tag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post6215860700393506887..comments2024-01-12T11:59:41.030+05:30Comments on आवारा बंजारा: "……और अब भाजपा की बारी है"Sanjeet Tripathihttp://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-71981048493758564352008-01-05T12:30:00.000+05:302008-01-05T12:30:00.000+05:30प्रिय संजीत आप मेरे ब्लोग के प्रथम टिप्पणीकार रहे ...प्रिय संजीत आप मेरे ब्लोग के प्रथम टिप्पणीकार रहे हैं. नव वर्ष की शुभकामनाये. अनिता जी के ब्लोग पैर आजादी एक्सप्रेस के बे में जानकारी मिली. ये भी कि आप एक स्वतंत्रता सेनानी के पुत्र हैं. आप बहुत अच्छा लिखते हैं इतना अच्छा कि आपको पढ़ने के बाद सारा समय आपके अन्य ब्लोग पढ़ने मैं निकल जाता है सो अपनी टिप्पणी नहीं दे पाता. जेनरेशन गैप बाला ब्लोग बहुत अच्छा था. बधाई.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-83541099983435066212008-01-02T17:00:00.000+05:302008-01-02T17:00:00.000+05:30हम तो उस मुलाकात के समय की कल्पना कर मन ही मन मुस्...हम तो उस मुलाकात के समय की कल्पना कर मन ही मन मुस्कुरा रहे हैं :) <BR/>ऐसे कई अधिक वक्ताओं से हमारा भी पाला पड़ता ही रहता है।सागर नाहरhttps://www.blogger.com/profile/16373337058059710391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-6175950725285265222007-12-29T01:38:00.000+05:302007-12-29T01:38:00.000+05:30दोनोए बुजुर्गो को नतमस्तक प्रणाम जिन्होंने आपको एक...दोनोए बुजुर्गो को नतमस्तक प्रणाम जिन्होंने आपको एक अच्छा श्रोता बना दिया...मीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-36234049762420362302007-12-26T04:05:00.000+05:302007-12-26T04:05:00.000+05:30विधाता की ऐसी अनुपम कृति से परिचित कराने का शुक्रि...विधाता की ऐसी अनुपम कृति से परिचित कराने का शुक्रिया। सफर की सोहबत में अब तो आप भी व्युत्पत्तियां तलाशने लगे हैं...अधिवक्ता यानी अधिक + वक्ता ... बहुत खूब । मज़ा लिया हमने पोस्ट का । सफर के अगले किसी पड़ाव में अधिवक्ता को भी घसीट लाएंगे।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-57592344675651310682007-12-25T00:32:00.000+05:302007-12-25T00:32:00.000+05:30मेरे एक वकील भाई को झेलने के लिए आपका आभार। तकलीफ ...मेरे एक वकील भाई को झेलने के लिए आपका आभार। तकलीफ के लिए मैं माफी मांग लेता हूँ। बेचारे समझते हैं कि ज्यादा बोलने वाले को लोग बेहतर वकील समझते होंगे। मुवक्किलों के लिए जरूर तरसते होंगे। वे दया के पात्र हैं। रवि भाई की बात जरूर मान लें।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-30285038599870008512007-12-24T21:01:00.000+05:302007-12-24T21:01:00.000+05:30बहुत खूब. जिनके साथ बैठे उनका रोग भी ले आए भइया. औ...बहुत खूब. जिनके साथ बैठे उनका रोग भी ले आए भइया. और आपने भी बहुत लंबी ठेल दी इस बार. दुनिया में ऐसे चाटू लोगों की कमी नहीं है, बस नाम और चेहरे बदलते रहते हैं. अपने धंधे में तो ऐसों को रोज झेलना पड़ता है. आलोक जी ने सही इलाज बताया. पर खाने की बात समझ में नहीं आई.Sanjay Karerehttps://www.blogger.com/profile/06768651360493259810noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-12521812213321224472007-12-24T19:00:00.000+05:302007-12-24T19:00:00.000+05:30अब हम भी जान गये भाई कि हमें आप झेलते हो पर क्या ...अब हम भी जान गये भाई कि हमें आप झेलते हो पर क्या करें पेशे को तो नहीं छोड सकते भले ब्लागरी छोड दें ।<BR/><BR/>बेहतर शव्द संयोजन के लिए बधाई ।36solutionshttps://www.blogger.com/profile/03839571548915324084noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-12759879197993194812007-12-24T18:29:00.000+05:302007-12-24T18:29:00.000+05:30वैसे तो इस चिट्ठे को अपने ब्राउजर पर अक्षरों का आक...वैसे तो इस चिट्ठे को अपने ब्राउजर पर अक्षरों का आकार बड़ा कर पढ़ा जा सकता है, परंतु यदि इसका डिफ़ॉल्ट फ़ॉन्ट थोड़ा सा बड़ा कर देंगे तो हमारे जैसे चश्माधारी पाठकों पर कृपा होगी :)रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-64074379812568872482007-12-24T13:47:00.000+05:302007-12-24T13:47:00.000+05:30मैं सिवाय सहानुभूति के और कर भी क्या सकता हूं? अभी...मैं सिवाय सहानुभूति के और कर भी क्या सकता हूं? अभी-अभी अवधनारायण त्रिपाठी जी जैसे चाटक मुझे बक्श कर गये हैं। बक्श इस लिये दिया कि लंच टाइम हो गया था और उनको अपने घर जाना था।<BR/>अनवरत अधिक+वक्ता ब्राण्ड चाटकों से निपटने के लिये एक "जुगत सन्हिता" बननी चाहिये।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-14583730878516715352007-12-24T13:05:00.000+05:302007-12-24T13:05:00.000+05:30सही सोहबतों में हो प्यारे।कुछ लोगों को मुंह का डाय...सही सोहबतों में हो प्यारे।<BR/>कुछ लोगों को मुंह का डायरिया होता है। इनका इलाज है, इन्हे भुट्टा भेंट किया जाये और आग्रह किया जाये कि खा ही लीजिये।ALOK PURANIKhttps://www.blogger.com/profile/09657629694844170136noreply@blogger.com