आइए आवारगी के साथ बंजारापन सर्च करें

30 May 2008

बात किताबों की- 1

बात किताबों की- 1


पिछले दिनों जी टॉक पर ऑनलाईन टंगे रहकर बातें करने की बजाय किताबों के साथ व्यस्त रहा, बहुत सी पढ़ीं जिनमे से दो तीन का उल्लेख करना चाहूंगा।

सबसे पहले बात हो तो नासिरा शर्मा के उपन्यास "कुइंयाजान" की। इस उपन्यास की थीम ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया। एकदम प्रासंगिक,वर्तमान समय में हम अपने प्राकृतिक और पारंपरिक जल स्त्रोतों को भूलते जा रहे हैं, उनकी उपेक्षा करते जा रहे हैं।

कथानक सारा घूमता है दो (तीन) नदियों से घिरे इलाहाबाद शहर के एक मोहल्ले पर। उपन्यास की शुरुआत देखिए…… चिलचिलाती गर्मी के दिन हैं, दो-तीन दिन से बिजली नही है, बोर काम नही कर रहे,नल सूखे पड़े हैं। ऐसे मस्जिद वाली गली के इमाम का इंतकाल हो गया है और शव को नहलाने के लिए पानी की तलाश हो रही है जो कि मिल नही रहा क्योंकि हर घर मे बस एक दो घड़े पानी ही है अगर दे दें पीने के लिए क्या बचेगा।



उपन्यास का नाम आकर्षित करने के साथ ही उत्सुकता भी जगाता है कि आखिर ये "कुइंयाजान" है क्या भला। जैसे-जैसे कथा का प्रवाह आगे बढ़ता है यह स्पष्ट हो जाता है कि क्या है यह "कुइंया" और "जान"। इसे एक पात्र ही स्पष्ट करता है।

" कुआं पुलिंग,कुईं स्त्रीलिंग। कुईं केवल अपने व्यास में छोटी होती है मगर गहराई में नहीं। हां,इनकी गहराई कम और ज्यादा अलग-अलग स्थानों पर भिन्न-भिन्न होती है। कुईं एक अर्थ में कुएं से बिलकुल अलग है। कुआं भूजल तक पहुंचने या पाने के लिए बनता है,पर किऊं भूजल से ठीक वैसे नही जुड़ता जैसे कुआं, बल्कि कुईं वर्षा के जल को बड़े विचित्र ढंग से समेटती और संजोती है। तब भी जब वर्षा ही नही होती। यानी कुईं में न तो सतह पर बहने वाला पानी है न भूजल है। यह तो 'नेति-नेति' जैसा कुछ पेचीदा मसला है "।

चूकिं उपन्यास का नायक मुस्लिम तबके का प्रतिनिधित्व करता है अत: वह इस कुईं को ही कुइंयाजान कहता है।


बहुत कुछ है उल्लेख करने के लिए, लेकिन ऐसे अंश पढ़ने से अच्छा है कि किताब ही पढ़ी जाए

प्रकाशक का पता है
सामयिक प्रकाशन 3320-21 जटवाड़ा, नेताजी सुभाष मार्ग
दरिया गंज नई दिल्ली 110002
फोन 011- 23282733

जबकि किताब का मूल्य है चार सौ रूपए

क्या ख्याल है आपका

17 टिप्पणी:

Anita kumar said...

हम भी पढ़ेगे अब

Anonymous said...

हाँ, जब भी अवसर मिलेगा, खरीदेंगे और पढ़ेंगे। बताने के लिए धन्यवाद।
घुघूती बासूती

रंजू भाटिया said...

पढ़ लेंगे जी .बताने के लिए शुक्रिया संजीत जी

दिनेशराय द्विवेदी said...

किताब कहाँ मिलेगी? नहीं बताया।

Sanjeet Tripathi said...

मुआफी चाहूंगा द्विवेदी जी, संशोधन कर पता दे दिया है।
शुक्रिया।

डॉ .अनुराग said...

आपने उत्सुकता जगा दी है ..

Gyan Dutt Pandey said...

नासिरा शर्मा का इलाहाबाद की पृष्ठभूमि पर अक्षयवट पढ़ा है। ठीक ठाक लिखती हैं।

Ghost Buster said...

कुइंयाँजान के लिए चार सौ रुपए? इतने में तो मिनरल वाटर की चालीस बौटल्स आ जायेंगी.

Udan Tashtari said...

आभार आपका. मिली तो जरुर पढ़ लेंगे.

बालकिशन said...

भाई भूमिका से तो बड़ी रोचक जान पड़ती है ये किताब.
और आपके बताये इसका उद्देश्य भी स्पष्ट है.
जरुर पढ़ना चाहूँगा.
कब भिजवा रहे हैं?
:) :) :)

बालकिशन said...

भाई भूमिका से तो बड़ी रोचक जान पड़ती है ये किताब.
और आपके बताये इसका उद्देश्य भी स्पष्ट है.
जरुर पढ़ना चाहूँगा.
कब भिजवा रहे हैं?
:) :) :)

महावीर said...

किताब किसी न किसी तरह मिल ही जाएगी, सो ज़रूर पढ़ेंगे।

Ashok Pande said...

किताब बेशक अच्छी है. कथ्य और शिल्प दोनों दॄष्टियों से. पाठकों को इस बारे में बताने का शुक्रिया.

किताब श्रीराम सेन्टर, दिल्ली में भी देखी थी मैंने.

सतीश पंचम said...

veleparle, mumbai ke jeevan prabhat library me kitaab uplabd hai.Maine use dekha lekin liya nahin, ab padh kar dekhtaa hun.

मीनाक्षी said...

fursat ke do pal milte hi yahan padne aa jaate hain .
kitab se dosti to bahut khoob hai. rochak kathanak ... mauka mila to vahan aakar zaroor padainge.

seema gupta said...

"great wonderful, wanna buy this book definately"
Regards

iiitian said...

accha hota ki soft copy upalabdh kara dete.

Post a Comment

आपकी राय बहुत ही महत्वपूर्ण है।
अत: टिप्पणी कर अपनी राय से अवगत कराते रहें।
शुक्रिया ।