tag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post2061036408009571273..comments2024-01-12T11:59:41.030+05:30Comments on आवारा बंजारा: डीजीपी के अनुभव और अनिल पुसदकर का सम्मानSanjeet Tripathihttp://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-40153476822482845572008-10-17T22:05:00.000+05:302008-10-17T22:05:00.000+05:30अनिल पुसदकर जी को बधाई। आप को भी बधाई संजीत जी क्य...अनिल पुसदकर जी को बधाई। आप को भी बधाई संजीत जी क्योंकी पुसदकर की ने इस सम्मान के लिये आप को भी साझेदार बनाया है।उमेश कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09352360205045969457noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-13568126207371526752008-10-14T18:07:00.000+05:302008-10-14T18:07:00.000+05:30@जन संपर्क अधिकारी। निर्दोषिता का कोई सबूत नहीं हो...@जन संपर्क अधिकारी। <BR/>निर्दोषिता का कोई सबूत नहीं होता। पहले दोष तो बताया जाए। कोई दोष और उस का कोई प्रारंभिक सबूत न बता कर केवल इतने लंबे समय तक कोई भी सबूत पेश न करने को क्या कहा जा सकता है। एक अन्याय पूर्ण बंदीकरण कानून बना कर किसी को भी बंदी बना कर रखना आसान है। अदालतों के हाथ तो उस कानून से बांध दिये गए हैं। जब प्रदेश में कोई दूसरी सरकार होगी तब इस कानून का इस्तेमाल फिर से कुछ दूसरे लोगों के लिए किया जाएगा। तब आज इस कानून का समर्थन करने वाले इसी कानून को हटाने की मांग करने लगेंगे। वैसे अर्थव्यवस्था का दबाव इतना है कि जनाकांक्षाओं की पूर्ति नहीं कर सकने वाली हर सरकार दमनकारी कानून चाहती है। इतिहास के आधार पर पूछता हूँ कि पुलिस और सरकार की नजर में संदिग्धता के आधार पर लम्बा बंदीकरण 1975 की इमरजेंसी का परिवर्तित रूप मात्र नहीं है क्या?दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-41709944286953030002008-10-14T14:39:00.000+05:302008-10-14T14:39:00.000+05:30दिनेश राय द्विवेदी जी, आपने जिस शख्स का नाम लेते ह...दिनेश राय द्विवेदी जी, <BR/><BR/>आपने जिस शख्स का नाम लेते हुए पुलिस की अक्षमता का प्रश्न उठाया है, उसकी वास्तविकता यही है कि भारत में न्याय का शासन चलता है । संबधित शख्स को गिरफ्तार इसलिए किया गया क्योंकि वे संदिग्ध थे, राज्य और पुलिस दोनो की नज़र मे । पर न्याय की दृष्टि में नहीं <BR/><BR/>हर व्यक्ति को पुलिस के खिलाफ़ न्यायालय में जाने का संवैधानिक अधिकार है । वर्णित शख्स को भी पुलिस के खिलाफ़ न्यायालय की शरण में जाने का अधिकार है और वे बकायदा पुलिस के खिलाफ़ न्यायालय मे गये हैं । पर इतने दिन के बाद उन्हें निचले कोर्ट सहित सुप्रीम कोर्ट ने जमानत तक देने से इंकार कर दिया है । क्या आप यह जानते हैं ? <BR/><BR/>भारत में किसी व्यक्ति या किसी समूह के मानने मात्र से दोषी को निपराध नहीं माना जा सकता । न्याय कह दे तो दूसरी बात । <BR/><BR/>रही बात पुलिस के पास सबूत होने की यह आपको कैसे पता कि पुलिस या सरकार के पास कोई सबूत नहीं । <BR/><BR/>यदि सबूत है निर्दोष होने की तो संबधित शख्स को कोर्ट के समक्ष यह रख ही देना चाहिए ताकि कम से कम उन्हे बेल मिल सके..जनसंपर्क अधिकारीhttps://www.blogger.com/profile/09356232497151783637noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-26653000741361642782008-10-14T10:10:00.000+05:302008-10-14T10:10:00.000+05:30अरबिंद मिश्रा को यह नहीं पता कि सम्मानित करने वाले...अरबिंद मिश्रा को यह नहीं पता कि सम्मानित करने वाले पुलिस नहीं बल्कि राज्य की महत्वपूर्ण संस्था सृजन-सम्मान है जो केवल साहित्यकारों, पत्रकारों, शिक्षाविदों की संस्था है । वे भला क्यों पुसदकर को कुंद करना चाहेंगे ?जयप्रकाश मानसhttps://www.blogger.com/profile/00751715610119416437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-74987996334783013022008-10-14T10:06:00.000+05:302008-10-14T10:06:00.000+05:30भाई रवि तिवारी और संजीव तिवारी के लिए पहले रवि तिव...भाई रवि तिवारी और संजीव तिवारी के लिए <BR/><BR/>पहले रवि तिवारी के लिए । अनिल पुसदकर के ब्लॉग को पुरस्कृत करने के पीछे पोस्ट का कथ्य, उसकी भाषा, प्रभाव और शैलीगत प्रयोग है । कथ्य यह कि आज माओवादी वैचारिकता के ज्वार में छत्तीसगढ़ की ग़लत तस्वीर सारी दुनिया में रखी जा रही है । इसमें संपूर्ण छत्तीसगढ़ की व्यवस्था और समाज भी कलंकित हो रहा है । उसमें धुर बस्तर में पदस्थ कर्मी भी हैं और उनमें से एक पुलिस के कांसटेबिल और हवलदार भी हो सकते हैं । हिंदी इंटरनेट और खासकर ब्लॉग की अब तक रची गयी दुनिया में कभी इतने छोटे व्यक्ति यानी कर्मी की वेदना या उसके यथार्थ पर कभी कुछ लिखा गया हो मुझे नहीं लगता । सो यह विषय की नवीनता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है । <BR/><BR/>जिन लोगों ने कभी विपात्र पढ़ी हो- मुक्तिबोध की रचना वे जान सकते हैं कि एक ही विधा में कैसे कई विधाओं का आस्वाद गढ़ा जा सकता है । श्री पुसदकर की यह रचना आलेख भी है । कहानी भी है । निबंध भी है । रिपोर्टाज भी है । और संस्मरण भी । और इतना ही नहीं एक साक्षात्कार जैसा भी आस्वाद है इसमें । गौर से पढ़ें तो समझ आयेगा । केवल पोस्ट का हेडिंग देखकर ब्लॉग-बकर करने से हिंदी की यह ताक़त समझ नहीं आयेगी । <BR/><BR/>मैंने जब इसे पढ़ा तो आँख भर आये । आपको क्या लगा आप जाने । यह है इसका प्रभाव.. प्रभाव वही महसूस सकता है जिसे वैसा ही दर्द हुआ है । एक आम सरकारी आदमी की पीड़ा का महापाठ है यह रचना । <BR/><BR/>भाषा पूरी तरह सरल, व्यवहारिक और आम बोल- चाल की । सो इस रचना पाठक को बाँधे रखती है । यदि मैंने चयन करते वक्त एक सदस्य के रूप में इन्हीं बातों का खयाल रखा है । और कुछ नहीं । और सृजन-सम्मान ऐसी पहल करता रहेगा । आपको साधुवाद... <BR/><BR/>अब आये संजीव तिवारी के लिए...<BR/>आपकी टिप्पणी में असत्य की बू है । सच वह भी नहीं होता जिसे हम देखते है, सुनते हैं, कहते हैं। सच बहुत कठिन है भाई व्यक्त होने में। और इसमें आपका कोई दोष नहीं । क्योंकि हर व्यक्ति उसी को सच समझता है जो उसके मन में होता है । आप को लगता है कि किसी के सम्मान से कोई छोटा हो जाता है तो वह आपका सच है । किसी को लगता है कि किसी के सम्मान से कोई बड़ा हो जाता है तो वह उसका सच है । आपका सच सबका सच नहीं हो सकता । मेरा सच आपका सच नहीं हो सकता । <BR/><BR/>मित्र मेरे, आपको बताना चाहूँगा कि विश्वरंजन विश्व-प्रसिद्ध शायर फिराक गोरखपुरी के सगे नाती है । वे ही उनके काव्य गुरु रहे हैं । विश्वरंजन समकालीन कविता के बड़े हस्ताक्षर रहे हैं । देश भर में आदृत हैं । कई किताबें है उनकी । वे नौकरी लगने के पहले तक केवल पत्रकार या लेखक ही बनना चाहते थे । कभी मेरे द्वारा उन पर संपादित कृति पढ़ें.. यदि साहित्य पढ़ते हों तो... मैं फ्री में उपलब्ध कराऊंगा... । आज से बीस पच्चीस साल पहले जब आईपीएस बने तो केवल 1-2जिलों में एसपी का काम किया । बाक़ी की नौकरी ईमानदारी पूर्वक देश की सर्वोच्च संस्था आईबी, रा आदि में गुजारे । हजारों आईपीएस को पढाने यानी तैयार करने में गुजारा । फील्ड लेने और पैसा कमाने के विरुद्ध सदैव रहे । और एक गंभीर बात जो नहीं कहना चाहिए । वे कभी इस राज्य में नहीं आना चाहते थे । उनकी ईमानदारी, योग्यता और आंतकवाद, नक्सलवाद से निपटने में उनके कौशल को देखकर ही उन्हें इस राज्य ने विशेष निवेदन से दिल्ली से बुलाया है । जब कहेंगे इस प्रदेश मे ईमानदार और राज्य की सबसे बड़ी समस्या से जूझने वाले विश्वरंजन जैसे आईपीएस की ज़रूरत नहीं तो वे पाँच मिनट में बोरिया समेट लेंगे । यह ज़रूर मन मे रखें आप.. <BR/><BR/>पता नहीं आप कैसे समझ बैठे कि यह सम्मान किसी आम पुलिस अधिकारी जैसे का सम्मान था और उसे महिमा मंडित करने के लिए भी... <BR/>दृष्टि बदलिये भाई... कैदी का भी भविष्य होता है और साधू का भी अतीत । और यह भी कि सब धान बाईस पसेरी नहीं होती । पर एक आम आदमी पुलिस को गाली ही देता है । आप का सोचना एक आम आदमी की तरह है । इसमें आपका कोई दोष भी नही है । जो स्वयं महिमा मंडित है उसे क्या महिमा मंडित करेंगे मित्र... <BR/><BR/>रहा सवाल संस्थाओं का तो मित्र अच्छे लोग अच्छे कामों में एक हो जाते हैं । मुद्दा पुलिस को सुनने का नहीं नक्सलवाद को लेकर छत्तीसगढ राज्य के 2 करोड़ लोगो की गलत तस्वीर जो अमेरिका मे रखी जा रही थी उसके विरोध के लिए विश्वरंजन कवि का सम्मान था । पर क्या करें एक कवि नौकरी भी करता है पुलिस महानिदेशक के रूप में । यही उसका अपराध है जिसकी बू आपकी टीप मे आती है.. <BR/><BR/>पगले मुझे नाम की चिंता नहीं है । संजीत मेरी जगह नहीं ले सकता न ही मैं संजीत की जगह । और अनिल को इसलिए सम्मानित नहीं किया गया कि संजीत के लिखने से वे अमर हो जायेंगे । यदि आप ऐसा सोचते हो तो आप मेरे बारे में अभी तक न तो कुछ जानते हो न ही जानना चाहते हो । मन को पवित्र रखिये । धीरे-धीरे सच के क़रीब पहुंच जायेगे ।जयप्रकाश मानसhttps://www.blogger.com/profile/16792869521782040232noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-72741305029581667222008-10-13T23:35:00.000+05:302008-10-13T23:35:00.000+05:30पुसदकर जी को हार्दिक बधाई।पुसदकर जी को हार्दिक बधाई।Anita kumarhttps://www.blogger.com/profile/02829772451053595246noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-29232861351436037412008-10-13T20:28:00.000+05:302008-10-13T20:28:00.000+05:30अच्छी पोस्ट संजीत ....अनिल पुसदकर जी को बधाई खूब ख...अच्छी पोस्ट संजीत ....<BR/>अनिल पुसदकर जी को बधाई खूब खूब.....अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-35968100079086637492008-10-13T20:06:00.000+05:302008-10-13T20:06:00.000+05:30बधाई !बधाई !Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-25467313869268069082008-10-13T19:08:00.000+05:302008-10-13T19:08:00.000+05:30संजीत भाई से एक बात कहना है कि टिप्पणी के लिये मॉड...संजीत भाई से एक बात कहना है कि टिप्पणी के लिये मॉडरेटर लगाने की क्या आवश्यकता है, सिर्फ़ "बेनामी" वाला हटा दो बस, फ़िर जो भी आयेगा अपने नाम से ही आयेगा, जैसी भी भाषा में चाहे उससे निपट लेंगे…Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/02326531486506632298noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-78944662954069035992008-10-13T19:07:00.000+05:302008-10-13T19:07:00.000+05:30ऐसे सम्मानों से सम्मान का ही मान बढ़ता है, अनिल जी ...ऐसे सम्मानों से सम्मान का ही मान बढ़ता है, अनिल जी का कद तो वैसे ही काफ़ी उंचा है, उन्हें किसी सम्मान की क्या आवश्यकता। हमारा नमन ऐसे अनथक योद्धा को…Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/02326531486506632298noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-76903897886105299512008-10-13T14:12:00.000+05:302008-10-13T14:12:00.000+05:30बधाई हो उन्हें .वे इस सम्मान के हक़दार हैबधाई हो उन्हें .वे इस सम्मान के हक़दार हैडॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-13580884652112336662008-10-13T13:17:00.000+05:302008-10-13T13:17:00.000+05:30अनिल जी को हार्दिक बधाई. उनके लेख सामयिक, ज्वलंत स...अनिल जी को हार्दिक बधाई. उनके लेख सामयिक, ज्वलंत समस्याओं को उठाते हुए और बिना किसी पूर्वाग्रह के रहते हैं.<BR/><BR/>उन्हें पुलिस के बड़े अधिकारियों ने सम्मानित किया तो भी इसमें कुछ बुरा नहीं. नेहरू जी भी दिनकर जी को सम्मानित करते रहते थे. लेकिन दिनकर जी कभी उस सम्मान के बोझ तले नहीं दबे. अनिल जी भी नहीं दबेंगे.Shivhttps://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-80355439854486231812008-10-13T10:15:00.000+05:302008-10-13T10:15:00.000+05:30ब्लॉग को हिंदी के पत्रकारों और साहित्यकारों के मध्...ब्लॉग को हिंदी के पत्रकारों और साहित्यकारों के मध्य प्रतिष्ठित करने का वास्तविक उद्यम सृजन-सम्मान जैसी रचनात्मक संस्था और उसके लिए दिन रात मेहनत करने वाले श्री जयप्रकाश मानस का भी है और ऐसी पहलों के लिए मानस की कार्ययोजना और दृष्टि के लिए भी शुभकामनायें...रवि तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/14334926664055729738noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-56269050311534169662008-10-13T09:46:00.000+05:302008-10-13T09:46:00.000+05:30पुसदकर जी को हमारी भी बधाई.पुसदकर जी को हमारी भी बधाई.रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-60161265122770881612008-10-13T08:14:00.000+05:302008-10-13T08:14:00.000+05:30अनिल पुसदकर जी को सम्मानित कर सम्मान करने वाली ल...अनिल पुसदकर जी को सम्मानित कर सम्मान करने वाली लगभग 28 संस्थायें स्वयं धन्य हो गई । अनिल भईया को हमारा प्रणाम ।<BR/> <BR/>मेरी समझ में तो, यह रचना लगभग 28 संस्थाओं या एक दो व्यक्तियों के द्वारा पुलिस प्रमुख का महिमामंडन करने के उद्देश्य से आयोजित किया गया था ।<BR/> यद्धपि पुलिस प्रमुख जी के इस संस्मरण का चिंतन छत्तीसगढ में होना ही चाहिये इस पोस्ट से जो जानकारी मिल रही है उससे उन्हें सुनने या पढने का मन हो रहा है ।<BR/><BR/>क्या संजीत जी आपने इन सम्मान देने वाली संस्थाओं के आश में पानी फेरकर अनिल पुसदकर जी के संबंध में ही लिखा सम्मानित किनने करवाया यह भी नहीं लिखा ।36solutionshttps://www.blogger.com/profile/03839571548915324084noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-49318396825859805612008-10-13T07:12:00.000+05:302008-10-13T07:12:00.000+05:30पुसदकर जी को हार्दिक बधाई ! पर उन्हें इसलिए ही सम्...पुसदकर जी को हार्दिक बधाई ! पर उन्हें इसलिए ही सम्मानित किया जा रहा है ताकि उनकी लेखनी कुंद पड़ जाय -आशा है इसे पुसदकर जी समझते होंगे !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-26974070060377095112008-10-13T04:45:00.000+05:302008-10-13T04:45:00.000+05:30पुसदकर जी को हार्दिक बधाई।पुसदकर जी को हार्दिक बधाई।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-13682752471500253212008-10-13T02:33:00.000+05:302008-10-13T02:33:00.000+05:30उन्हे सम्मान की बधाई!मगर असली सम्मान तो तभी माना ज...उन्हे सम्मान की बधाई!मगर असली सम्मान तो तभी माना जाये जब बस्तर की सुर्ख वादिया फ़िर हरी हो जायेंदीपकhttps://www.blogger.com/profile/08603794903246258197noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-70726238015792958322008-10-13T01:23:00.000+05:302008-10-13T01:23:00.000+05:30पुसदकर जी को सम्मान पर हार्दिक बधाई। लेकिन मैं विश...पुसदकर जी को सम्मान पर हार्दिक बधाई। लेकिन मैं विश्वरंजन के उस उत्तर से संतुष्ट नहीं कि माओ के कवि होने से वह माओवादी नही हो सकते क्या? <BR/>यह जवाब स्वयं पुलिस की अक्षमता को छुपाने के लिए है। <BR/>सवाल पूछा यह गया था कि विनायक सेन एक समाज सेवी हैं। लेकिन जवाब में माओ के कवि होने का उदाहरण दिया गया। पुलिस और छत्तीसगढ़ सरकार आज तक क्यों नहीं उन के विरुद्ध कोई सबूत तलाश कर नहीं दे सकी? केवल किसी का वैचारिक रूप से माओवाद के सिद्धान्तों को सही मानना भी उसे बंदी रखने का कारण नहीं हो सकता। हालांकि मैं नहीं मानता कि वे विनायक सेन किसी भी तरह से माओवादी विचार के समर्थक या उन के सहयोगी हैं।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-11234951132529635162008-10-13T01:22:00.000+05:302008-10-13T01:22:00.000+05:30इस सम्मान का पूरा श्रेय संजीत,तुमको जाता है।तुम नह...इस सम्मान का पूरा श्रेय संजीत,तुमको जाता है।तुम नही हौसला बढाते तो मैं शायद ही लिख पाता। थैंक्स संजीत्।Anil Pusadkarhttps://www.blogger.com/profile/02001201296763365195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7119634122493228421.post-9017931724850433502008-10-13T00:35:00.000+05:302008-10-13T00:35:00.000+05:30पुसदकर जी को हार्दिक बधाई। ब्लॉग लेखन को अब गम्भीर...पुसदकर जी को हार्दिक बधाई। ब्लॉग लेखन को अब गम्भीर और उत्तरदायी मानते हुए पहचाना जा रहा है, यह बहुत उत्साहजनक है।<BR/><BR/>पोस्ट पर लाने के लिए धन्यवाद।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.com