मुन्ना भाई मीट्स हिंदी ब्लागर्स-1

पता नहीं किस मूहूर्त में नारद के अधिकतर हिंदी ब्लागर्स ने तय किया कि एक वृहत ब्लागर्स मीट आयोजित कर सारी दुनिया फ़ैले नारद भक्तों को बुलाया जाए। तय यह हुआ कि यह मीट रखी जाएगी मुंबई में। बस फ़िर क्या था फ़टाफ़ट सारी दुनिया में फ़ैले नारद भक्तों के फोन खड़खड़ाए जाने लगे, ई-मेल पर ई-मेल भेजे जाने लगे कि किसी भी हालत में आपको आना ही है।

तय तारीख को मुंबई निवासियों ने देखा कि क्या बात है आज जुहू बीच पर अजीब तरह के लोग कुछ ज्यादा ही दिख रहे हैं जो आपस में ना जाने क्या बातें कर रहे हैं। कभी कभी तो ऐसा लगा कि बस अब लड़ाई होने ही वाली है। पर नहीं यह अजीब लोग तो आपस में कुछ विवादस्पद विषयों को लेकर बहस मात्र कर रहे थे। खैर! जैसा कि मुंबई वासियों की आदत है अपने में ही व्यस्त रहने की तो बस यही सब सोचते रहे और टहलते हुए वहां से निकल लिए।

जुहू बीच पर जो कुछ ज्यादा ही अजीब लोगों की भीड़ दिखाई दे रही थी ये और कोई नहीं सब "नारद मुनि" के भक्त हिंदी के चिट्ठाकार थे जो कि आओ प्यारे सिर टकराएं की तर्ज पर आपस में चिंतन-मनन,विचार-विनिमय में लगे हुए थे। बीच-बीच में जुहू बीच को हिला देने वाली किन्हीं एक दो सज्जनों की भी हंसी भी गूंज रही थी। वहीं एक "सज्जन" टी-शर्ट और घुटन्ना (बरमूड़ा) पहने अपने ही बनाए "स्पेशल काकटेल" चुसकते हुए अपने आस-पास बैठे युवाओं से जिस अंदाज़ से बतिया रहे थे उस से स्पष्ट समझ आ रहा था कि वह गुरु हैं और आसपास बैठे युवा उनके शिष्य। अपने शिष्यों को शिक्षा देते हुए यह सज्जन बीच-बीच में जोर से "अहा आनंदम-आनंदम" कहे जा रहे थे क्योंकि ना चाहते हुए भी उनकी नज़र आस-पास भटकना चाह रही थी पर उनका एक "शिष्य" उनसे पहले से ही अपनी नज़रें आसपास भटका रहा था। दरअसल आसपास बहुत सी फ़िरंगी मेम छतरी तान कर धूप स्नान कर रही थी।

दूसरी तरफ़ ब्लागर कम पत्रकारों की जमात में सब आपस में दुखड़ा रो रहे थे। दुखड़ा कुछ यूं था- "यार क्या करें हम तो बंधुआ मजदूर हो कर रह गए हैं। बस इससे कुछ सवाल पूछो,उससे कुछ सवाल पूछो वह भी विवादास्पद सवाल। बस पब्लिक की पसंद के चक्कर में उपर का आदेश मानते हुए टी आर पी बढ़ाने वाले मामले कवर करने में लगे रहते हैं। अपनी मर्जी से तो कुछ कर सकते नहीं,ले दे कर यह एक ब्लाग नाम की चीज मिली जहां कम से कम अपनी पसंद का कुछ लिख तो सकते हैं भले ही वह और ज्यादा विवादास्पद हो। पर यहां आने के बाद तो क्या गली क्या "मोहल्ला" और क्या "कस्बा" सब जगहों के बच्चे तक मुंह चिढ़ाने लगे हैं। खैर! हम पत्रकार हैं हार कैसे मान लें हम लिखते रहेंगे, मुद्दे उठाते रहेंगे और लोगों को जागरुक बनाते रहेंगे।

इधर कंप्यूटर, तकनीकी और चिट्ठा विशेषज्ञ ब्लागर्स भी बैठे हुए थे । यह सब इस उधेड़बुन में लगे थे कि ब्लागर्स के लिए नई बातें,नई तकनीकें सामने लाएं तो कहां से और किस तरह की।
ध्यान देने लायक बात यह थी कि इस वृहत ब्लागर मीट में बहुत सी महिला ब्लागर भी मौजूद थीं। "रत्ना की रसोई" के पकवानों को चखकर तारीफ़ करते हुए आपस में चर्चा कर रही थी। इनके बीच चर्चा का सबसे पहला मुद्दा यह था कि कौन दफ़्तर और घर के कामों के बाद भी ज्यादा से ज्यादा पोस्ट लिखने में सफ़ल है। साहित्य-दुनिया-मनोविज्ञान-आत्मिक उर्जा के अलावा भी सब महिला ब्लागर दिलोजान से जो एक खास चर्चा कर रही थी बस वही,वही एक चर्चा पुरुषो के लिए अनझेलेबल थी क्योंकि वह चर्चा थी मेकअप,साड़ी,गहने और शापिंग पर।

इन सबके बीच सबसे खास बात जो किसी को नहीं मालूम थी वो यह कि मुंबई के फ़िल्मी ब्लागर्स के माध्यम से सरकिट को इस ब्लागर्स मीट की खबर किसी तरह लग गई थी। दोपहर खत्म होते होते सरकिट पहूंच गया मुन्नाभाई को लेकर इन नारद भक्तों के बीच। मुन्नाभाई को देखकर सभी चिट्ठाकर खुश हो गए कि चलो आज का दिन सफ़ल तो हुआ।लेकिन मुन्ना थोड़े टेंशन में दिखाई दे रहा था,अचानक बोला " क्यों रे मामू लोग तुम लोग अपने को क्या समझेला है, साला क्या बोलते हैं इसको ये बिलाग तुम्हारे घरीच की खेती है क्या। अपुन को साला ये सरकिट ने बताया कि भाई ये बिलाग अब हिंदी में भी बनेला है तो अपुन बोला अपन भी बना लेते है थोड़ा रोल और हूल देने के काम आएंगा पब्लिक को। अपुन ने वो डिब्बा, ए सरकिट क्या बोलते वो डिब्बे को" सरकिट ने फ़ौरन जवाब दिया"भाई, कंपूटर। मुन्ना फ़िर शुरु हो गया " हां वईच,अपुन ने कंपूटर जुगाड़ा,वो वो इंटरनेट कनेक्सन जुगाड़ा और फ़िर एक पढ़ा लिखा श्याणा बंदा 'हायर' किया जो कंपूटर और उसपे लिखने कू जानता। उसीच श्याणे ने अपुन को वो क्या नाम है नारायण-नारायण वाले का,हां नारद। नारद के बारे में उसी ने बताया अपुन को। अपुन बोला नारद पे बाकी सब को रोकने का और सबसे पहले अपुन का रजिस्ट्री करने का मांगता,अपुन का लिखा अक्खा दुनिया का लोग पढ़ेंगा और क्या। पन दो-तीन दिन बाद वो मेरे कू बोला भाई नारद ने अपना बिलाग रजिस्ट्री करने से मना कर दियेला है। काएकू पुछने पे बताएला कि खाली हिंदी चलता उधर । अपुन ने पुछा इस श्याणे से कि अपुन क्या कोई फ़ारेन लेंग्वेज बोलता क्या तब उसने दिखाया कि नारद वालों को कैसी हिंदी मांगता। साला देखकेइच अपुन का भेजा घुम गएला है। वो क्या है ना भाई लोग कि अपुन को लिखने का नई आता उपर से कंपूटर पे लिखना तो औरीच नई आता ना इसीलिए अपुन ने इस बंदे को ठीक करेला। अपुन बोलता जाता है और ये 'हायर' किया बंदा ठीक वैसाईच लिखता जाता है। अब बोलो मामू लोग मेरे कू रजिस्ट्री देगा कि नई नारद पे?"

क्रमश:


सूचना-- कृपया इस सीरीज़ की पोस्ट को सिर्फ़ बतौर मनोरंजन ही लें!! यदि इसे उल्लेखित व्यक्ति आक्षेप के रुप में लेते हैं तो क्षमा!!!

31 टिप्पणी:

Manish Kumar said...

वाह भाई बहुत बढ़िया ! मजेदार रहा यह भाग आगे भी आपकी कल्पनात्मक उड़ान के दृश्य देखने की उत्सुकता है :)

36solutions said...

संजीत जी, ब्यंग की कटार मारते तो हम आपको देख ही चुके थे टिप्पणियो मे, आप तलवार भी चलाते है वो भी बेआवाज आज देख लिया, अच्छी रचना के लिये धन्यवाद
आगे और इन्तजार रहेगा अर्जुन के शब्द बाण का . . .

सर्किट said...

अरे वाह भाई अपुन तो सोचा था अपनेईच भर है बिलगवा मे आप भी आ रहे है गुड मार्निन्ग हिन्दी दुनिया कहने तो स्वागत है मुन्ना भाई अनुन सब अरेन्जमेन्ट कर देगा आप फिकर नई करने का क्या , ए सयाणे तू आगे और भाई के बारे मे लिखना नई तो रायपूर मे हमारे दो तीन शूटर भाई लोग छुपेला है, वो तुम्हारे भूरी आन्खो वाले क्राईम इन्स्पेक्टर के डर से, टपकाईच देन्गे समझे ना तो और लिखो . . . भाई को अच्छा लगा है

NK. said...

बहुत मज़ेदार, आगे की कड़ियों का इंतजार रहेगा...

Anonymous said...

संजीत जी अच्छा लिखा आपने।
हमारे मुन्नाभाइ से यहां मिलिये
http://aaina2.wordpress.com/2006/08/31/lagerahomunnabhai/

ghughutibasuti said...

बहुत बढ़िया । पर आपने ध्यान नहीं दिया हम स्त्रियाँ साड़ी की नहीं दाढ़ी की ( आपने अभिनव जी की वह दाढ़ी पर कविता नहीं पढ़ी क्या ? ), गहने की नहीं आप सबको सहने की ,मेकअप की नहीं लौकअप की, चर्चा कर रही थीं । आगे से हमारी बातचीत ध्यान से सुनियेगा ,यूँ ही कयास न लगाया कीजिये । हाँ, और वह शॉपिंग की बात नहीं हो रही थी वह तो अपने नाखून शार्पनिंग के बारे में सलाह मशविरा हो रहा था । बचकर रहना भाई !
घुघूती बासूती

Urban Jungli said...

Abhi bolega toh maza aa gela padh ke bilog..

Bole toh jhakkaassss..

काकेश said...

बहुत अच्छे ...मजा आ गया भाई..

लगे रहो :-)

Rajesh Roshan said...

मजेदार लिखा है । आगे कि कड़ी कब तक ला रहे हैं?
राजेश रोशन

गरिमा said...

बहुत मजा आया... आगामी अंक के लिये इंतजार करना मुश्किल होगा, जल्दी ही लिखियेगा।

Anonymous said...

बहुत ही अच्छा लिखा है।

ePandit said...

अरे मुन्ना भाई को हमारी पाठशाला का पता देने का न। उधर हिन्दी टाइपिंग से लेकर ब्लॉगिंग तक सब सिखा देगा अपुन।

कल्पना की मजेदार उड़ान।

Gyan Dutt Pandey said...

1. नारद अब बहुत मनमानी करने लगे हैं. आखिर मुन्नाभाई की भाषा हमारे 75% ब्लॉगरों की आदर्श है. ऐसा पता चला है. सो सर्किट को कहें कि मुन्नाभाई ब्लॉग बनायें. हम सब अनऑफीशियल तरीके से ईमेल के माध्यम से उनका ब्लॉग हिट करा देंगे. फिकर नहीं.
2. वैसे भैया, ये मुन्नाभाई कौन है? असल में फिल्में मै देखता नहीं. यह डायलाग लेकिन बड़े पसन्द आये!
3. सटायर बड़ा जबरदस्त है!

रंजू भाटिया said...

संजीत जी.....बहुत मज़ेदार:)

Udan Tashtari said...

हा हा...देर से पहुँचने के लिये क्षमा-थोड़ा चुस्कियों में ज्यादा समय लग गया न!! क्या गजब लिखा है भाई!!--अह्हा आनन्दम आनन्दम!! अब जल्दी ही अगला अंक लाओ, इंतजार लगा है. इतना बढ़िया मनोरंजन के लिये बधाई :)

Sanjeet Tripathi said...

@ मनीष भाई शुक्रिया

@संजीव भैय्या,शुक्रिया

@सर्किट जी, मै डर गया, डराओ मत भैय्या।

@नीरज भाई, शुक्रिया,

@जगदीश जी, शुक्रिया, पढ़ा है मैने आपके मुन्ना भाई को, सच कहूं तो प्रेरणा वहीं से मिली यह पोस्ट लिखने की, आभार।

@घुघूती बासूती जी, वाह आपने तो अर्थ ही बदल दिए, सावधान रहूंगा मैं तीखे नाखून से। आभार्।

@टाईगर भाई, खुशी में एक शानदार दहाड़ हो जाए। शुक्रिया।

@थैंक्यू है काकेश जी।

@धन्यवाद राजेश रोशन जी, कल हाजिर हो जाएगी आगे की कड़ी।

@गरिमा जी, आपको पसंद आया बस हम खुश हो गए।

@अतुल जी, शुक्रिया।

@पंडित जी, आभार, मुन्नाभाई आज नहीं तो कल आपकी पाठशाला पहुंचेंगे ही।

@ज्ञान दद्दा, आशीर्वाद बनाए रखें आप।

@रंजु जी, धन्यवाद कि आपको पढ़कर अच्छा लगा।

@उड़नतश्तरी वाले गुरुवर, लो कल्लो बात, इहां हम आपै से प्रेरणा लेकर पहली बार ऐसन लिखे हैं और आप हो कि गायबे रहत हो। ई ठीक नई हैं हां बताए देत हैं।

अनूप शुक्ल said...

बहुत खूब!

saurabhtipnis said...

sanjeet bhai.....aapko batana chahta hu ki ye aapki 1st rachna hai jo hame padhne ka saubhagy prapt hua hai...and from now i am not going to miss any of ur>>>rachna<<<..u r the best...BHAI keep it up..!!

saurabhtipnis said...

sanjeet bhai...ye maine aapki anek rachnao me se ek padhne ka aaj subhagy prapt hua hai..and i just want to say..that from now on.. i am not going to miss any of ur>>>rachna<<<...you r the best..!!
BHAI keep it up.!!

Rajeev (राजीव) said...

धाँसू है, लगे रहो ...

अमाँ यह किश्तों में काएकू छापा रे। अक्खी रिपोर्ट एक बार में हीच छापने से झकास होता। लिखो भाई अपुन भी अगली पोस्ट का वेट करेला।

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

वाह वाह संजीत भाई,
बम्बई नगरी की मीट मेँ तो आप मुन्ना भाई को ले आये, ब्लोग्गेर्स की ओर से धन्यवाद.
अरविन्द चतुर्वेदी
भारतीयम्

Sanjeet Tripathi said...

@अनूप जी शुक्रिया! आभार!

@शुक्रिया राजीव जी, बस हाजिर है दूसरी किश्त भी।

@शुक्रिया सौरभ, बस ऐसे ही हौसला बढ़ाते रहो पर मुझे खुशी होगी अगर आप हिंदी में टिप्पणी देना शुरु करें तो।
@अरविंद भाई पधारने का शुक्रिया। आपको पसंद आया इतना ही काफ़ी है।

Anonymous said...

Hats off to you. You are a mature writer. We can’t take you lightly. The piece was very interesting. It was funny and also raised some questions like how much should we concentrate on the grammatical purity of language, and how bloggers are also writing according to ‘public demand’ instead of speaking their souls. The points raised by you are valid. Your piece is great. I enjoyed it. Keep writing.

Anonymous said...

आफिस, घर,साड़ी मेकअप के इलावा वहाँ पर मुख्य मुद्दा महिला आरक्षण था जिसे लेकर हम लोग भी गली-मोहल्ले और कस्बे में आवाज़ उठाने वाले है।

Akhil said...

भई वाह संजीत जी, आनंद आ गया पढ के। हम तो पहले से ही आपकी कलम के कायल हैं। अब तो मुन्ना और सर्किट भी नही बच पायेंगे आपसे…

शब्दों का अति सुंदर उपयोग किया है, आपसे अब और जादा बड़े झटकों का इन्तजार रहेगा…

Anita kumar said...

bahut khoob sanjeet ji

bloggers meet mein woh shishyon ki bheed mein kaun kaun tha ..heheheh...such hai munnabhai ki registry honi hi chaahiye ..hindi hindi hai chaahe kitne roop badal le aur woh bhasha kya jo apne ander auron ko aatmsaat na kare..aapne vyang ke maadhyam se bahut ghahari baat saamne rakhi hai

Shiv said...

क्या बावा, बोले तो मस्त लिखेला है तुम...पन लोचा एक ईच है....अपुन भी आया तो पूरा चार महीना बाद...बोले तो ये अक्खा टाईम अपुन मिस किया न तेरा ये ,,, अभी क्या बोलता है तुम लोग उसको, हाँ हाँ पोस्ट....

बोले तो झकास लिखे ला है...हे सर्किट अभी संजीत भाई को एक चकाचक थैंक यू बोलने का..

अविनाश वाचस्पति said...

आवारा बंजारा कहां कू जा रहा
देख सामने से मुन्नाभाई आरा
पुरा ना साल जल्दी तेज जारा
नया आ साल देख-देख आरा

मुन्नाभाई सर्किट कू लेके
आज आरा कि कल आरा
सबसे प्यारा सबको भारा
बंजारा कांयकू चला जारा

Unknown said...

Read some of them, its fun to read so nice stuff. Whosoever has written, it made me smile.

Himanshu Mohan said...

आपने इस पोस्ट को जो आज संजीवनी पिलाई है,
इसी लिए हमारी ये टिप्पणी पोस्ट के दो साल बाद आई है,
हम तो खाली ये कहें - बधाई है, बधाई है!
नए-पुराने ब्लॉगर कहें - दुहाई है - दुहाई है!

आभा said...

बहुत सुन्दर। और लिखिए अगली कड़ी मुन्ना भाई की गाँधी गिरि...

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आपकी राय बहुत ही महत्वपूर्ण है।
अत: टिप्पणी कर अपनी राय से अवगत कराते रहें।
शुक्रिया ।