tag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post1572807332112585159..comments2024-01-12T11:59:41.030+05:30Comments on आवारा बंजारा: छत्तीसगढ़ द मोस्ट हैप्पेनिंग स्टेटSanjeet Tripathihttp://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-33118700868773049472009-08-09T01:01:06.094+05:302009-08-09T01:01:06.094+05:30Apke jajbe ko salam...lajwab prastuti.
शब्द-शिखर ...Apke jajbe ko salam...lajwab prastuti.<br /><br />शब्द-शिखर पर नई प्रस्तुति - "ब्लॉगों की अलबेली दुनिया"Akanksha Yadavhttps://www.blogger.com/profile/10606407864354423112noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-13905994523221756542009-07-24T15:13:07.346+05:302009-07-24T15:13:07.346+05:30अंजीव आपने एक बड़ा काम किया युद्ध क्षेत्र में जाकर...अंजीव आपने एक बड़ा काम किया युद्ध क्षेत्र में जाकर हालत देखने का . बधाई के पत्र हैं सही स्तिथि की जानकारी के लिए अन्यथा लोग तो ये कहते हैं रायपुर बैठे पत्रकारों को बस्तर का क्या पता . जहाँ तक अनिल की संजीत के बारे में टिप्पणी का सन्दर्भ है वह संजीत के काफी समय तक ब्लॉग से दूए रहने के बारे में था .डॉ महेश सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/18264755463280608959noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-30278140868654639942009-07-24T12:26:07.348+05:302009-07-24T12:26:07.348+05:30संजीतजी,
पहले तो विलंब से ईमेल पढ़ने के लिए क्षमा ...संजीतजी,<br />पहले तो विलंब से ईमेल पढ़ने के लिए क्षमा चाहुंगा। अब आपके ब्लाग में लिखे विचारों का जिक्र करुंगा। <br />पहले तो आपको बता दूं कि ईमेल पढ़ने में विलंब का कारण यह था कि जिस समय रायपुर के पत्रकार लिखने में व्यस्त थे, उस समय मैं जगदलपुर से बीजापुर के धुआंधार दौरे पर था। किसी को बताया नहीं था। न पुलिस को और ना ही किसी अन्य अधिकारी को। <br />मैं इसके पहले भी तीन बार इन क्षेत्रों का दौरा कर चुका हूं। तीनों बार में हालात अलग दिखे। इस बार भी हालात कुछ अलग दिखे। जब घनघोर बारिश में बीजापुर का संपर्क गीदम से कटने जैसा हो गया था उस समय भी बसें चल रही थीं। लोग आना-जाना कर रहे थे। बसें पूरी रफ्तार से दौड़ीं। बीजापुर में जनजीवन सामान्य जैसा ही था। हां, एक बात अवश्य पिछली दफा जैसी ही थी, वह थी लोगों की आंखों की अजीब सी दहशत। नए आदमी को देखते ही वे आशंकित हो देखते हैं। लेकिन इस बार वह दहशत कम थी। लगभग ६ माह के अंतराल का यह परिवर्तन था। <br />आपके ब्लाग में जो टिप्पणियां पढ़ीं, वे कुछ अजीब सी थीं। आपका लिखना तो एक पत्रकार की व्याकुलता है क्योंकि कवि भले ही युद्ध के मैदान में कविता न कर पाए, जैसी बातें प्रचलित हैं लेकिन एक पत्रकार तो युद्ध के मैदान में भी रिपोर्टिंग के लिए ही जाता है। <br />संजीतजी, जिस समय मोहला-मानापुर वाली वारदात सामने आई, मैं नागपुर में था। क्षोभ तो मुझे भी बहुत था। डीजीपी को मैंने भी मन में जमकर कोसा था। कारण वही था साहित्य गोष्ठियां। इसके बाद ही मैंने फैसला किया कि जरा एक बार फिर जमीनी हकीकत देख कर आया जाए। इसलिए चला गया। मुझे मालूम था कि बारिश में जाना खतरे से खाली नहीं है, फिर भी गया। अब दो दिन आराम करने के बाद आपके सामने कुछ बातें रखना चाहता हूं।<br />आपके ब्लाग पर की गईं टिप्पणियां यह तो स्वीकार करती हैं कि यहां युद्ध जैसी स्थिति है। युद्ध के मैदान में सब कुछ होता है। न तो वहां मानवाधिकार की वकालत होती है और न ही टीकाटिप्पणी से युक्त हम जैसे पत्रकारों की कलम चलती है। वहां राष्ट्रप्रेम का एक जज्बा होता है।<br />द्विवेदी जी ने लिखा है कि नक्सलियों के साथ सीधे नहीं लड़ा जा सकता है। क्योंकि उनके साथ आदिवासियों के रूप में देश की जनता है। आप ही बताइये संजीत जी कि क्या अपराधी देश के नागरिक नहीं होते। फर्क सिर्फ इतना होता है कि कोई गुमराह होकर गलत काम करते हैं तो कोई आदतन होते हैं मगर कानून को तो अपना काम करना ही होता है। बस्तर में तो आदिवासी भाई इतने गुमराह हैं कि उन्हें यह भी नहीं मालूम कि वे गलत काम कर रहे हैं। नक्सलियों ने इस कदर उन्हें गुमराह किया है कि उन्हें कुएं के आगे की दुनिया ही नहीं दिखती है। इसे ही तो दूर करना है। लेकिन जो नक्सली ३००० करोड़ रुपए के रेड कारीडोर का हिस्सा हैं, उनसे तो सीधा ही निपटना होगा। जिस आदिवासी जनता की बात की जाती है, वो बुरी तरह गुमराह और आशंकित है। <br />बीजापुर में कुछ बुद्धिजीवियों से इस मुद्दे पर चर्चा हुई। मेरा एक ही मत है कि पहले इस बात का निर्णय तो कर लें कि क्या गलत है और क्या सही है। फिर हल की बात करेंगे। सीधी सी बात है कि अपराधों की आड़ में लोकतंत्र से विश्वास खत्म नहीं किया जा सकता। हां, अपराधों की रोकथाम के लिए आवाज उठाई जा सकती है। <br />मैंने पिछले दौरे के बात वहां की वस्तुस्थिति पर जनसत्ता में श्रृंखला चलाई थी। मुझे खुशी हुई कि जिन जमीनी हकीकतों को मैंने उजागर किया था, उस पर सरकार ने गंभीरता से अमल करना शुरू कर दिया है। इसकी एक लंबी फेहरिस्त है। वापस पहुंच कर मैं फिर एक बार इस पर लिखुंगा।<br />लेकिन, संजीतजी एक ही बात कहुंगा कि थोड़ा सब्र करने में कोई बुराई नहीं है। हां, हमारे जैसा पत्रकार राजनांदगांव जैसी घटना पर तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त करता है लेकिन उसकी आड़ में हम नक्सलियों को सही और पुलिस को गलत कैसे ठहरा सकते हैं। अनिल पुसदकरजी जैसे वरिष्ठ पत्रकार का आपको व्यंगात्मक अंदाज में यह कहना कि देर से जागे हो.... क्या इंगित करता है। जिस प्रकार किसी भी पुलिस कर्मी का गलत काम ज्यादा गंभीर माना जाती है, उसी प्रकार किसी पत्रकार या बुद्धिजीवी साहित्यकार का वैचारिक दिवालियापन भी गंभीर है।<br />एक बार फिर क्षमा चाहुंगा कि टिप्पणी लिखते-लिखते मैं लेख जैसा कुछ तो भी लिख गया। इसे एक पत्रकार हृदय की संवेदनशीलता ही मानियेगा। आपने कुछ भी गलत नहीं लिखा है। जो आपने लिखा है वही विचार मेरे मन में भी आए थे।<br />इस मुद्दे पर अपना लेखन जारी रखिये। हम जैसे सकारात्मक सोच वाले पत्रकारों की रायपुर में बहुत आवश्यकता है। आवश्यकता तो निःस्वार्थ सेवा वाले एनजीओ की भी है जो बस्तर में नक्सलियों का पुनर्वास करा सके।<br />नमस्कारanjeev pandeyhttps://www.blogger.com/profile/13492042985898080079noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-54486672160503123962009-07-19T23:00:45.307+05:302009-07-19T23:00:45.307+05:30छत्तीसगढ़ सच में मोस्ट हैपनिंग स्टेट है, भगवान करे...छत्तीसगढ़ सच में मोस्ट हैपनिंग स्टेट है, भगवान करे कि हैप्पी स्टेट भी बन जाएAnita kumarhttps://www.blogger.com/profile/02829772451053595246noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-58138602889095949362009-07-19T21:11:54.971+05:302009-07-19T21:11:54.971+05:30संजीत तुम्हारा जाग जाना ही काफ़ी है।सच मे पिछले दि...संजीत तुम्हारा जाग जाना ही काफ़ी है।सच मे पिछले दिनों बहुत कुछ हुआ और जो कुछ भी हुआ वो छत्तीसगढ के लिये ज़रा भी अच्छा नही हुआ।किसी के कवि होने से किसी को भी ऐतराज नही है मगर तुम्हारा कहना सही है कि कविता युद्ध के समय्…………।खैर कहा तो बहुत कुछ गया मगर इससे विनोद चौबे और शहीद जवान वापस ज़िदा तो होने से रहे।करने दो कविता साहब लोगो को मरने दो जवानो को रोने के लिये उनके परिजन और हम-तुम तो है ही ना,फ़िर नेता भी है कागज़ी आंसू बहाने के लिये और सरकार भी है अनुकम्पा नियुक्ती देने के लिये।क्या लोग अनुकम्पा नियुक्ति के लिये नौकरी करते है?जाने दो गुस्सा आया तो।।Anil Pusadkarhttps://www.blogger.com/profile/02001201296763365195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-60507966705539413612009-07-19T16:25:54.824+05:302009-07-19T16:25:54.824+05:30आना ही पड़ेगा आप जैसे युवाओं को आगेआना ही पड़ेगा आप जैसे युवाओं को आगेडॉ महेश सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/18264755463280608959noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-75918572265906564032009-07-19T08:07:40.402+05:302009-07-19T08:07:40.402+05:30कविता कोई लिखी थोड़े ही जाती है....बन जाती है...आश्...कविता कोई लिखी थोड़े ही जाती है....बन जाती है...आश्चर्य तो यह है जहाँ जान अटकी हो मगर फ़िर भी कविता! यह तो कोई ऎसी बात हुई की तलवार नही कलम की धार बन गई हो तलवार...सोचने वाली बात है।<br />बहुत दिन बाद आई हूँ संजीत जी आपके ब्लॉग पर अच्छा लगा पढ़ना...सुनीता शानूhttps://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-6493829196807825392009-07-19T03:47:44.927+05:302009-07-19T03:47:44.927+05:30अब वाकई लगने लगा है कि मोस्ट हैपनिंग स्टेट है!अब वाकई लगने लगा है कि मोस्ट हैपनिंग स्टेट है!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-2722395971975556252009-07-19T02:36:28.935+05:302009-07-19T02:36:28.935+05:30बहुत सही लिखा है। युद्ध के दौरान सिपाही कविता नहीं...बहुत सही लिखा है। युद्ध के दौरान सिपाही कविता नहीं लिखता। उस समय तो वह हथियारों से शत्रु की पीठ पर कविता लिखता है। <br /><br />पर शत्रु कौन है? अभी तक तो युद्धरत राजा और सेनापतियों को यह भी पता नहीं है। वे पता नहीं किस से लड़ रहे हैं? <br /><br />नक्सल समस्या से निपटने के तरीके खोजने होंगे। उन से सीधे नहीं लडा़ जा सकता। नक्सलियों के साथ जो जनता (आदिवासी) हैं वह तो देश की जनता ही है न? एक जनप्रतिनिधि राजा जनता से नहीं लड़ सकता। लड़े तो जीत नहीं सकता। इस लड़ाई का तो एक ही हल है वह है जनता को शत्रु से काट देना, अलग-थलग कर देना। तब शत्रु या तो स्वयं मर जाएगा या रण छोड़ भाग लेगा। <br /><br />पर इस जनता को कैसे शत्रु से अलग किया जाए? उस की योग्यता भी इन राजाओं में है या नहीं? क्या वे शत्रु के साथ खड़ी जनता में शत्रु के प्रति विश्वास कम करने में और अपने प्रति विश्वास उत्पन्न करने में सफल होंगे?<br /><br />छत्तीसगढ़ के बुद्धिजीवियों और राजनेताओं को इस पर विचार करना चाहिए।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-22570143708412147662009-07-19T01:55:44.649+05:302009-07-19T01:55:44.649+05:30शेर की नींद में खलल?शेर की नींद में खलल?Anonymousnoreply@blogger.com